सार्वजनिक आय का वर्गीकरण और स्रोत

सार्वजनिक आय के स्रोत

सार्वजनिक आय का वर्गीकरण

1. ऐडमस्मिथ का वर्गीकरण

ऐडमस्मिथ ने आय को दो भागों में विभाजित किया है:- 
  1. नागरिकों से होने वाली आय - इस वर्ग में आय के वे सब साधन सम्मिलित हैं, जिनके अन्तर्गत सरकार को जनता से आय प्राप्त होती है जैसे कर। 
  2. राजकीय सम्पत्ति से होने वाली आय - इस वर्ग में वह आय आती है, जो सरकारी सम्पत्ति जैसे सरकारी भूमि व पूॅजी से होती है। ऐडमस्मिथ का यह वर्गीकरण आधुनिक दशाओं के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि इसमें दोनों ही वर्ग बहुत विस्तृत है। आजकल नागरिकों तथा राजकीय सम्पत्ति से भी कई प्रकार की आय होती है, और एक उपयुक्त वर्गीकरण में इनका उल्लेख भी आवश्यक है।

2. ऐडम्स का वर्गीकरण

ऐडम्स ने सार्वजनिक आय को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया हैः 
  1. प्रत्यक्ष आय - इसके अन्तर्गत अधिकांशतः सार्वजनिक भूमि, सार्वजनिक उद्योगों जैसे रेल, तार, डाक आदि तथा अन्य सरकारी सम्पत्ति से होने वाली आय होती है। 
  2. व्युत्पादित आय - इस आय के अन्तर्गत वह आय सम्मिलित है जो नागरिकों से वसूल की जाती है, जैसे कर, शुल्क, दण्ड आदि से होने वाली आय। 
  3. प्रत्याशित आय - इस वर्ग के अन्तर्गत सार्वजनिक साख से होने वाली आय होती है जैसे वांण्डस की बिक्री या ट्रेजरी नोट्स से होने वाली आय। उपर्युक्त वर्गीकरण का दोश यह है कि इसमें पहला वर्ग बहुत विस्तीर्ण हो गया है क्योकि इसके अन्तर्गत व्यापारिक कार्यो से होने वाली आय और प्रशासनिक कार्यों से होने वाली आय मिला दी गई है। परन्तु इन दोनों प्रकार की आयों के स्वरूप भिन्न है अतः इन्हें पृथक होना चाहिए।

3. सेलिगमैन का वर्गीकरण

सैलिगमैन ने सार्वजनिक आय को तीन भागों में विभक्त किया है: 

1. दानात्मक आय - दानात्मक आय से तात्पर्य उस सरकारी आय से है, जो कि प्रजा सरकार को दान-उपहार के रूप में देती है। इसकी दो विषेशताये है 1. यह ऐच्छिक होती है, 2. इसके बदले में सरकार व्यक्ति को कोई प्रत्यक्ष सेवा, सुविधा या वस्तु प्रदान नहीं करती। 

2. संविदात्मक आय - इस वर्ग में वे सब आय आती है जो राज्य को राजकीय उद्योगो और सम्पत्ति से प्राप्त होती है। साधारण व्यक्ति की भाॅति राज्य भी उद्योग और व्यवसाय चलाती है; उदाहरण के लिए, सरकार कारखाने खोलती है, रेल, मोटर गाडि़याॅ और हवाई जहाज की सेवायें प्रदान करती है। इस आय की दो विषेशतायें होती है:- 1. यह ऐच्छिक होती है। 2. इसके बदले में सरकार प्रत्यक्ष सेवा, सुविधा व वस्तु प्रदान करती है। 

3. अनिवार्य आय - इसके अन्तर्गत वह आय आती है जिसका देना व्यक्ति के लिए अनिवार्य होता है उसकी इच्छा पर निर्भर नहीं करता। ऐसी आय सरकार शासन-शक्ति, दण्ड विधान शक्ति तथा करारोपण शक्ति के द्वारा प्राप्त करती है। जुर्माने, कर, विशेषकर इस आय के उदाहरण है। इसकी दो विशेषतायें है-
  1. यह ऐच्छिक नहीं है। 
  2. इसके बदले में कोई प्रत्यक्ष सेवा, सुविधा नहीं दी जाती। उपर्युक्त वर्गीकरण का दोष यह है कि इसमें अनिवार्य आय का वर्ग बहुत विस्तीर्ण हो गया है क्योंकि इसमें कर से होने वाली आय और प्रशासनिक कार्यों से होने वाली आय दोनो ही ली जावेगी। परन्तु इन दोनों प्रकार की आयों के स्वरूप भिन्न है। अतः इन्हें पृथक होना चाहिए।

