गैरीबाल्डी कौन था इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी की क्या भूमिका थी

गैरीबाल्डी का जन्म 1807 ई. में नीस में हुआ। उसके माता-पिता उसे पादरी बनाना चाहते थे, लेकिन उसे एक कुशल नाविक बनना पसंद था। साहसिक जीवन के प्रति उसकी विशेष रूचि थी। अतः उसका ध्यान सामुद्रिक जीवन की ओर आकर्षित हुआ। वह सार्डीनिया की शाही नौसेना में भर्ती हो गया और उसने अनेक वर्ष समुद्रो में बिताये। मैजिनी के विचारो से वह बहुत अधिक प्रभावित हुआ और यंग इटली का सदस्य बन गया। 

1834 ई. में मैजिनी ने सेवायें प्रांत में एक विद्रोह संगठित किया, जिसमें गैरीबाल्डी ने भाग लिया। सार्डीनिया की सरकार ने उसे मृत्यु दण्ड दिया। वह वहाॅ से भाग निकला और दक्षिणी अमेरिका जा पहुचा, जहां उसने 14 वर्ष तक निर्वासित जीवन व्यतीत किया, उसने दक्षिणी अमेरिका के स्वाधीनता संग्रामों में भाग लिया, वही उसने अपना एक दल संगठित किया। जिसके बाद सदस्य लाल कमीज पहनते थे। अतएव इस दल के सदस्य ‘गौरिल्ला युद्ध प्रणाली‘ में प्रवीण हो गये।

1848 ई. में जब इटली में क्रांति हुई, चारो तरफ विद्रोहाग्नि फैल गयी, तो उसने इटली लौटने का निश्चय किया। लाल कुर्ती दल के साथ वह नीस के बंदरगाह में उतरा है उसके दल में 3000 स्वयं सेवक थे। उसने पीडमाण्ड के शासक चाल्र्स एल्वर्ट को अपनी सेवायें अर्पित करने की इच्छा प्रकट की। परंतु चाल्र्स एल्वर्ट को अपनी सेवायें अर्पित करने की इच्छा प्रकट की। परंतु चाल्र्स एल्वर्ट ने आस्ट्रिया के विरूद्ध उसकी सेवाओं को अस्वीकार किया। 

1849 ई. में मत्सी मैजिनी ने रोम के विरूद्ध जो संघर्ष चलाया उसमें भी गैरीबाल्डी सम्मिलित हुआ। लेकिन क्रांति के विफल हो जाने के कारण उसे संयुक्त राज्य अमेरिका (न्यूयार्क) शरण लेनी पड़ी। उसको और उसके साथियों को मार्ग में भीषण कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। 6 वर्ष अमेरिका में रहकर व्यापार द्वारा उसने अतुल धनराषि एकत्रित की। 1854 ई. में वह पुनः इटली वापस लौट गया। उसने सार्डिनिया के समीप कैपे्ररा द्वीप को खरीदा और खेतीबाड़ी करने लगा। इसी बीच 1856 ई. में उसकी मुलाकात सार्डीनिया के प्रधानमंत्री कैबूर से हुई। वह उसके व्यक्तित्व के बहुत प्रभावित हुआ और सम्राट विक्टर इमैन्युअल द्वितीय ओर वैद्य राजसता के पक्ष में कैबूर उसका सर्मथन प्राप्त करने में सफल हुआ। 

1859 ई. जन पीडमाण्ड ओर आस्ट्रिया के मध्य युद्ध प्रारंभ हुआ। तब उसने 3000 सैनिको सहित सम्राट को अपनी सेवाएं दी। कहते है कि वह नेपोलियन तृतीय को लोमड़ी के समान धूर्त समझता था, और उससे घृणा करता था।

1860 ई. में जब सिसली वासियों ने अपने निरंकुश शासक के विरूद्ध विद्रोह कर दिया, तो वह लाल कुर्ती दल के 1000 सदस्यों के साथ देश भक्तों की सहायता के लिए सिसली पहुॅचा। यह उसकी वीरता, अदम्य उत्साह और साहस का ही परिणाम था कि उसने संख्या में कई गुना अधिक नेपिल्स के सेनिकों को पराजित किया। उसने सीमित साधनों के बावजूद सिसली ओर नेपिल्स पर अधिकार किया जो उसके जीवन की महानतम विजय थी। उसने तलवार के बल पर कर दिखाया। वहीं उसने समस्त विजित प्रदेशों को विक्टर इमैन्युअल द्वितीय को सौंप दिया। साथ ही सम्राट द्वारा उसे जो पद, उपाधि, और पुरस्कार दिये गये उसे भी उसने अस्वीकार दिया और अपने द्वीप कैपे्ररा लौट गया। उसने 1861 ई. में रोम पर पुनः आक्रमण किया, लेकिन सफल नही हुआ। उसने अपना शेष जीवन शांतिपूर्वक व्यतीत किया ओर 1882 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

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