जलालुद्दीन रूमी फारसी साहित्य के प्रमुख कवि एवं संत थे । ये मूल रूप से
अफगानिस्तान के थे, लेकिन इनके जीवन का अधिक समय मध्य तुर्को के सल्जूक
दरबार में बीता। रूमी का जन्म फारस देश के बाल्ख़ नगर में सन् 604 हिजरी
(30सितम्बर, 1207 ई.) में हुआ था। रूमी के पिता शेख बहाउद्दीन फारस के थे। तत्कालीन सम्राट से मतभेद होने के कारण उनके पिता को बाल्ख़ नगर
छोड़ना पड़ा। बाल्ख़ छोड़ने के बाद रूमी अपने पिता के साथ अनेक स्थानों पर भ्रमण
करते रहे। इस दौरान आपने प्रमुख रूप से बगदाद, हजाज़ और लाइन्दा की यात्राएँ
कीं। रूमी का विवाह 18 वर्ष की उम्र में हुआ। इस बीच रूमी के पिता को वापस
राजदरबार में बुला लिया गया। 624 हिजरी में रूमी क्रौनिया गए। इसके चार वर्ष के
पश्चात आपके पिता की मृत्यु हो गई।
रूमी की प्रारम्भिक शिक्षा स्वाध्याय एवं लोक जीवन के अनुभवों से हुई। प्रारम्भिक समय में रूमी ने सैयद बरहानउद्दीन से शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद आपने दमिश्क और हलब के विद्यालयों में 15 वर्षो तक शिक्षा ग्रहण की। 40 वर्ष की उम्र तक रूमी की ख्याति, विद्वता दूर-दूर तक फैल चुकी थी। इस बीच रूमी की मुलाकात शम्स तबरेज़ से हुई। शम्स तबरेज़ ने रूमी को अध्यात्म विद्या की शिक्षा दी। इस प्रभाव के कारण रूमी अध्यात्म चिन्तन और साधना में डूब गये। रूमी के भक्तों ने इस परिवर्तन को नकारात्माक रूप में लिया तथा उन्होंने रूमी के छोटे बेटे इलाउद्दीन मुहम्मद के सहयोग से शम्स तबरेज़ की हत्या कर दी। इस घटना ने रूमी को संसार से विरक्त कर दिया। अपने प्रिय शिष्य मौलाना हसामाउद्दीन चिश्ती के आग्रह पर रूमी ने ‘मसनवी’ की रचना प्रारम्भ की। आपकी मसनवियाँ ईश्विर भक्ति और प्रेम के रंग में डूबी हुई है।
रूमी के साहित्य व वचनों पर उनके पारिवारिक वातावरण एवं पिता का बहुत प्रभाव पड़ा है। पिता के व्यक्तित्व और ज्ञान का सहज प्रभाव बालक रूमी पर पड़ा था। पिता के वचनों, उनकी मित्रमण्ड्ली और आस-पास के वातावरण से रूमी स्वाभाविक रूप से बौद्धिक चर्चा की और आकृष्ट हुए। फारस और तुर्क प्रदेश के लिए वह समय संक्रान्ति का था। ऐसी स्थिति में रूमी के विचारों व उनके उपदेशों ने आम जन को बहुत प्रभावित किया। आध्यात्मिक गुरू शम्स तबरेज़ की हत्या की खबर से वह इतने विचलित हुए कि वे सांसारिक जीवन से वीतरागी हो गये। इस घटना के प्रभावस्वरूप कुछ समय पश्चात आप अस्वस्थ हो गये। 68 वर्ष की उम्र में 672 हिजरी में रूमी का देहान्त हो गया।
रूमी की प्रारम्भिक शिक्षा स्वाध्याय एवं लोक जीवन के अनुभवों से हुई। प्रारम्भिक समय में रूमी ने सैयद बरहानउद्दीन से शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद आपने दमिश्क और हलब के विद्यालयों में 15 वर्षो तक शिक्षा ग्रहण की। 40 वर्ष की उम्र तक रूमी की ख्याति, विद्वता दूर-दूर तक फैल चुकी थी। इस बीच रूमी की मुलाकात शम्स तबरेज़ से हुई। शम्स तबरेज़ ने रूमी को अध्यात्म विद्या की शिक्षा दी। इस प्रभाव के कारण रूमी अध्यात्म चिन्तन और साधना में डूब गये। रूमी के भक्तों ने इस परिवर्तन को नकारात्माक रूप में लिया तथा उन्होंने रूमी के छोटे बेटे इलाउद्दीन मुहम्मद के सहयोग से शम्स तबरेज़ की हत्या कर दी। इस घटना ने रूमी को संसार से विरक्त कर दिया। अपने प्रिय शिष्य मौलाना हसामाउद्दीन चिश्ती के आग्रह पर रूमी ने ‘मसनवी’ की रचना प्रारम्भ की। आपकी मसनवियाँ ईश्विर भक्ति और प्रेम के रंग में डूबी हुई है।
रूमी के साहित्य व वचनों पर उनके पारिवारिक वातावरण एवं पिता का बहुत प्रभाव पड़ा है। पिता के व्यक्तित्व और ज्ञान का सहज प्रभाव बालक रूमी पर पड़ा था। पिता के वचनों, उनकी मित्रमण्ड्ली और आस-पास के वातावरण से रूमी स्वाभाविक रूप से बौद्धिक चर्चा की और आकृष्ट हुए। फारस और तुर्क प्रदेश के लिए वह समय संक्रान्ति का था। ऐसी स्थिति में रूमी के विचारों व उनके उपदेशों ने आम जन को बहुत प्रभावित किया। आध्यात्मिक गुरू शम्स तबरेज़ की हत्या की खबर से वह इतने विचलित हुए कि वे सांसारिक जीवन से वीतरागी हो गये। इस घटना के प्रभावस्वरूप कुछ समय पश्चात आप अस्वस्थ हो गये। 68 वर्ष की उम्र में 672 हिजरी में रूमी का देहान्त हो गया।
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