भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे का जन्म
बलिया में हुआ था। इसके अलावा भारत छोड़ो आंदोलन के
जाने-माने नायक चित्तू पांडे का जन्म भी बलिया में हुआ था।
भारत छोडो आंदोलन के राष्ट्रीय नायक और स्वतंत्रता सेनानी
पंडित तारकेश्वर पांडे, राम पूजन सिंह और हरि राम भी बलिया
के थे। भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय चंद्र शेखर बलिया
जिले के मूल निवासी थे। स्वर्गीय राम नगीना सिंह 1952 में
बलिया से पहले सांसद थे। स्वर्गीय गौरी शंकर राय बलिया
के कर्नाई गाँव के मूल निवासी थे, वे उत्तर प्रदेश विधानसभा,
विधान परिषद और संसद सदस्य भी थे। उन्होंने 1978 के सत्र
में संयुक्त राष्ट्र महासभा को तत्कालीन विदेश मंत्री एवं पूर्व
प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ संबोधित किया था।
दोनों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के इतिहास में पहली बार सभा को
हिन्दी में संबोधित किया था।
बलिया नाम क्यों पड़ा?
इस जगह का नाम बलिया क्यों पड़ा यह एक विवादित
विषय है, जिसका स्पष्ट और प्रमाणिक आधार अभी तक नहीं
पता चला है। फिर भी यहाँ के स्थानीय लोगों में कई किवदंतियां
प्रचलित हैं कि इस स्थान का नाम कैसे पड़ा। एक यह है कि
यह नाम ऋषि वाल्मीकि या बाल्मीकि ऋषि से लिया गया है,
जो एक प्रसिद्ध कवि थे और हिंदू पवित्र ग्रंथ रामायण के लेखक
भी थे।
दूसरी मान्यता के अनुसार इस स्थान का नाम यहाँ की
भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करती है। बलिया दो नदियों
के बीच स्थित है और इसके परिणामस्वरूप यहाँ की प्रकृति
बहुत रेतीली है। स्थानीय भाषा में रेत को “बालू” के नाम से
जाना जाता है, इसलिए यहाँ का नाम बलिया पड़ा।
तीसरी यह
है कि यहाँ प्राचीन समय में राजा बलि का शासन था जिसके
नाम पर इसका नाम पड़ा। कहते हैं कि बलिया का प्राचीन
नाम या इस स्थान को ‘बालियान’ के नाम से जाना जाता था
जो बाद में बदलकर बलिया हो गया। यह जिला उत्तर प्रदेश
के कई जिलो से अपनी सीमाएं साझा करता है।
यह पश्चिम
में मऊ, उत्तर में देवरिया, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व में बिहार
और दक्षिण-पश्चिम में गाजीपुर से घिरा है। शहर की पूर्वी
सीमा गंगा नदी और घाघरा के संगम पर स्थित है।
बलिया से
वाराणसी सिर्फ 141 किलोमीटर दूर है। भोजपुरी या बलियावी,
जो हिन्दी भाषा की एक बोली है, यहाँ की प्राथमिक स्थानीय
भाषा है।
बलिया का इतिहास
बलिया का इतिहास यह साबित करता है कि यह जिला
बहुत प्राचीन है। कई जाने-माने ऋषियों और साधुओं ने कहा
कि बलिया में उनके आश्रम हैं। ऋषि वाल्मीकि, ऋषि भृगु,
ऋषि दुर्वासा, ऋषि परशुराम और ऋषि जमदग्नि सभी इस
शहर में रहे थे। प्राचीन काल में यह जिला कोसल साम्राज्य
का हिस्सा था। शहर की सुंदरता ने हमेशा मुस्लिमों और बुद्ध
वादियों जैसे कई धर्मों के संतों को आकर्षित किया था। कुछ
