पार्षद सीमा नियम की विषय सामग्री

पार्षद सीमा नियम की विषय सामग्री

पार्षद सीमा नियम कम्पनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसे कम्पनी निर्माण के समय प्रवर्तकों द्वारा कम्पनी रजिस्ट्रार के सम्मुख प्रस्तुत करना होता है। इसे कम्पनी का चार्टर भी कहा जाता है। कम्पनी का एक महत्वपूर्ण प्रलेख होने से, यह कम्पनी के चार्टर की भांति काम करता है।

कम्पनी अधिनियम, 1956 धारा 2(28) पार्षद सीमा नियम को परिभाषित करती है- ‘‘ सीमा नियम से आशय, कम्पनी के ऐसे पार्षद सीमा नियम से है, जो पिछले कम्पनी अधिनियमों अथवा इस अधिनियम के अधीन मूलरूप से निर्मित किये गये अथवा समय-समय पर परिवर्तित किये गये हैं।’’

पार्षद सीमा नियम मौलिक किन्तु महत्वपूर्ण जानकारी से भरा होता है अतः इसे कम्पनी का संविधान भी कहा जाता है। इसे लोक प्रपत्र के रूप में जाना जाता है। इसका तात्पर्य है कोई भी व्यक्ति इसकी प्रतिलिपि प्राप्त कर सकता है। यह अंशधारकों, लेनदारों और उन सभी लोगों को जो कम्पनी से जुड़े हुये हैं, सभी लोगों को योग्य बनाता है कि वह यह जानकारी प्राप्त कर सकें कि उनकी क्या शक्तियाँ है और उनकी गतिविधियाँ कहाँ तक विस्तृत है।

पार्षद सीमा नियम की विषय सामग्री

धारा 13 पार्षद सीमा नियम की विषय सामग्री का वर्णन करती है। प्रत्येक कम्पनी के पार्षद सीमा नियम में निम्न विवरण का होना आवश्यक है- 
  1. कम्पनी का नाम
  2. पंजीकृत कार्यालय
  3. उद्देश्य
  4. दायित्व
  5. पूंजी
  6. सदस्यता

1. कम्पनी का नाम

इसमें प्रत्येक कम्पनी को सावधानी पूर्वक उसका नाम चुनना आवश्यक है क्योंकि यह सब कम्पनी के रजिस्टार के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। समिति दायित्व वाली कम्पनी के मामले में शब्द सीमित या ‘‘प्राइवेट मर्यादित’ नाम के साथ जोड़ कर लिखा जाना चाहिये। आगे यह भी ध्यान रखना चाहिये कि नाम अवांछनीय न हो पहले से ही विद्यमान कम्पनियों के समान न हो। केन्द्र सरकार को यह अधिकार है कि वह कम्पनी द्वारा प्रस्तावित नाम को अस्वीकार कर सकती है यदि कम्पनी धारा 20 के अंतर्गत प्रावधानिक की अवहेलना करती है।

परिवर्तन:- कम्पनी अधिनियम की धारा 21 से 23 के प्रावधानों के अनुसार कम्पनी किसी भी समय अपना नाम परिवर्तित कर सकते हैं।
  1. एक संकल्प पारित करके और
  2. लिखित रूप में केन्द्र सरकार की अनुमति प्राप्त करके यदि केन्द्र सरकार को लगता है कि उसी नाम की कोई दूसरी कम्पनी पहले से ही विद्यमान है तब,
  3. एक साधारण संकल्प पारित करके और
  4. केन्द्र सरकार की पूर्व अनुमति लिखित में प्राप्त करके
अतः परिवर्तित नाम की सूचना कम्पनी रजिस्ट्रार को 30 दिनों के अन्दर दी जानी चाहिये ताकि वह तदनुसार प्रमाण पत्र जारी कर सके।

2. पंजीकृत कार्यालय

इसमें कम्पनी के अपने पंजीकृत राज्य कार्यालय का उल्लेख जरूरी है। प्रावधानों के अनुसार, कम्पनी एक पंजीकृत कार्यालय होना आवश्यक है। 

परिवर्तन:- कम्पनी के पंजीकृत कार्यालय के उसी शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवर्तन होने की स्थिति में कम्पनी बोर्ड द्वारा पारित संकल्प ही पर्याप्त है किन्तु इस परिवर्तन की सूचना 30 दिनों के भीतर रजिस्ट्रार के समक्ष पहुँचनी जरूरी है। यदि कार्यालय उसी राज्य में एक शहर से दूसरे शहर को स्थानांतरित होता है तो मर्यादा के भीतर एक विशेष संकल्प पारित होने की आवश्यकता है एवं रजिस्ट्रार के 30 दिनों के भीतर सूचित करना अनिवार्य है।

एक राज्य से दूसरे राज्य में काया्रलय का स्थानांतरण की स्थिति में पार्षद सीमा नियम में परिवर्तन करना आवश्यक होता है और केन्द्र सरकार की अनुमति के साथ-साथ एवं विशेष संकल्प भी पारित होना आवश्यक होता है।