4. टेलर का वर्गीकरण

टेलर ने सार्वजनिक आय को चार भागों में विभाजित किया है ; 
  1. अनुदान तथा उपहार
  2. प्रशासनात्मक आय 
  3. व्यापारिक आय 
  4. कर
1. अनुदान तथा उपहार: इसके अन्तर्गत पहले तो वह आय सम्मिलित होती है, जो कि एक सार्वजनिक सरकार दूसरी सार्वजनिक सत्ता को सहायता अनुदान के रूप में देती है, जैसे केन्द्रीय सरकार राज्य सरकारों को या राज्य सरकार स्थानीय सरकारों को विभिन्न कार्यो के लिये अनुदान देती है। दूसरे सरकारों को उपहार के रूप में व्यक्तियो व गैर सरकारी संस्थाओं से कुछ धन मिल जाया करता है। परन्तु इस वर्ग की आय मात्रा के दृष्टिकोण से कोई विषेश महत्व की नहीं। इन दोनों प्रकार की आय की आधारभूत विशेषता यह है कि इनका मिलना दाता की स्वेच्छा पर निर्भर होता है और इसमें अनिवार्यता का तत्व नहीं होता।

2. प्रशासनात्मक आय: इस श्रेणी के अन्तर्गत शुल्क, लाइसेन्स शुल्क, जुर्माने, जब्तगी, विषेश निर्धारण तथा वह आय सम्मिलित है जो कि राज्य को किसी व्यक्ति के बिना उत्तराधिकारी छोड़े हुए मर जाने पर उसकी सम्पत्ति से मिलती हैं वह आय सरकार की प्रशासनिक गतिविधियों के फलस्वरूप होती है।

3. व्यापारिक आय: इस आय के अन्तर्गत वह आय शामिल है, जो सरकार के द्वारा उत्पन्न की हुई वस्तुओं को खरीदने पर मूल्यों के रूप में उसे दी जाती है, जैसे डाकखर्च, सरकारी निगमों को रुपया उधार देने पर, मिला ब्याज, अथवा सरकारी विद्युत कम्पनी को दिये जाने वाले मूल्य भी इसमें शामिल है। इस आय के अन्तर्गत सरकार को प्राप्त होने वाली आय तथा दाता को होने वाले लाभ में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है, किन्तु सामाजिक हित को ध्यान में रखते हुए अपनी सभी सेवाओं के बदले में सरकार अपनी लागत से कुछ कम ही मूल्य वसूल करती है, जैसे प्रायः डाक सेवाओं के बारे में यह बात अच्छी तरह लागू होती है।

4. कर: विभिन्न प्रकार के कर जो सरकार के द्वारा लगाये जाते है इस श्रेणी में रखे जाते है। टेलर का यह वर्गीकरण अधिक सुव्यवस्थित, तर्क संगत तथा उपयोगी प्रतीत होता है। उसने निश्चय ही आय ही आय के विभिन्न साधनों को उनके स्वभाव के अनुसार विभिन्न वर्गो में प्रस्तुत किया है।

5. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वर्गीकरण

भारत में रिजर्व बैंक ने केन्द्रीय और राज्य सरकारो की आय के साधनों का अत्यन्त उपयोगी वर्गीकरण दिया है। इस वर्गीकरण के अनुसार सम्पूर्ण आय को प्रमुख भागों में बाॅटा गया है। 

1. कर से आय 2. गैर-कर आय 1. कर से आय के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के कर जैसे 1. आय तथा व्यय पर कर 2़. सम्पत्ति तथा पूॅजी के सौदों पर कर तथा 3. वस्तुओं और सेवाओं पर कर शामिल है। 2. गैर-कर आय के अन्तर्गत प्रशासनात्मक प्राप्तियाॅ, सार्वजनिक उद्योगों जैसे रेलवे, टेलीग्राफ, मुद्रा तथा टकसाल से आय तथा अन्य आय (जैसे राज्यो से मिला ब्याज) शामिल है। 

राज्यों के सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार के द्वारा दिए हुए अनुदान तथा अन्य प्रतिदान भी सम्मिलित है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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