William Harrison Moreland (विलियम हैरीसन मोरलैण्ड) का परिचय और कार्य

मध्यकालीन भारत के आर्थिक इतिहास पर लिखने वाले विद्धानों में ब्रिटिश इतिहासकार डब्लू.एच. मोरलैण्ड का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। उनके द्वारा लिखे गये मध्यकालीन भारतीय इतिहास में साम्राज्यवादी उपागम के अनुप्रयोग के चिन्ह स्पष्टतः देखे जा सकते हैं। 1890 ई. में मोरलैण्ड महोदय सहायक बन्दोवस्त अधिकारी बने। 1894 ई. में सहायक आयुक्त बने, 1899 ई. में वे कलेक्टर बने एवं 1899 ई. में उन्हें डायरेक्टर आफ लैण्ड रिकार्ड एवं एग्रीकल्चर बनाया गया। इस प्रकार 25 वर्षों तक वे भारतीय भूमि लगान प्रशासन से जुड़े रहे। अपने द्वारा अर्जित इस अर्थव्यवस्था संबंधी ज्ञान को सामने लाने के लिए उन्होंने निम्न पुस्तकों का सृजन किया -

(1) The Agriculture of the United Previnces (1904 AD)
(2) The Revenue Administration of the United Provinces (1911 AD)
(3) Notes on Agricultural Conditions and Problems of the United Provinces (1913 AD)
(4) An Introduction to economics for Indian Students (1920 AD)
(5) Indian at the death of Akbar, An Economic Study (1920 AD)
(6) From Akbar to Aurangzeb (1923 AD)

‘इंंडिया एट द डेथ आफ अकबर: एन इकानामिक स्टडी’ मोरलैण्ड महोदय की एक प्रमुख कृति है। इसमें मोरलैण्ड ने अकबर के समय आम जनता की स्थिति, व्यापार एवं उद्योगों पर मुगल प्रशासन का प्रभाव, कृषि एवं गैर कृषि उत्पादन, उपभोक्ता वर्ग एवं वाणिज्यिक स्थिति, आदि की सांगोपांग विवेचना प्रस्तुत की है।

चूँकि मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ एवं महान सम्राट अकबर (1558-1605 ई.) था। मोरलैण्ड महोदय साम्राज्यवादी उपागम के तहत इस कृति द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से यह दर्शाना चाहते थे कि अकबर की मृत्यु के समय भारत की आर्थिक स्थिति, ब्रिटिश शासन की तुलना में अच्छी नहीं थी। मोरलैण्ड ने बताया है कि मुगलकाल में लगान की माँग ऊँची थी, जो उपज का 1/3 थी। कृषकों की आर्थिक स्थिति दयनीय थी। जागीरदार अपने लाभ के लिये अधिक से अधिक लगान वसूल करने का प्रयास करते थे। कृषि उत्पादन के प्रोत्साहन हेतु उन्होंने कोई कार्य नहीं किया, परिणामस्वरूप कृषि की प्रगति हेतु परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं। सम्पत्ति का वितरण असमान था। उच्च वर्ग की आय अत्यधिक थी एवं कृषक वर्ग की दशा दयनीय थी।

मोरलैण्ड ने निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि इस समय - ‘उत्पादन का कम होना एवं सम्पत्ति का असमान वितरण कृषकों के उत्पीड़न एवं दयनीय दशा का मूल कारण था। अपने साम्राज्यवादी दृष्टिकोण का उपयोग करते हुये इस कृति के पृ. 188 पर वे बताते हैं कि वर्तमान की तुलना में सामूहिक रूप से कृषक वर्ग की स्थिति मुगलकाल में खराब थी। वे साम्राज्यवादी उपागम का उपयोग करते हुये बताते हैं कि मुगल व्यवस्था की तुलना में ब्रिटिश व्यवस्था अधिक दयालु है।’

मोरलैण्ड महोदय की एक और कृति ‘फ्राम अकबर टू औरंगजेब’ में भी उनका साम्राज्यवादी दृष्टिकोण स्पष्टतः परिलक्षित होता है। उन्होंने इसमें लिखा है कि मुस्लिम शासकों के समय 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में कृषक वर्ग दयनीय स्थिति में था, उनका बहुविध शोषण होता था। वे बताते हैं कि भारतीय माल में गुणवत्ता की कमी थी एवं मिलावट होती थी, मुगल शासक न तो मिलावट की प्रवृत्ति को रोक सके और न ही गुणवत्ता में वृद्धि कर सके इसीलिये अमेरिकी नील एवं ब्रिटिश काटन ने भारतीय उत्पादन को विस्थापित कर दिया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि मध्यकालीन भारतीय आर्थिक इतिहास का साम्राज्यवादी उपागम से लेखन डब्ल्यू.एच. मोरलैण्ड द्वारा किया गया। इलियट एवं डाउसन एवं मोरलैण्ड के अलावा विसेण्ट स्मिथ द्वारा लिखित कृतियों में भी साम्राज्यवादी उपागम का अनुप्रयोग स्पष्टतः देखा जा सकता है। विसेण्ट स्मिथ भी एक महान साम्राज्यवादी इतिहासकार थे। 

ब्रिटिश शासन को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिये उन्होंने - ‘अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया’ एवं ‘अकबर दी ग्रेट मुगल’ नामक कृतियाँ लिखी।

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