इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद की म्युनिसिपल राजनीति में भाग लिया, जिसमें ये अपने पति सहित सदस्य चुनी गई। 1935 में प्रान्तीय स्वायŸता विधानसभा के चुनाव में वे चुनी गई। कांग्रेस के मंत्रिमण्डल में उन्हें स्थानीय स्वशासन, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग मिला। नई विधानसभा को भारत का संविधान बनाने के लिये एक संविधान सभा स्थापित करने की मांग की गई। इस जिम्मेदारी को श्री विजयलक्ष्मी पंडित ने निभाया।
1940 में विजयलक्ष्मी को नैनी सेन्ट्रल जेल
में गिरफ्तार करके भेजा गया। कुछ दिन बाद वे यहां से छूट गई। अगस्त 1942
में जब भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव पास हुआ तब विजय लक्ष्मी इलाहाबाद
में थी। उन्हें, उनके पति और पुत्री के साथ बंदी बना लिया गया। जुलाई 1943
में वे छोडी गई।
1943 में उन्होंने अकाल पीडि़तों को सहायता दी। 19 जनवरी
1946 में आम निर्वाचन में उन्हें सफलता प्राप्त हुई। सितम्बर 1946 को उन्होंने
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व न्यूयार्क में किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे रूस में भारत की पहली राजदूत बनाकर भेजी गई। अमरीका में भी वे भारत की राजदूत बनकर रही। 1952 के लोकसभा और राज्यसभा के आम निर्वाचन में वे भारी बहुमत से जीती । 1952 के अंत में 36 सदस्यों का शिष्ट मण्डल चीन गया था। इस शिष्टमण्डल की नेता विजयलक्ष्मी थी। वे 1953 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की अध्यक्ष निर्वाचित हुई। 1954 में इंग्लैण्ड में भारत की राजपूत बनकर लंदन गई। यहां ये 8 वर्ष रहीं। आयरलैण्ड और स्पेन में भी वे राजदूत बनाकर भेजी गई। 1962 में वे वापस भारत आ गई।
27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के उपरान्त भी वे राजनीतिक गतिविधियों से जुडी रही। 1 दिसम्बर 1990 को देहरादून में उनकी मृत्यु हो गई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे रूस में भारत की पहली राजदूत बनाकर भेजी गई। अमरीका में भी वे भारत की राजदूत बनकर रही। 1952 के लोकसभा और राज्यसभा के आम निर्वाचन में वे भारी बहुमत से जीती । 1952 के अंत में 36 सदस्यों का शिष्ट मण्डल चीन गया था। इस शिष्टमण्डल की नेता विजयलक्ष्मी थी। वे 1953 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की अध्यक्ष निर्वाचित हुई। 1954 में इंग्लैण्ड में भारत की राजपूत बनकर लंदन गई। यहां ये 8 वर्ष रहीं। आयरलैण्ड और स्पेन में भी वे राजदूत बनाकर भेजी गई। 1962 में वे वापस भारत आ गई।
27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के उपरान्त भी वे राजनीतिक गतिविधियों से जुडी रही। 1 दिसम्बर 1990 को देहरादून में उनकी मृत्यु हो गई।
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विजय लक्ष्मी पंडित