सुखवाद क्या है? सुख की यह परिभाषा

सुखवाद क्या है

सुखवाद उस नैतिक चिंतन को कहते है जो सुख को ही मानव जीवन का परमध्येय-शुभ मानता है और ‘सुख की इच्छा’ को ही मनुष्य के समस्त कर्मो की एकमात्र मूल प्रेरणा के रूप में स्वीकार करता है। सुखवाद के भी दो भेद है-नैतिक सुखवाद एवं मनोवैज्ञानिक सुखवाद। जो सिद्धान्त यह मानता है कि मनुष्य के लिए सुख या आनन्द के अतिरिक्त कोई वस्तु अपने आप में शुभ नही है उसे नैतिक सुखवाद तथा जो यह मानते है कि मनुष्य के समस्त कर्म सुख प्राप्त करने की स्वाभाविक इच्छा से प्रेरित है उन्हें मनोवैज्ञानिक सुखवाद कहा जाता है। 

सुख क्या है? इस प्रश्न का कोई सर्वमान्य एवं सुनिश्चित उत्तर देना अत्यंत कठिन है। यद्यपि हम सभी अपने जीवन में सुख का अनुभव करते है तथा उसे दुःख से भिन्न भी मानते है लेकिन जब इसे परिभाषित करने का मौका आता है तो हमें कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सामान्यतः ‘‘शारीरिक पीड़ा तथा मानसिक कष्ट के अभाव को दुख कहा जा सकता है।’’ सुख की यह परिभाषा निषेधात्मक है क्योंकि इसमें सुख को केवल दुःख के अभाव के रूप में समझा गया है। सुख को वांछनीय अनुभूति के रूप में भी स्वीकार किया है। 

सुख को जीवन का आनन्द नहीं माना जा सकता है यद्यपि दोनों ही मूलतः संतोष देने वाली अनुभूतियाँ हैं। इन्द्रिय संवेदनों एवं प्राकृतिक इच्छाओं के पूर्ण होने पर उत्पन्न अनुभूति, सुख कही जा सकती है जबकि आनन्द का सम्बन्ध मनुष्य की प्राकृतिक शारीरिक इच्छाओं की अपेक्षा उसके मानसिक, बौद्धिक पक्ष से अधिक होता है। इसलिए आनन्द, सुख की अनुभूति की तुलना में कम तीव्र लेकिन स्थायी अनुभूति है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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