फतवा ए जहांदारी के लेखक कौन है ?

जियाउद्दीन बरनी

इस कृति के रचनाकार के रूप में जियाउद्दीन बरनी जाने जाते हैं। बरनी ने इस गंन्थ में अलाउद्दीन के अनेक आर्थिक सुधार एवं सिद्धान्तों को लिखा गया है। फतवा-ए-जहांदारी की केवल एक हस्तलिखित प्रति इण्डिया आफिस के पुस्तकालय में मिलती है। इसमें 248 पृष्ठ हैं। कही-कही पृष्ठों के बीच का भाग मिट गया है। बरनी ने इस ग्रन्थ में अपना नाम कही नही लिखा हैं। किन्तु ‘‘दुआगोये सुल्तानी’’ सुल्तान का हितैषी शब्द लेखक के लिए लिखा है। वह लिखता है, कि प्राचीन लेखकों ने राज्य व्यवस्था सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे किन्तु बादशाहों, मंत्रियों, मालिको तथा अमीरों के पथ प्रदर्शन के लिए जिस प्रकार राज्य संम्बन्धी अधिनियमों का उल्लेख इस ग्रन्थ में किया। इस प्रकार का लेखन किसी लेखक ने नहीं किया। इस ग्रन्थ में राज्य सम्बन्धी उपदेश दिये गये। 

यह माना जाता है कि मिनहाज उस सिराज ने जहाँ अपना इतिहास समाप्त किया है। उससे आगे बरनी इस काल की सूचनाओं के प्रमुख स्रोत है। आगे के इतिहासकार उनसे अपनी सूचनाऐं लेते दिखाई देते हैं। बरनी गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक तथा फिरोजशाह तुगलक का समकालीन था। 

बरनी ने तारीख-ए-फिरोजशाही 1357-58 ईस्वी में समाप्त की थी। उसने अपना ध्यान केवल भारतीय शासकों तक सीमित रखा है।

यह कृति उस लेखक द्वारा लिखी गयी है जो कि शासन के उच्च पदों पर नियुक्त था ऐसी दशा में उसे शासन व्यवस्था का पर्याप्त ज्ञान था। राजनीतिक जीवन का परिचय देने के साथ-साथ उसने अपने ग्रन्थ में आर्थिक जीवन का भी परिचय दिया। फतवा-ए-जहांदारी एक ऐतिहासिक कृति न होकर अलग-अलग विषयों पर बरनी के विचारों की अभिव्यक्ति मात्र है। अपने विचारों को उसने महमूद गजनी द्वारा दिये गये भाषणों के रूप में प्रस्तुत किया है। यह कृति ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित न होकर बरनी के आदर्श राजनीतिक विचारों को प्रस्तुत करती है। इसमें उसने सुल्तान को इस्लाम का संरक्षण करने , शरीयत को लागू करने, अनैतिक कार्यों पर प्रतिबंध और गैर मुसलमानों को दण्डित करने की सलाह दी हैं। इसके पीछे उसका मानना था, कि संस्था के रूप में राजशाही को भय के द्वारा ही कायम रखा जा सकता है। सर्वसाधारण के कार्य में सुगमता होती है। अकाल के समय खराज व जजिया कर नही लेना चाहिए। बाजार के दामों के निरीक्षण के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए। चोर बाजारी और दाम बढाना बड़े पाप है। अनाज का भाव निश्चित रखना चाहिए। इस ग्रन्थ से तत्कालीन समय की आर्थिक दशा की काफी जानकारी मिलती है।

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