गुरूनानक जी का जन्म 15
अप्रैल 1469 को तलवण्डी (पाकिस्तान) में हुआ था। आज यह स्थान ‘ननकाना साहिब’
के नाम से जाना जाता है। गुरूनानक जी की माता का नाम तृप्ता था। गुरूनानक जी के पिता का नाम मेहता
कल्याणदास था। बड़ी बहन ‘नानकी’ के अनुकरण पर गुरूनानक जी का नाम ‘नानक’ रखा गया।
कुछ लोग इसे ‘आत्मा‘ और ‘देह’ के रूप में भी देखते हैं। कहा जाता है कि नानक की
आध्यात्मिक प्रकृति की अनुभूति सर्वप्रथम नानकी को ही हुई थी। गुरूनानक जी का विवाह सुलक्खनी जी से हुआ था। गुरूनानक जी के दो पुत्र श्रीचंद और लक्ष्मीचन्द्र थे।
गुरूनानक का पूरा जीवन अध्यात्म और सतसंग को समर्पित था। उनके द्वारा की गई चार यात्राएं जिन्हें
‘उदासी’ नाम दिया जाता है, काफी प्रसिद्ध हैं। उनकी पहली यात्रा लाहौर, एमनाबाद,
दिल्ली, काशी, पटना, गया, असम, जगन्नाथपुरी, सोमनाथ, रामेश्वर, द्वारिका, नर्मदा तट,
बीकानेर, पुष्कर, दिल्ली, पानीपत, कुरूक्षेत्र, सुल्तानपुर स्थलों पर हुई।
दूसरी यात्रा 1507 से 1515 ई. के बीच की
है। इस यात्रा में वे सिरसा, बीकानेर, अजमेर, उज्जैन, हैदराबाद, बीदर, रामेश्विर,
शिवकांची और लंका गये। इस यात्रा में उनके साथ सैदो और धोबी नाम के शिष्य थे।
तीसरी यात्रा 1518 से 1521 ई. तक की है। इसमें उन्होंने कश्मीर, कैलाश,
मानसरोवर, भूटान, नेपाल, जम्मू स्यालकोट से होते हुए तलवंडी की यात्रा की। इस
यात्रा में उनके साथ नासू और शिहा नामक दो शिष्य थे।
नानक ने अपनी चौथी यात्रा
में बलूचिस्तान, मक्का, मदीना, बगदाद, ईरान, पेशावर, मुल्तान की यात्रा की। इस यात्रा
में उन्होंने अनेक मुस्लिम संतो का सत्संग किया।
युगीन परिस्थितियों के चित्रण के साथ-साथ धार्मिक अंधविश्वासों, रूढि़यों, कर्मकाण्डों की निन्दा है। इस प्रकार गुरूनानक का साहित्य बहुत व्यापक है।
युगीन परिस्थितियों के चित्रण के साथ-साथ धार्मिक अंधविश्वासों, रूढि़यों, कर्मकाण्डों की निन्दा है। इस प्रकार गुरूनानक का साहित्य बहुत व्यापक है।
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