प्लूटो ग्रह का व्यास और इसका द्रव्यमान कितना है

प्लूटो यह दूसरा सबसे भारी बौना ग्रह है। सामान्यतः यह नेपच्युन की कक्षा से बाहर रहता है। प्लूटो सौरमंउल के सात चंद्रमाओं से छोटा है। प्लूटो की कक्षा सूर्य की औसत दूरी से 5,913,520,000 किलोमीटर है। प्लूटो का व्यास 2274 किलोमीटर है और इसका द्रव्यमान 1,27e22 है। रोमन मिथको के अनुसार प्लूटो पाताल का देवता है।

प्लूटो को यह नाम इस ग्रह के अंधेरे के कारण और इसके आविष्कार पर्सीवल लावेल के आद्याक्षरों के कारण मिला है। प्लूओ को सन् 1930 में संयोग से खोजा गया था। युरेनस और नेप्च्युन की गति के आधार पर की गई गणना में गलती की वजह से नेपच्युन के परे एक और ग्रह के होने की भविष्यवाणी की गई थी।

लावेल वेधशाला अरिजोना में क्लायड टामबाग इस गणना की गलती से अनजान थे। उन्होंने पूरे आकाश का सावधानीपूर्वक निरीक्षण किया और प्लूटो को खोज निकाला। खोज के तुरंत बाद यह पता चल गया था कि प्लूटो इतना छोटा है कि यह दूसरे ग्रह की कक्षा में प्रभाव नहीं डाल सकता है।

इसका परिक्रमा पथ बाकी ग्रहों से ज्यादा झुका हुआ है। प्लूटो नेपच्यून की कक्षा को काटता हुआ प्रतीत होता है लेकिन परिक्रमा पथ के झुके होने से वह नेपच्युन से कभी नहीं टकराएगा। युरेनस की तरह प्लूटो का विषुवत उसके परिक्रमा पथ के प्रतल पर लंबबत है। प्लूटो की सतह पर तापमान -235 सेल्सियस से -210 सेल्सियस तक विचलन करता है।

गर्म क्षेत्र साधारण प्रकाश में गहरे नजर आते हैं। प्लूटो की संरचना अज्ञात है लेकिन उसके घनत्व के होने से अनुमान है कि यह ट्राइटन की तरह 70 प्रतिशत चट्टान और 30 प्रतिशत जल बर्फ से बना है। इसके चमकदार क्षेत्र नाईट्रोजन की बर्फ के साथ कुछ मात्रा में मिथेन, इथेन और कार्बन मोनोआक्साइड की बर्फ से ढके है। इसके गहरे क्षेत्रों की संरचना अज्ञात है लेकिन इन पर कार्बनिक पदार्थ होने की संभावना है। प्लूटो के वातावरण के विषय बहुत कम जानकारी है लेकिन शायद यह नाइट्रोजन के साथ कुछ मात्रा में मिथेन और कार्बन मोनोआक्साइड से बना हो सकता है। यह बहुत पतला है और दबाव भी कुछ मीलीबार है।

प्लूटो का वातावरण इसके सूर्य के निकट होने पर ही अस्तित्व में आता है शेष अधिकतर काल में यह बर्फ बन जाता है। जब प्लूटो सूर्य के निकट होता है तब इसका कुछ वातावरण उड़ भी जाता है। नासा के वैज्ञानिक इस ग्रह की यात्रा इसके वातावरण के जमे रहने के काल में करना चाहते हैं। प्लूटो और ट्राईटन की असामान्य कक्षाएं और उनके गुणधर्मों में समानता इन दोनों में ऐतिहासिक संबंध दर्शाती है।

एक समय में यह माना जाता था कि प्लूटो कभी नेपच्युन का चंद्रमा रहा होगा लेकिन अब यह ऐसा नहीं माना जाता है। अब यह माना जाता है कि ट्राईटन प्लूटो के जैसे स्वतंत्र रूप से सूर्य की परिक्रमा करते रहा होगा और किसी कारण से नेपच्युन के गुरुत्व की चपेट में आ गया होगा। शायद ट्राइटन, प्लूटो और शेरान शायद उड़ते बादल से सौरमण्डल में आए हुए पिंड हैं। पृथ्वी के चन्द्रमा की तरह शैरान शायद प्लूटो के किसी पिंड से टकराने से बना है। प्लूटो को दूरबीन से देखा जा सकता है।

- यह नेपच्युन का तीसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है। इसकी कक्षा नेपच्युन से 5,513,400 किलोमीटर है इसका व्यास 340 किलोमीटर है। नेरेइड सागरी जलपरी है और नेरेउस और डोरीस की 50 पुत्रियों में से एक है। इसकी खोज काईपर ने सन् 1949 में की थी।

Post a Comment

Previous Post Next Post