संविधान का सामान्य अर्थ एवं परिभाषा

संविधान नियमों का वह संग्रह है जो उन उद्देश्यों की प्राप्ति कराता है जिनके लिए शासन शक्ति प्रवर्तित की जाती है और जो शासन के उन विविध अंगों की सृष्टि करता है जिनके माध्यम से सरकार अपनी शक्ति का प्रयोग करती है।

संविधान का सामान्य अर्थ एवं परिभाषा

‘संविधान’ का सामान्य अर्थ होता है महत्वपूर्ण नियमों को जारी करना। संविधान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1688 की ब्रिटिश क्रांति के दौरान उपयोग में लाया गया था। माॅन्टेस्क्यू ब्रिटिश राजनीतिक व्यवस्था को सर्वप्रथम ब्रिटिश संविधान के रूप में व्यक्त किया था, परंतु ऐतिहासिक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान को प्रथम लिखित संविधान की मान्यता प्राप्त है जिसे 1787 के फिलाडेल्फिया सम्मेलन में तैयार किया गया था। अपने मौलिक रूप में संविधान का तात्पर्य पूर्ण मूलभूत नियम एवं सिद्धांतों से है जो किसी शासन की प्रकृति, उसके प्रकार एवं सीमाओं का निर्धारण भी करते हैं। शासन की सीमाओं, कर्तव्य एवं उसकी प्रकृति का निर्धारण करने वाले नियम विधिवत रूप से लिखित रूप में होते है और प्रत्येक देश की राजनीतिक व्यवस्था में सदस्यों के बहुमत के द्वारा ही संविधान तैयार किए जाते हैं।

प्रत्येक राज्य के लिए संविधान का होना आवश्यक है। संविधान के बिना किसी भी राज्य का शासन चलना अत्यन्त कठिन है। इतिहास के अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक राज्य में शासन को चलाने के लिए कुछ न कुछ नियम सदा से किसी न किसी रूप में अवश्य रहे हैं। प्रत्येक राज्य में, चाहे वह लोकतांत्रिक हो या अधिनायकवादी, कुछ ऐसे नियमों का स्वीकार किया जाना आवश्यक है जो राज्य की राजनीतिक संस्थाओं व शासकों की भूमिका को निर्धारित व सुनिश्चित कर, अराजकता से समाज को मुक्त रख सके। यहाँ तक कि अत्यधिक निरंकुश व स्वेच्छचारी राज्यों में भी कुछ नियमों का पाया जाना नितान्त आवश्यक है। 

सरकारें चाहे निरंकुश हों अथवा लोकतन्त्रात्मक, उनके संचालन के लिए कुछ नियमों का होना। सदैव सहायक होता है।प्रत्येक संविधान में सरकार के विभिन्न अंगों तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन होता है। इन सम्बन्धों का वर्णन करने वाले नियमों की विद्यमानता से सरकार के विभिन्न अंग एक दूसरे के सहयोग से कुशलतापूर्वक कार्य कर सकते हैं और उनमें संघर्ष या विरोध की सम्भावनाएँ भी कम हो जाती हैं। 

संविधान में नागरिकों के अधिकारों का भी वर्णन होता है। यह वर्णन ही इनकी सुरक्षा व्यवस्था है। इस प्रकार संविधान के द्वारा किसी भी राज्य का आधारभूत ढांचा संस्थागत रूप में खड़ा किया जाता है, जिससे हर व्यक्ति, संस्था व समूह की भूमिका सुनिश्चित हो जाती है। 

संविधान एक ऐसा आलेख  ही होता है जो निश्चित समय में निर्मित व स्वीकृत हो, पर यह संविधान का सही व ठीक अर्थ नहीं है। संविधान का आलेख, अर्थात् लिखित रूप में होना आवश्यक नहीं, किसी भी राज्य में परम्परागत नियमों की ऐसी व्यवस्था हो सकती है, जिनको विधिवत कभी लिखा नहीं गया फिर भी जो शासकों व नागरिकों के दिल-दिमाग में इतनी गहराई से जमे हों कि इससे सरकार पर न केवल प्रभावशाली नियंत्रण रहता हो अपितु सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था में हर एक की भूमिका निर्धारित रहती हो। ऐसे राजनीतिक समाज में यह परम्परागत नियम ही संविधान कहलाते हैं। 

संविधान एक प्रकार से किसी देश का वह एक या अधिक लेखपत्र होता है जिसमें उस देश के शासनप्रबन्ध में अनुशासन के मूल नियम संकलित हों। 

संविधान की परिभाषा

कानूनी इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार संविधान मौलिक नियम है जो लिखित या अलिखित रूप में होते हैं जिसके द्वारा किसी सरकार के चरित्र की स्थापना होती है और इसके द्वारा मूल सिद्धांतों को भी परिभाषित किया जाता है जिन्हें समाज के द्वारा पालन किया जाना होता है। किसी भी सभ्य समाज की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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