इल्तुतमिश की कठिनाइयां तथा उसकी सफलताएं

इल्तुतमिश का मक़बरा
इल्तुतमिश का मक़बरा

इल्तुतमिश इल्बारी तुर्क माता-पिता की संतान था। कुतुबुद्दीन ने अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद वह दिल्ली का सुल्तान बना।

इल्तुतमिश की कठिनाइयां तथा उसकी सफलताएं

दिल्ली का सुल्तान बनते ही उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उस समय दिल्ली का साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुका था। राजपूत विद्रोह कर रहे थे। कुबाचा ने अपनी शक्ति बढ़ाकर कुछ क्षेत्रों पर अपना अधिकार जमा लिया था। जालौर, रणथम्भौर, ग्वालियर, दोआब तुर्काें के हाथ से निकल चुके थे। दिल्ली पर माँगोलों के आक्रमण का भय बना हुआ था। अतः इन समस्या को दूर करने की दिशा में इल्तुतमिश को निर्णय इस प्रकार लेने पड़।े 

1. दिल्ली के अमीरों का दमन - दिल्ली के अमीर इल्तुतमिश को सुल्तान के रूप में मान्यता देने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने सुल्तान के विरूद्ध षड़यंत्र रचना प्रारंभ कर दिया। अतः इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम दिल्ली के षड़यत्रं कारी अमीरों का दमन किया आरै सैनिक जागीरदारों को अपने कब्जे में कर लिया। इस प्रकार दिल्ली में उसने अपनी स्थिति मजबूत कर ली। 

2. याल्दौज का दमन - याल्दौज इल्तुतमिश का मुख्य प्रतिद्वन्द्वी था। ख्वारिज्म के शाह के आक्रमण के समय वह भागकर लाहौर आ चुका था। अतः इल्तुतमिश ने ख्वारिज्म के शाह के आरल आक्रमण से बचने के लिये याल्दौज के विरूद्ध तराईन के मैदान में युद्ध कर उसे बंदी बनाकर दिल्ली को सुरक्षित कर लिया। 

3. बंगाल के विद्रोहियों का दमन - बंगाल के गियासुद्दीन तुगलक ने इल्तुतमिश की अधीनता मानने से इंकार कर दिया, जो इल्तुतमिश को नागवार लगा। सन् 1225 ई. में उसने बंगाल पर आक्रमण के लिए विशाल सेना भेजी। गयासुद्दीन सेना का सामना नहीं कर सका और उसने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार कर ली। आगे खिलजी के पुत्र ने पुनः विद्रोह कर दिया। इल्तुतमिश ने पुनः आक्रमण करके बंगाल पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। 

4. कुबाचा का दमन - याल्दौज के दमन के बाद इल्तुतमिश ने कुबाचा की ओर ध्यान दिया। मंगोलों के आक्रमण से भयभीत होकर शाह का उत्तराधिकारी भागकर पंजाब आया। उसने सिंध, दोआब तथा मुल्तान के कुछ हिस्सो ं पर अधिकार कर लिया, जिससे कुबाचा की शक्ति क्षीण हो गई। इस स्थिति का लाभ उठाकर इल्तुतमिश ने कुबाचा पर दो दिशाओं लाहौर और उच से आक्रमण कर दिया। आतंकित होकर कुबाचा भागते समय सिंध नदी में डूबकर मर गया। उसके राज्य पर इल्तुतमिश ने अधिपत्य कर लिया। 

5. चालीस अमीरो के दल का गठन - इल्तुतमिश ने चालीस तुर्क अमीर तथा गुलामों के दल को संगठित किया। इसमें योग्य, विश्वसनीय, प्रतिभाशील व्यक्ति थे। इस दल को उसने राजत्व का एक अंग बना लिया। इनके सहयोग से अपनी शक्ति को सुदृढ़ करने में बड़ा सहयोग मिला। 

6. खलीफा का प्रमाण-पत्र - 1229 ई. में बगदाद के खलीफा ने एक घोषणा-पत्र द्वारा इल्तुतमिश को सुल्तान-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की और एक खिलाफत भिजवाई। इससे उसकी स्थिति और बढ़ गई। अब सही मायनो में इल्तुतमिश इस्लामिश जनता का शासक बन गया था। इल्तुतमिश की बनियान पर आक्रमण करने जाते वक्त बीमार पड़ने के कारण अप्रैल 1236 ई. में मृत्यु हो गयी। 

इल्तुतमिश का चरित्र एवं कार्यों का मूल्यांकन

डाॅ. ए.एल. के अनुसार - ‘‘उसने कुतुबुद्दीन के अधूरे कार्य को पूरा किया और उत्तरी भारत में शक्तिशाली तुर्की साम्राज्य की स्थापना की।’’ 

इल्तुतमिश सफल कूटनीतिज्ञ था। अपने शत्रुओं को उसने दूरदर्शिता तथा कूटनीति द्वारा भी पराजित किया। अपनी शक्ति दृढ़ करने के लिये उसने तुर्क सरदारो का शक्तिशाली संगठन बनाया, जिसे ‘चालीसा’ या ‘चहलगानी’ कहा जाता है। इन्हीं अमीरों के बल पर उसने अपने सुल्तान पद की प्रतिष्ठा बढ़ाने में सफलता प्राप्त की। 

 इल्तुतमिश का अधिकांश समय यद्यपि युद्धों में व्यतीत हुआ, फिर भी उसने प्रशासन की ओर समुचित ध्यान दिया।

के.ए. निजामी के अनुसार - ‘‘इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की शासन प्रणाली को एक रूप और तत्व प्रदान किया।’’ वह पहला तुर्क सुल्तान था, जिसने शुद्ध अरबी सिक्के जारी किये। हिन्दुओं के प्रति इल्तुतमिश का व्यवहार कठोर था। उसे कला एवं साहित्य से लगाव था। कुतुबुद्दीन द्वारा प्रारंभ कुतुबमीनार का निर्माण पूर्ण करने का श्रेय इल्तुतमिश को है।

वास्तव में मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश ही था, क्योंकि उसे नवनिर्मित तुर्की राज्य को नष्ट होने से बचाया, उसे वैधानिक स्थिति प्रदान करना, दिल्ली की गद्दी पर अपने वंश को उत्तराधिकारी की नींव स्थापित करने का प्रमुख श्रेय है। 

डाॅ. आर.पी. का मत है कि ‘‘भारत में मुस्लिम सम्प्रभुता का इतिहास वास्तव में इल्तुतमिश से ही प्रारंभ होता है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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