समय के लिए यह क्षेत्र बौद्ध प्रभाव में भी रहा था।
कोसल
साम्राज्य के पतन के बाद इस क्षेत्र पर कई राजवंशों जैसे
मौर्य, नंद और मल्ल का शासन रहा। एक प्रशासनिक इकाई
10 यूनियन तमसा
के रूप में बागी बलिया का इतिहास वर्ष 1879 से शुरू होता
है। अवध के नवाब आसफ-उद-दौला ने 1775 में ईस्ट इंडिया
कंपनी को बनारस (वाराणसी) प्रांत की स्वतंत्रता का औपचारिक
अधिकार दिया था। 1794 तक यह क्षेत्र उनके अधिकार में
रहा, जब राजा महीप नारायण सिंह ने अपना नियंत्रण गवर्नर
जनरल को सौंप दिया। 1818 के दौरान, दोआबा का परगना,
जो बिहार का एक हिस्सा था, गाजीपुर के राजस्व उप-विभाग
में स्थानांतरित कर दिया गया, जो बाद में बनारस (वाराणसी)
से अलग हो गया और एक स्वतंत्र जिला बन गया। उस समय
इसमें पूरा बलिया शामिल था। इसके बाद भी और कई बदलाव
हुए
बलिया जिला कब बना या बलिया जिले का गठन कब हुआ?
1 नवम्बर 1879 को गाजीपुर
से अलग करके बलिया का एक जिला के रूप में गठन हुआ।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान के लिए इसे
बागी बलिया भी कहा जाता है। वैसे तो पुरा भारत 1947 को
आजाद हुआ था। परंतु बलिया कब आजाद हुआ था? यह प्रश्न
कभी-कभी कही पढ़ने या सुनने को मिल जाता है। वास्तव में
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस क्षेत्र ने 14 दिनों
की छोटी अवधि के लिए स्वतंत्रता हासिल की और नेता चित्तू
पांडे के कुशल मार्गदर्शन में एक अलग स्वतंत्र प्रशासन का
गठन किया गया था।
बलिया के प्रमुख आकर्षण
बलिया में 1942 के स्वतंत्रता संग्राम के
दौरान शहीदों के सम्मान में शहीद स्मारक बनाया गया था।
बलिया के प्रमुख आकर्षण
बलिया और आस-पास के जिलों के लोगों का मानना
है कि रामायण लिखने वाले प्रसिद्ध संत वाल्मीकि एक छोटी
अवधि के लिए बलिया में रहे थे, इसलिए उनकी याद में एक
मंदिर बनाया गया था। हालाँकि, वह धर्मस्थल अब मौजूद
नहीं है। वाल्मीकि के मंदिर के अलावा बलिया में भारी तादाद
में मंदिर और आश्रम हैं। यह बलिया में कई ऋषियों और
किंवदंतियों के अस्तित्व के कारण था।
बलिया जिले में कई
आकर्षक स्थल, ऐतिहासिक स्थल, पर्यटन स्थल एवं दर्शनीय
स्थल है जिन्हें एक बार अवश्य देखना चाहिए।
बोटैनिकल गार्डन
बोटैनिकल गार्डन बलिया की सबसे खूबसूरत जगहों में
से एक है। इस उद्यान का रखरखाव शहर की नगरपालिका
द्वारा किया जाता है। बगीचे में जड़ी-बूटियों, पेड़ों, फूलों और
कई सजावटी पौधों का विविध संग्रह है। बगीचे में फूल और
पौधे आगंतुकों को शांति, ताजी हवा और शांत अनुभव देते हैं।
दादरी मेला
दादरी बलिया शहर से लगभग तीन किलोमीटर दूर है।
दादरी में हिंदू कैलेंडर के आधार पर अक्टूबर या नवंबर के
महीनों में यहाँ बड़ा मेला आयोजित किया जाता है, जिसे दादरी
मेले के रूप में भी जाना जाता है। दादरी मेला भारत का दूसरा
सबसे बड़ा पशु मेला है। दादरी पशु मेला कार्तिक पूर्णिमा के
दिन शुरू होता है और ऋषि भृगु के शिष्य दादर मुनि के
