मैडम भिखई जी रूस्तम कामा का जन्म सितम्बर 1861 को बम्बई के
एक सम्पन्न पारसी परिवार में हुआ था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के आरंभिक दौर
में मेडम कामा ने विदेशों में 35 वर्ष तक क्रांतिकारी कार्यो को जीवित रखा। पारसी
क्रांतिकारियों में जमशेदजी टाटा, दादा भाई नौरोजी, दिनशा वांछा, फिरोजशाह
मेहता, फिरोज गांधी और भारत की महिला क्रांतिकारियों में मैडम कामा का नाम
सर्वोपरि है। स्टटगार्ट सम्मेलन में 1907 ई. में मैडम कामा ने ओजस्वी भाषण दिया
और अन्र्तराष्ट्रीय समाजवादी समुदाय के समक्ष भारतीय स्वतंत्रता का पक्ष प्रस्तुत
किया और ऊपर हरी, बीच में भगवा या सुनहरी तथा सबसे नीचे लाल रंग की
पट्टी का ध्वज जिसमें भारत के सभी धर्मो और प्रान्तों के प्रतीक बने थे, पहली बार
किसी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में स्वतंत्र भारत का ध्वज फहराया। इसके बाद उन्होनें
अमरीका की यात्रा की और वहां भारत की दुर्दशा से लोगों को परिचित कराया
तत्पश्चात् यूरोप के अनेक देशों की यात्रा की और वहां भारत की स्वतंत्रता के पक्ष
को रखा। आन्दोलन के प्रचार के लिये उन्होंने 1909 ई. में ’वन्देमात्रम’ नामक
समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। 16 अगस्त 1936 को बम्बई में बीमार होने
के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
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मैडम भीकाजी कामा