बादशाह जहांगीर स्वयं एक इतिहासकार था । उसे लिखने का बड़ा शौक था। उसने अपनी
आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी नाम से लिखी। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कृति है। इससे हमें
समकालीन राजनैतिक गतिविधियों की बड़े रूप में जानकारी प्राप्त होती है। जहांगीर ने अपने शासनकाल
के 12वें वर्ष तक की घटनाओं की जानकारी स्वयं लिखी थी। इसके पश्चात् उसने यह कार्य मोताबिद
खाँ जो बख्शी के पद पर था सौंप दिया। मोताबिद खाँ ने 19 वर्ष तक अपना लेखन कार्य सामान्य भाषा
में किया। इसका नाम सर्वप्रथम इकबालनामा-ए-जहाँगीरी रखा।
जहाँगीर की मृत्यु तक इसकी संपूर्ण
जानकारी इस ग्रंथ में मिलती है। यह तीन भागों में विभक्त है। पहला भाग बाबर तथा हुमायू से
संबंधित है। दूसरे भाग में अकबर का विवरण है। तीसरे भाग में जहाँगीर का वृतान्त है। जहाँगीर ने लिखा
है कि ‘‘मेरा पिता, पण्डितों, हिन्दुस्तान के बुद्धीमान पुरूषों से बातचीत किया करता था। यद्यपि वह
निरक्षर था। यद्यपि वह बुद्धीमान लोगों के सत्संग में इतना उत्कृष्ट हो गया कि उसकी बातचीत से कोई
यह नहीं समझ पाता था कि वह अशिक्षित है। अकबर के शासन काल की आर्थिक व्यवस्था की जानकारी
भी इससे मिलती है।
जहांगीर स्वयं व परिवार वालों को मद्यमान करने की अनुमति सीमित मात्रा में
देता है। वह लिखता है कि कुछ दिन वह अफीम भी खाने लगा था। जहांगीरी में उल्लेख है कि उसने
न्याय-जन्जीर आगरा दुर्ग में लगाई थी। यह स्वर्ण जंजीर 40 गज लंबी थी और इसमें 60 घंटिया लगी
थी। जिसकी तौल 10 मन के लगभग है, जो ईराक के 100 मन के बराबर है।
जहांगीरी में उसने 12 अध्यादेशों का विवरण दिया है।
जहांगीरी में उसने 12 अध्यादेशों का विवरण दिया है।
- जकात कर निषेध,
- आम रास्तों पर डकैती और चोरी के विषय में नियम
- मृतक व्यक्तियों की सम्पत्ति का बिना कर उत्तराधिकार
- समस्त मादक वस्तुओं और मद्य के विषय में
- मकान छीनने और अपराधियों के नाक-कान काटना निषेध
- गसबी (बगैर अनुमति के किसी की सम्पत्ति हरण) का निषेध
- अस्पतालों का निर्माण और रोगियों की चिकित्सा के लिये हकीमों की नियुक्ति
- जानवरों का वध निषेध (कुछ दिन)
- रविवार के प्रति आदर
- मनसवों और जागीरों की आम पुष्टि
- आयमा एवं मदद माशा भूमियों की पुष्टि
- कैदियों की मुक्ति।