3. उद्देश्य 

कोई भी कम्पनी इसके अन्तर्गत अपने उद्देश्यों के बिना कोई व्यवसाय सहो धार्मिक रूप से नहीं चला सकती । किसी भी तरह से यह ऊपर वर्णित सीमाओं को पार करता है तो इसे अधिकालातीत और शून्य माना जायेगा। इस नियम का उद्देश्य कम्पनी के सदस्यों, लोगों और लेनदारों को सुरक्षा प्रदान करना है। 

उद्देश्य को बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिये:-
  1. उद्देश्य अवैधानिक नहीं होना चाहिये।
  2. इसी तरह कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के विरूद्ध भी उद्देश्य नहीं होने चाहिये।
  3. इन्हें लोक नीति के विरूद्ध नहीं होना चाहिये।
  4. उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट होने चाहिये और उनमें तनिक भी अस्पष्टता नहीं होनी चाहिये
  5. ये काफी विस्तृत होने चाहिये।

परिवर्तन:- पार्षद (ज्ञापन) के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से (उद्देश्य) में परिवर्तन संभव है लेकिन अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। धारा 17(i) एक सूची निर्धारित करती है जिनके आधार पर परिवर्तन किया जा सकता है। इसमें परिवर्तन करने की अनुमति दी गयी हैः-
  1. व्यापार को अधिक मितव्ययता या कुशलता से चलाने के लिये
  2. नयी खोज एवं तकनीकों के उपयोग के लिये।
  3. व्यवसाय के भौगोलिक विस्तार की संभावना हेतु।
  4. अनुपयोगी उद्देश्यों को कम करने हेतु।
  5. कम्पनी को पूर्णतः या आंशिक समाप्ति के लिये।
  6. अन्य कम्पनी या व्यक्तियों के निकाय के साथ सममिलन हेतु आम सभा में विशेष प्रस्ताव पारित करके परिवर्तन संभव है। इसकी सूचना रजिस्ट्रार के समक्ष 30 दिनों के भीतर पहुँच जानी चाहिये।

4. दायित्व

इसके अन्तर्गत कम्पनी के सदस्यों की देयता (दायित्व) की प्रकृति के बारे में स्पष्टीकरण की आवश्यकता को स्थान दिया गया है। जैसा कि पहले भी चर्चा की जा चुकी है कम्पनी का दायित्व सीमित या असीमित हो सकते है। सीमित दायित्व वाली कम्पनी के मामले में, दायित्व में यह स्पष्ट होना चाहिये कि सदस्यों का दायित्व सीमित है, इसके साथ ही यह भी स्पष्ट होना चाहिये कि यह सीमित दायित्व अंशों द्वारा या गारंटी द्वारा सीमित है। असीमित दायित्व के मामले में पार्षद सीमा नियम में इसका उल्लेख किया जाना आवश्यक नहीं है।

परिवर्तन:- दायित्व में बढ़ोत्तरी के विषय में इसमें परिवर्तन तभी संभव है जब सभी सदस्य इस हेतु लिखित में अपनी सहमति देते हैं। किसी भी मामलां में दायित्व में कटौती अस्वीकार नहीं होगी।

5. पूंजी- 

केवल अंश पूंजी वाली सीमित दायित्व वाली कंपनी के दस्तावेज में इसको सम्मिलित किया जाना आवश्यक है। पूंजी कंपनी की अधिकतम सीमा निर्धारित करता है, इसके अलावा अंश पूंजी को बढ़ाया नहीं जा सकता । इस पूंजी को पंजीकृत पूंजी, अधिकृत पूंजी या सांकेतिक पूंजी के नाम से जाना जाता है।

परिवर्तन:- यदि पार्षद अन्तर्नियम कंपनी पूंजी में परिवर्तन करने की अनुमति देता है तो कम्पनी उसकी पूंजी में परिवर्तन कर सकती है। इसे करने के लिये साधारण या विशेष प्रस्ताव पारित करने होते है। निम्नलिखित मामलों में एक साधारण प्रस्ताव की आवश्यकता होती हैः-
  1. नये अंश जारी करके अंश पूंजी में वृद्धि के मामलों में ।
  2. विद्यमान अंशों की बड़ी या छोटी राशि के एकत्रीकरण या विभक्तीकरण हेतु।
  3. पूरी तरह से भुगतान किये गये अंशों का स्टाॅक या इसके विपरीत में रूपांतरण होने पर ।
  4. असंतुष्ट अंशों को रद्द करने हेतु।
विशेष प्रस्ताव पारित करके और इसके लिये पुष्टिकरण प्राप्त करके पूंजी को कम करने के लिये परिवर्तन किया जा सकता है।

6. सदस्यता खंड

अंतिम खंड में एक कम्पनी खोलने की अपनी इच्छा के बारे में ज्ञापन के हस्ताक्षर कर्ताओं द्वारा घोषणा शामिल है। इसमें योग्य अंशों यदि कोई हैं उसको धारण करने की इच्छा भी शामिल है एवं इसमें व्यक्तियों के विवरण उसके हस्ताक्षर सहित प्रमाणित प्रतियाँ भी शामिल हैं। इस उद्देश्य के लिये सार्वजनिक कम्पनी में कम से 7 सदस्य निजी कम्पनी में कम से कम 2 सदस्य होने चाहिये।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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