उदार लोकतंत्र क्या है उदार लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएं

उदार लोकतंत्र क्या है

उदार लोकतंत्र वह व्यवस्था होती है जिसमें लोग सर्वोच्च शक्ति धारक होते हैं। वे ही सरकार बनाते हैं तथा समय-समय पर सरकार को परिवर्तित कर सकते है। लोग अपने राजनीतिक दलों तथा हित समूह के द्वारा राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेते हैं। सरकार जनमत के प्रति लगातार उत्तरदायी होती है। लोगों को विस्तृत अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त होती हैं जिन्हें संवैधानिक रूप में सुरक्षा प्रदान की जाती है।

उदार लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएं

उदार लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कर सकते हैं-

1. उदार लोकतंत्र में सरकार जनता की प्रतिनिधि होती है। यह लोगों द्वारा निर्वाचित की जाती है। विधान-पालिका के सदस्य एक निश्चित अवधि के लिए लोगों द्वारा चुने जाते है। विधानपालिका राष्टीय जनमत का प्रतिनिधित्व करती है तथा राष्ट्र के धन पर नियंत्रण रखती है। लोगों को मतदान अधिकार बिना किसी जाति, धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र, संपत्ति या संप्रदाय के भेदभाव के समान रूप से प्राप्त होता है। वयस्क मताधिकार का सिद्धांत प्रचलित होता है जिसके आधीन निश्चित आयु से अधिक के सभी स्त्री-पुरुषों को मताधिकार प्राप्त होता है। सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है तथा उसे अपनी प्रतिनिधि प्रकृति लगातार बनाए रखनी पड़ती है तथा समय-समय पर अपनी लोकप्रियता सिद्ध करनी पड़ती है। चुनावों द्वारा लोग सरकार को परिवर्तित कर सकते हैं।

2. उदार लोकतंत्र में लोगों को अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता होती है। उन्हें भाषण देने तथा विचार प्रकट करने, लिखकर या बोलकर दोनों प्रकार से मौलिक अधिकार प्राप्त होता है। जन प्रसार के साधन स्वतंत्र होते हैं। जनमत का निर्माण स्वतंत्रतापूर्वक होता है। प्रेस पर प्रतिबंध कम से कम होते हैं। लोगों को स्वेच्छा से अपने समूह एवं दल बनाने का अधिकार होता है।

3. उदार लोकतंत्रीय व्यवस्था में कार्यपालिका की भूमिका परिभाषित होती है। राजनीतिक कार्यपालिका नीति-निर्माण एवम् निर्णय-निर्माण करती है तथा स्थायी कार्य पालिका अर्थात् नौकरशाही सरकार की नीतियों तथा निर्णयों को लागू करती है। नौकरशाही निष्पक्ष होती है तथा राजनीतिक कार्यपालिका की अध्यक्षता में कार्य करती है। राजनीतिक कार्यपालिका अपने सभी कार्यों के लिए जनता तथा विधानपालिका के प्रति उत्तरदायी होती है।

4. उदार लोकतंत्र में सीमित सरकार की धारणा निहित होती है। सरकार केवल उन्हीं शक्तियों का प्रयोग करती है जो संविधान इसे प्रदान करता है। जिस ढंग से इन शक्तियों का प्रयोग सरकार को करना होता है वह भी निश्चित होता है तथा संविधान द्वारा निर्देशित होता है। सरकार अपनी शक्तियों का प्रयोग मनमाने, अत्याचारी ढंग से नहीं कर सकती। सरकार की शक्तियां परिभाषित होती हैं। सभी अंगों के परस्पर संबंधों का भी स्पष्ट वर्णन किया गया होता है।

5. उदारवादी लोकतंत्रीय व्यवस्था में सरकार की क्रियाओं पर सामाजिक एवं आर्थिक अवरोध तथा संतुलन होते है। ऐसा समाज में विद्यमान विभिन्न हित समूहों तथा अन्य सामाजिक-आर्थिक संस्थाओं के द्वारा किया जाता है। इन्हें समाज में कार्य करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। हित समूह सामाजिक-आर्थिक संस्थाएं तथा राजनीतिक दल, हित स्पष्टीकरण, हित समूहीकरण, राजनीतिक संचार तथा राजनीतिक समाजीकरण एवं भर्ती में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। ये सरकार के नीति-निर्माण तथा निर्णय-निर्माण कार्यों को प्रभावित करते हैं। सभी निर्णय, विशेषकर सामाजिक-आर्थिक निर्णय सरकार द्वारा अकेले ही नहीं लिए जाते। हित समूह इस क्रिया में भागीदार बनते हैं।

6. उदार लोकतंत्र में राजनीति में लोगों की भागीदारी का स्तर काफी विशाल और ऊंचा होता है। सभी प्रकार के जनमत अथवा मत राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होते हैं। लोग केवल चुनावों में ही नहीं अपितु राजनीतिक प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। शक्तियों का विकेंद्रीकरण होता है तथा सरकार के कार्यांंे में बहुत से लोग सक्रिय भागीदार होते हैं। सरकार के तीन अंगों में कार्यों का पृथक्करण होता है तथा शक्ति कभी भी किसी एक व्यक्ति अथवा संस्था के हाथ में केंद्रित नहीं की जाती। तीनों अंगों में कार्यों का पृथक्करण सत्तावाद तथा मनमाने रूप में शक्ति प्रयोग के विरुद्ध एक सुरक्षात्मक कदम होता है। विधानपालिका के दोनों सदन एक-दूसरे पर रोक लगाते हैं। राजनीति में विद्यमान राजनीतिक दल एक-दसू रे पर रोक लगाते हैं। विरोधी दल सत्तारूढ़ दल की नीतियों की लगातार आलोचना करते रहते हैं तथा वैकल्पिक नीतियां जनता के सम्मुख रखते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में दल निर्माण की स्वतंत्रता होती है तथा कम से कम दो राजनीतिक दल राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे होते हैं। समय-समय पर शासन-सत्ता राजनीतिक दलों के पास होती है।

7. उदार लोकतंत्र में लोग स्वतंत्र रूप में राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करते हैं। वे स्वतंत्र तथा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा स्वाभाविक रूप में राजनीतिक संस्कृति को ग्रहण करते हैं तथा राजनीति में भाग लेते हैं। उदार लोकतंत्र में राजनीतिक भर्ती सभी के लिए खुली होती है।

8. उदार लोकतंत्र के उपर्युक्त प्रमुख सात विशेषताओं के साथ कुछ अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार हैं, जैसे कि कानून का शासन, स्वतंत्र न्यायपालिका, सचेत नागरिकता, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता तथा लोक प्रभुसत्ता का सिद्धांत। इन विशेषताओं की उपस्थिति परंपरागत रूप से लोकतंत्र में विद्यमान होती है।

लेकिन उदार लोकतंत्र तभी सफलता से कार्य कर पाता है जबकि लोग शिक्षित हो, अपने अधिकारों तथा कत्र्तव्यां े के प्रति सचेत हों, तथा समाज में आर्थिक समानता हो। अगर समाज में गरीबी, अशिक्षा, अज्ञानता, पिछड़ापन, रूढि़वादिता, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, भाषावाद तथा संकुचित विचारों का प्रभाव हो तो उदार लोकतंत्र की सफलता तथा कुशलता अधूरी ही रह जाती है। सरकार पर लगे अवरोध सरकार को कमजोर कर सकते है। योग्य नेतृत्व के  अभाव तथा कमजोर एवं भ्रष्ट राजनीतिक दलीय व्यवस्था की उपस्थिति में भी उदारवादी लोकतंत्र ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर सकता।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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