चंद्रगुप्त प्रथम कौन था ? चन्द्रगुप्त प्रथम का साम्राज्य विस्तार एवं समय

चन्द्रगुप्त प्रथम इतिहासकारों के अनुसार गुप्त वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था। गुप्त वंश को एक साम्राज्य के रूप में स्थापित करने का कार्य उसने ही किया। अभिलेखों में चन्द्रगुप्त प्रथम के लिए महाराजाधिराज पदवी का प्रयोग हुआ है। पूर्ववर्ती दोनों शासकों की अपेक्षा उसकी पदवी बड़ी है और उसके बड़े राज्य का शासक होने का प्रतीक लगती है। उसके सोने के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। इस आधार पर अधिकांश विद्वान उसे गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक मानते हैं।

राज्यारोहण - गुप्त संवत का प्रारम्भ

चन्द्रगुप्त प्रथम के राज्यारोहण और गुप्त अभिलेखों में उल्लिखित संवत के विषय में भी विद्वानों में मतभेद हैं। फ्लीट का मानना है कि लिच्छिवियों के संवत को ही गुप्तों ने अपना लिया था। परन्तु अधिकांश इतिहासकार इस संवत को गुप्तों का ही मानते हैं। 

विन्सेन्ट स्मिथ इसका आरम्भ चन्द्रगुप्त प्रथम के राज्यारोहण से मानते हैं। अधिकांश इतिहासकार बाद की दो जनश्रुतियों जिनका उल्लेख जिनसेन के हरिवंशपुराण तथा अल्बरूनी के वर्णन में मिलता है, के आधार पर गुप्त संवत का आरम्भ 319 ई0 से और गुप्त वर्ष 1 का आरम्भ 320 ई0 से मानते हैं। 

अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार इस संवत को चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने राज्यारोहण की स्मृति में जारी किया था।

चन्द्रगुप्त प्रथम का वैवाहिक सम्बन्ध

गुप्त अभिलेखों में वंश सूचियों में चन्द्रगुप्त प्रथम की पत्नी कुमारदेवी का नाम लिखा मिलता है। कुमारदेवी लिच्छिवी वंश की राजकुमारी थी। चन्द्रगुप्त प्रथम के चलाये सोने के सिक्कों में भी एक तरफ चन्द्रगुप्त के साथ उसकी रानी कुमारदेवी का चित्र और नाम अंकित है और दूसरी ओर सिंह पर सवार देवी का चित्र तथा लिच्छिवी नाम लिखा है। गुप्त वंशावलियों में समुद्रगुप्त को भी गर्व से ‘र्लििच्छवियों की पुत्री का पुत्र’ कहा गया है, जबकि अन्य किसी शासक की माता के वंश का उल्लेख नहीं मिलता। इस आधार पर अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि चन्द्रगुप्त प्रथम और कुमारदेवी के विवाह का गुप्तों के उत्थान में विशेष महत्व रहा होगा। 

के0पी0जायसवाल का मानना है कि गुप्तों ने लिच्छिवियों की सहायता से किसी क्षत्रिय राजा को पराजित कर मगध प्राप्त किया था। एलन के अनुसार लिच्छिवियों का वंश प्राचीन क्षत्रिय वंश था, जिसके सामाजिक और राजनैतिक रूप से सम्मानित होने के कारण गुप्तों को उनसे वैवाहिक सम्बन्ध होने पर गर्व हुआ होगा। इसी कारण वह बार-बार इस वैवाहिक सम्बन्ध का उल्लेख करते हैं। 

विन्सेण्ट स्मिथ के अनुसार चन्द्रगुप्त प्रथम की पत्नी के सम्बन्धियों का राज्य मगध और आस-पास के क्षेत्र पर था और इस विवाह के कारण चन्द्रगुप्त प्रथम राजसत्ता का उत्तराधिकारी बना। 

परमेश्वरी लाल गुप्त के अनुसार लिच्छिवी नरेश पुत्रहीन मरे होंगे और पुत्र के अभाव में पुत्री तथा उसके पति को उनका राज्य प्राप्त हुआ होगा। 

स्मृतियों में कहा गया है कि पुत्र न होने पर पुत्री के पुत्र को उत्तराधिकारी स्वीकार किया जा सकता है। इस आधार पर लिच्छिवी के वैध उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त के वयस्क होने तक चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपनी रानी कुमारदेवी के साथ संयुक्त रूप से राज्य किया और समुद्रगुप्त के वयस्क होने पर उसे राज्य सौंप कर सन्यास लिया होगा। 

चन्द्रगुप्त प्रथम और कुमारदेवी के इस वैवाहिक सम्बन्ध से पूर्वी भारत के दो राज्यों का एकीकरण हुआ और चन्द्रगुप्त प्रथम को एक बड़ा साम्राज्य प्राप्त हुआ।

चन्द्रगुप्त प्रथम का साम्राज्य विस्तार एवं समय

चन्द्रगुप्त प्रथम का कोई स्वयं का जारी अभिलेख प्राप्त नहीं हुआ है, जिससे उसके राज्य विस्तार का पता चल सके। उसके उत्तराधिकारियों और पुराणों के आधार पर उसका साम्राज्य विस्तार आधुनिक बिहार,बंगाल के कुछ इलाके और पूर्वी उत्तर प्रदेश के अधिकांश भागों में माना जाता है। पुराणों में मगध, साकेत और प्रयाग को गुप्तों का क्षेत्र बताया गया है। परमेश्वरी लाल गुप्त के अनुसार उसके पुत्र समुद्रगुप्त के द्वारा विजित क्षेत्रों पर चन्द्रगुप्त प्रथम का राज्य उत्तर में वाराणसी के आगे गंगा के उत्तर में नहीं होगा, लेकिन उसके राज्य में मध्यप्रदेश के बिलासपुर, रायपुर ,सम्भलपुर और गंजाम जिले के कुछ हिस्से सम्मिलित होंगे। पश्चिम में विदिशा की सीमा तक तथा पूर्व की ओर पूरा बिहार और बंगाल का कुछ क्षेत्र चन्द्रगुप्त प्रथम के राज्य में शामिल थे।

उसने 319 ई0 से लेकर लगभग 335 ई0 तक राज्य किया। एलन, फ्लीट एवं स्मिथ मानते हैं कि चन्द्रगुप्त प्रथम की मृत्यु 335 ई0 में हुयी। रमेश चन्द्र मजूमदार और परमेश्वरी लाल गुप्त के अनुसार 338 ई0 से 345 ई0 के मध्य चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने पुत्र के पक्ष में राज्य त्याग दिया। उसके पश्चात वह कितने समय जीवित रहा, इसका कोई प्रमाण नहीं है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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