सम्मान में आयोजित किया जाता है। इस मेले में दुनिया भर
के व्यापारी और किसान अपने लिए गुणवत्तापूर्ण मवेशी खरीदने
के लिए आते हैं।
भृगु मंदिर
भृगु मंदिर बलिया में सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है और यह
संत भृगु को समर्पित है। प्रसिद्ध त्योहार दादरी मेला ऋषि भृगु
के सम्मान में आयोजित किया जाता है। मंदिर दादरी में स्थित है
और दादरी उत्सव की शुरुआत के लिए यह मंदिर मुख्य स्थल
है। कई श्रद्धालु इस मंदिर में अपनी पूजा करने के लिए आते हैं।
यह मंदिर बलिया के लोगों के लिए शुभ माना जाता है।
बलिया बालेश्वर मंदिर
बालेश्वर मंदिर एक और प्रसिद्ध मंदिर है और यहाँ पूरे
साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है। मंदिर के मुख्य गलियारे में
बड़े-बड़े घाट यहाँ के प्रमुख आकर्षण हैं।
सुरहा ताल
सुरहा ताल एक झील है जिसे 1991 के बाद से पक्षी
अभ्यारण्य के रूप में घोषित किया गया है। यहाँ आपको सर्दियों
के महीनों में अक्टूबर से फरवरी तक विभिन्न प्रजातियों के पक्षी
देखने को मिलते हैं।
शहीद स्मारक
बलिया में शाहिद स्मारक उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों
की याद में बनाया गया था, जिन्होंने बलिया को एक स्वतंत्र
शहर बनाने के लिए अपनी जान गंवा दी थी। इन स्वतंत्रता
सेनानियों के संघर्ष के कारण 1942 में बलिया 14 दिनों के
लिए एक स्वतंत्र शहर बन गया था।
श्री चैन राम बाबा मंदिर
श्री चैन राम बाबा मंदिर बलिया जिला मुख्यालय से 22
किलोमीटर की दूरी पर सहतवार नगर पंचायत में स्थित है।
दरअसल यह मंदिर एक समाधि स्थल है। यह एक ऐसा स्थान
है, जहाँ संत या महात्मा अपनी इच्छाओं से समाधि लेने के
यूनियन तमसा 11
लिए कई तरीके अपनाते हैं जैसे जल समाधि, वायु समाधि या
भू समाधि आदि। श्री चैन बाबा मंदिर भी एक ऐसे ही महान
संत का समाधि स्थल है, जो कभी इस स्थान पर रहते थे और
यही पर उनकी मृत्यु हुई थी। उनकी इच्छा के अनुसार उनका
दाह संस्कार इसी स्थल पर किया गया था। उनकी अंत्येष्टि के
बाद लोगों ने इस समाधि स्थल की पूजा शुरू कर दी और वहीं
एक मंदिर बना दिया गया। समय बीतने के साथ यह पवित्रता,
सौंदर्य और लोगों के विश्वास के कारण उनका प्रसिद्ध मंदिर
बन गया।
वर्तमान समय में यहाँ एक दिन में हजारों लोग मंदिर
में आते हैं और समाधिस्थ संत का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
यह बलिया जिला के आकर्षक स्थलों में भी काफी महत्वपूर्ण
स्थान रखता है।
श्री खपडि़या बाबा मंदिर
श्री खपडि़या बाबा मंदिर बलिया जिले के बैरिया तहसील
के चरजपुरा गाँव में स्थित है। बलिया जिला मुख्यालय से
खपडि़या बाबा आश्रम की दूरी लगभग 37 किलोमीटर है।
बलिया के दर्शनीय स्थलों में यह स्थान खासा प्रसिद्ध है।
यह आश्रम स्वामी खपडि़या बाबा और स्वामी हरिहरानंद जी
महाराज की तपोभूमि है। यह बलिया जिले में गंगा और यमुना
