ज्वार के पौष्टिक तत्व
यह मोटे अनाज में जाना जाता है। ज्वार की प्रोटीन में लायसिन
की कमी होती है, परन्तु ल्यूसिन की अधिकता होती है। प्रोटीन के लिए
इसे दाल के साथ खाना चाहिए। केवल ज्वार का आटा खाने से पैलाग्रा
नामक रोग हो जाता है, क्योंकि इसमें नायासिन की कमी होती है।
बाजरा- इसकी रोटी या खिचड़ी, दलिया, तिल की पूरी आदि बनायी
जाती है।
बाजरा में प्रोटीन 11 से 15%, वसा 5 से 6%, 67% स्टार्च कैल्षियम 42 मि0ग्राम/100 ग्राम लौह तत्व 5-4 मि0ग्राम/100
ग्राम विटामिन ‘ए’ 220 I.U./100 ग्राम, बी1, 0.33 मि0 ग्राम/बी2
16 मि0 ग्राम तथा निकोटिनिक अम्ल 3.2 मि0ग्राम/100 ग्राम पाया
जाता है।
मक्का के पौष्टिक तत्व
मक्के के आटे में 11-1% प्रोटीन पाई जाती है। ताजे
मक्के में 24.6 तथा सूखे मक्के में स्टार्च 66.2% होता है। सूखे
मक्के में 3.6ः व ताजे मक्के में 0.9ः वसा होती है। मक्के में
खनिज लवण की मात्रा कम होती है। मक्के में विटामिन बी1 अधिक
होती है। केवल
मक्का खाने वालों को पैलैग्रा नामक रोग हो जाता है। इसमें ट्रिप्टोफेन
एमीनो एसिड की भी कमी होती है। मक्की के आटे में मैथी का चूरा
मिलाने से इसमें उपस्थित न्यनता को कम किया जा सकता है।
रागी के पौष्टिक तत्व
रागी मे 60% से 70% तक प्रोटीन तथा 72% स्टार्च
पाई जाती है। इसमें वसा की मात्रा कम होती है। यह कार्बोज का
अच्छा साधन है। रागी में ‘बी1’ अच्छी मात्रा में होता है, किन्तु अन्य
विटामिन की कमी होती है। रागी का उपयोग अधिकांशतः शिशुओं के
लिए आहार बनाने के लिए किया जाता है।
अनाज को पकाने से उसमें उपस्थित प्रोटीन का स्कंदन हो जाता है। इस कारण प्रोटीन का पाचन आसानी से होता है। चावल में थापयिन की अधिकता होती है, परन्तु पकाने से यह नष्ट हो जाता है। उसकी न्यनता से बेरी-बेरी रोग हो जाता है।
अनाज को पकाने से उसमें उपस्थित प्रोटीन का स्कंदन हो जाता है। इस कारण प्रोटीन का पाचन आसानी से होता है। चावल में थापयिन की अधिकता होती है, परन्तु पकाने से यह नष्ट हो जाता है। उसकी न्यनता से बेरी-बेरी रोग हो जाता है।