संवैधानिक उपचारों के अधिकार से तात्पर्य यह है कि नागरिक, अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय की शरण में जा सकते हैं। इन न्यायालयों को संविधान यह अधिकार प्रदान करता है कि कार्यपालिका के उन कार्यों को अवैधानिक घोषित करे जो अधिकारों के विरुद्ध हो। इस प्रकार इसे संविधान की आत्मा भी कहा जा सकता है। उच्चतम न्यायालय को मूल अधिकारों को लागू करने के लिए समुचित निर्देशत आदेश जिनके अन्तर्गत बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा, उत्प्रेषण और इसी के समान अन्य रिटों को जारी करने की शक्ति प्राप्त है।
- प्रथम प्रकार का निर्देशक बंदी प्रत्यक्षीकरण हैं जिसके अंतर्गत न्यायालय कैदी को सशरीर अपने सम्मुख उपस्थित करवाकर उसकी नजरबंदी के संबंध में निर्णय ले सकता है।
- परमादेश के अंतर्गत न्यायालय किसी को यह आदेश दे सकता है कि वह अपना कार्य कानून के अनुसार करें।
- प्रतिषेध लेख द्वारा न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने से रोक सकता है।
- उत्प्रेषण लेख के द्वारा निचले न्यायालय के रिकाॅर्ड मंगाकर उच्च न्यायालय यह निश्चित कर सकता है कि निचला न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर तो नहीं गया।
- अधिकार पृच्छा लेख के द्वारा न्यायालय किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से अपने पद अथवा शक्तियों का दुरुपयोग करने से रोक सकता है।
भारतीय संविधान में मूल अधिकारों का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है और उसमें भी अनुच्छेद 32 में वर्णित संवैधानिक उपचारों का अधिकार विशेष महत्व रखता है। इसके अभाव में मौलिक अधिकार अर्थहीन सिद्ध होंगे।
Civics ke bare me tarh ke dalate Rahi
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