नदी के बीच द्वाबा क्षेत्र को भक्तिमय करता है। यह आश्रम
पूर्वांचल क्षेत्र में बहुत ही प्रसिद्ध है।
कहते हैं कि खपडि़या बाबा
एक प्रसिद्ध संत थे, जो भिक्षा के लिए एक ‘खप्पर’ लेकर बहुत
तेजी से चलते थे और जो भी उन्हें कुछ खिलाना चाहता था,
वह उनका पीछा करता और उनके खप्पर में भिक्षा डालता था।
उन्हें भिक्षा में जो भी मिलता था वह उनका भोजन था। उन्होंने
कभी भी भिक्षा की प्रतीक्षा नहीं की। वह बहुत प्रसिद्ध योग ऋषि
थे। उनकी मृत्यु के बाद यहाँ उनकी समाधि भक्तों द्वारा बनाई
गई। जो अब एक मंदिर का रूप ले चुकी है। यही बाबा का
आश्रम भी है जहाँ हवन, यज्ञ, सामूहिक विवाह आदि समाजिक
और धार्मिक कार्य समय-समय पर आयोजित किए जाते हैं।
बाबा की जयंती पर यहाँ एक बड़े मेले का भी आयोजन किया
जाता हैं। आश्रम में स्थित खपडि़या बाबा के समाधि स्थल या
मंदिर पर भक्तों का अटूट विश्वास है। बड़ी संख्या में भक्तगण
यहाँ खपडि़या बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं।
जंगली बाबा मंदिर
बलिया शहर से जंगली बाबा मंदिर की दूरी लगभग 47
किलोमीटर है। यह स्थान जाम नामक गाँव में स्थित है, जो
बलिया जिले के रसड़ा तहसील का एक गाँव है। इसी गाँव में
बाबा का जन्म हुआ था। वो हमेशा जंगल में रहें इसलिए लोग
उनको जंगली-जंगली बोलते हैं।
मंगला भवानी मंदिर
मंगला भवानी मंदिर बलिया जिले में सोहांव विकास खंड
के नसीरपुर ग्राम में नेशनल हाइवे-19 के पास स्थित है। जिला
मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर बक्सर और गाजीपुर की
सीमा पर गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित माँ मंगला भवानी
का प्राचीन मंदिर सदियों से श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा एवं भक्ति
का केंद्र रहा है। नवरात्र में माँ के दर्शन-पूजन के लिए यहाँ
श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
कामेश्वर धम
कामेश्वर धाम बलिया जिले के कारो ग्राम में स्थित
है। इस धाम के बारे में मान्यता है कि यह शिव पुराण और
वाल्मीकि रामायण में वर्णित वही जगह है जहाँ भगवान शिव
ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जला कर भस्म कर दिया
था। जिला मुख्यालय से कामेश्वर धाम की दूरी लगभग 22
किलोमीटर है।
बलिया कैसे पहुंचे
वायु मार्ग द्वाराः वाराणसी हवाई अड्डा, बलिया से निकटतम
हवाई अड्डा है। इसे बाबतपुर हवाई अड्डे या लाल बहादुर शास्त्री
हवाई अड्डे के रूप में भी जाना जाता है।
रेल मार्ग द्वाराः बलिया भारतीय रेलवे का एक स्टेशन है।
प्रतिदिन लगभग 35 ट्रेनें आती हैं जिनमें दो राजधानी एक्सप्रेस
ट्रेनें शामिल हैं। बेल्थारा रोड और रसड़ा अन्य दो प्रमुख रेलवे
स्टेशन हैं।
सड़क मार्ग द्वाराः यह वाराणसी, गोरखपुर, पटना और
उत्तर प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी
तरह से जुड़ा हुआ है।
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बलिया जिला