थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना कब हुयी?

थियोसाॅफि शब्द ग्रीक भाषा के Thoes (God) और सोफिया Wisdom शब्दों से मिलकर बना है जिससे इसका अर्थ ईश्वरीय ज्ञान है। आधुनिक समय में इस शब्द का प्रयोग ‘थियोसाॅफिकल सोसायटी’ ने किया जिसकी स्थापना 1875 ई. में मॅडम हैलन ब्लेवत्सकी तथा एच. एस अल्काट ने की। 1886 ई. में मद्रास के निकट अड्यार नामक स्थान पर थियोसाॅफिकल सोसायटी का केन्द्र स्थापित किया गया। 

श्रीमती एनी बेसेन्ट 1880 ई. में इसकी सदस्य बनीं। 1893 में भारत आयी 1907 ई. में अल्काट की मृत्यु के बाद यह इसकी अध्यक्ष नियुक्त हुई। ऐनी बेसेन्ट ने हिंदुत्व का गौरवगान कर हिंदुओं में अपने धर्म के प्रति आस्था तथा सम्मान की भावना जागृत की उस समय हिंदुओं की दशा बहुत शोचनीय थी। शिक्षित भारतीय पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति की ओर आकर्षित हो जा रहे थे। ऐसे समय में श्रीमती एनी बेसेन्ट ने प्राचीन आदर्शों, हिंदु धर्म की महानता तथा गौरव का भी हिंदुओं को ज्ञान कराया। 

कुछ लोग तो इस बात से प्रभावित हुए कि एक अंग्रेज महिला धर्म पर भाषण दे रही है। ऐनी बेसेन्ट ने उदासीन एवं सोती, भारतीय जनता को जगाकर उनमें आत्म-सम्मान और गौरव को पुनर्जागृत कर दिया।

ऐनी बेसेन्ट ने थियोसाॅफिकल सोसायटी के माध्यम से शैक्षणिक एवं सामाजिक क्षेत्र में भी अभूतपूर्व कार्य किये। अनेक स्थानों पर काॅलेज, स्कूल एवं छात्रावास खुलवाए, इसके अतिरिक्त इस संस्था ने समाज में व्याप्त बाल-विवाह, कन्या वध, कन्या वर विक्रय और छुआछूत आदि बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया।

एनी बेसेन्ट ने 1914 ई. में भारतीय राजनीति में प्रवेश किया और अपने विचारों के प्रचार हेतु ‘‘काॅमनवील’’ तथा ‘‘न्यू इंण्डिया’’ नामक दो समाचार पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ किया। वे भारतीय स्वतंत्रता की कट्टर समर्थक थीं। इसी कारण 1916 ई. में उन्होंने लोकमान्य तिलक द्वारा चलाए गये होमरूल आंदोलन में भाग लिया। ब्रिटिश सरकार ने 1917 में गिरफ्तार भी किया। इसी समय वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी चुनी गयीं। उन्होंने कहा था, ‘‘मैं तो एक नगाडा हूँ जिसका कार्य सोते हुए भारतीयों को जगाना है, ताकि वे अपनी मातृभूमि के लिये कार्यरत हो सके। विदेशी होते हुए भी उन्होंने भारत की महत्वपूर्ण सेवाएँ की। 20 सितबंर 1933 ई. में अड्यार में उनकी मृत्यु हो गयी।

थियोसाॅफिकल सोसायटी के उद्देश्य

  1. नस्ल, जाति, धर्म आदि के भेदभाव के बिना विश्व बंधुत्व का केन्द्र स्थापित करना।
  2. धर्मों तथा दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन को प्रोत्साहन देना।
  3. प्रकृति के रहस्यों तथा मनुष्यों की गुप्त शक्तियों का स्पष्टीकरण करना। 

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