मनसबदारी व्यवस्था क्या थी इसका वर्णन

मनसब फारसी शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘पद’। बाबर के समय प्रशासनिक अधिकारियों को वजहदार कहा जाता था। कानून-ए-हुमायूँनी के अनुसार हुमायूँ ने भी अपने अमीरों के 12 वर्ग बनाये थे।

अकबर की मनसबदारी व्यवस्थ मंगोलो की दशमलव पद्धति पर आधारित थी। यह मंगोलों की सैनिक व्यवस्था से प्रभावित थी किन्तु प्रेरणा भले ही मंगोल पद्धति से मिली हो परन्तु अकबर में अपनी प्रतिभा के अुनकूल इसे एक मालिक पद बना दिया।

मनसब व्यवस्था के प्रचलन की जानकारी अबुल फजल तथा मुतमिद खाँ के विवरण से मिलता है। अबुल फजल लिखता है कि अकबर ने अपने शासनकाल के 18वें वर्ष ‘दाग’ का प्रचलन किया तथा अधिकारियों के पद श्रेणी 19वें वर्ष अमल में लाये गये। नवीन शोधों के आधार पर इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि अकबर ने मनसबदारी पद्धति का अपने शासन के 40-41वें वर्ष में अर्थात् 1595-96 में लागू किया था।

मनसबदारी व्यवस्था वह व्यवस्था थी, जिसमें अमीर वर्ग, सेना तथा सिविल अधिकारी तीनों का एकीकरण किया गया था। प्रत्येक मनसबदार का रैंक दो अंकों में व्यक्त होता था। प्रथम अंक-जात रैंक, और द्वितीय अंक- सवार रैंक का बोधक होता था। जात शब्द से किसी भी अधिकारियों के बीच उसका स्थान तथा उसका वेतन निर्धारित होता था और सवार रैंक से यह निर्धारित होता था कि सम्बन्धित सवार रैंक से यह निर्धारित होता था कि सम्बन्धित अधिकारी के अन्तर्गत कितनी सेना रखी गई है।

मनसब तीन चीजों पर संकेत करता था-
  1. इससे इसके धारक (मनसबदार) की पदानुक्रम में अवस्थिति निर्धारित होती थी। 
  2. इससे धारक का वेतन निश्चित होता था।
  3. इससे धारक द्वारा एक खास संख्या में सेना, घोड़े और हथियार रखे जाने का भी निर्धारण होता था।
मनसबदारों की श्रेणियाँ होती थी-
  1. सवार रैंक, जात रैंक के बराबर
  2. सवार रैंक, जात रैंक से आधा या आधे से अधिक
  3. सवार रैंक, जात रैंक के आधे से कम
किसी भी स्थिति में सवार रैंक जात रैंक से अधिक नहीं हो सकता था।

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