शून्य का आविष्कार भारत में किया गया कहा जाता
है कि शून्य का आविष्कार भारत में पांचवीं शताब्दी के मध्य में आर्यभट्ट जी ने
किया उसके बाद ही यह दुनिया में प्रचलित हुआ लेकिन अमेरिका के एक
गणितज्ञ का कहना है कि शून्य का आविष्कार भारत में नहीं हुआ था। अमेरिकी
गणितज्ञ आमिर एक्जेल ने सबसे पुराना शून्य कंबोडिया में खोजा है और कहा
जाता है कि सर्वनन्दि नामक दिगम्बर जैन मुनि द्वारा मूल रूप से प्रकृत में रचित
लोक विभाग नामक ग्रन्थ में शून्य का उल्लेख सबसे पहले मिलता है। इस ग्रन्थ
में दशमलव संख्या पद्धति का भी उल्लेख है और यह उल्लेख सन् 498 में
भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलवेत्ता आर्यभट्ट ने आर्यभटीय (संङ्ख्यास्थाननिरुपणम्)
में कहा है और सबसे पहले भारत का ‘शून्य’ अरब जगत में ‘सिफर’ (अर्थ
खाली) नाम से प्रचलित हुआ लेकिन फिर लैटिन, इटैलियन, फ्रेंच आदि से होते
हुए इसे अंग्रेजी में ‘जीरो’ कहते हैं।
लेकिन शून्य के आविष्कार को लेकर कुछ अलग तथ्य भी है कि अगर शून्य का
आविष्कार 5वीं सदी में आर्यभट्ट जी ने किया फिर हजारों वर्ष पूर्व रावण के 10
सिर बिना शून्य के कैसे गिने गए बिना शून्य के कैसे पता लगा कि कौरव 100
थे ऐसे कुछ अलग-अलग बातें हैं लेकिन आज तक यही कहा जा रहा है कि
शून्य का आविष्कार 5वीं सदी में आर्य भट्ट ने किया था।