सिनेमा का आविष्कार किसने और कब किया

चलचित्र या सिनेमा का आविष्कार एक ही वक्त में सन् 1891 के आस-पास बहुत से लोगों ने किया था, जिनमें, थामस एडिसन और निकोला रेस्ला थे। उनमें एडिसन की कंपनी ने किनोटोस्कोप का पेटेंट करवाया, इसलिए किसी एक को चलचित्र का जनक नहीं कह सकते। मगर उस समय फिल्म का कांसेप्ट या सोच बिल्कुल भी नहीं थी। लेकिन उनके पहले 1867 में विलियम लिंकन र्ने oopraxiscope का पेटेंट करवाया था जिसमें एक मशीन के सामने बैठ के चलते हुए ड्राइंग या फोटो को देखा जा सकता था।

पहला चलचित्र जिसमें लोग पैसे देकर और टिकट लेके देखने आए उसको लुमियर बंधु ने 1895 में पेरिस में आयोजित किया था। कायदे में पहली फिल्म उसी को बोला जा सकता है।

ये भी कह सकते हैं कि भारत में सिनेमा संयोगवश आया। लुमियर ब्रदर्स ने अपने आविष्कार से दुनिया को चमत्कृत तो किया ही, साथ ही उन्होंने पूरी दुनिया में जल्दी से जल्दी पहुंचाने का भी प्रयत्न भी किया। उन्होंने अपने एजेंट के जरिए आस्ट्रेलिया के लिए फिल्म पैकेज रवाना किया। एजेंट माॅरिस सेस्टियर को मुंबई आने पर पता चला कि आस्ट्रेलिया जाने वाले हवाई जहाज में खराबी के चलते उन्हें यहां दो चार दिन ठहरना होगा। वह कोलाबा स्थित वाॅटसन होटल में जाकर ठहर गया। मौरिस के दिमाग में आया कि जो काम आस्ट्रेलिया जाकर करना है उसे बंबई में ही क्यों न कर अंजाम दिया जाए। लिहाजा वह 6 जुलाई 1896 को टाइम्स आॅफ इंडिया के दफ्तर गया और अगले दिन के लिए एक विज्ञापन बुक कराया। दुनिया का अजूबा नाम से प्रचारित इस विज्ञापन को पढ़कर बंबई के कोने-कोने से दर्शकों का हुजूम वाॅटसन होटल के लिए उमड़ पड़ा। 1 रुपए की प्रवेश दर से लगभग 200 दर्शकों ने 7 जुलाई 1896 की शाम 20वीं सदी के इस चमत्कार से साक्षात्कार किया। इस तरह भारत में सिनेमा संयोगवश आ गया।

इस दिन के पहले प्रदर्शन में बंबई के छायाकार हरिश्चन्द्र सखाराम भारवडेकर भी शामिल थे। उनके दिमाग में लुमिएर ब्रदर्स की फिल्में देखकर यह विचार उत्पन्न हुआ कि क्यों न इस प्रकार की स्वेदशी फिल्मों का निर्माण कर उनका प्रदर्शन किया जाए। वे बंबई में 1880 से अपना फोटो स्टूडियो संचालित कर रहे थे।

सन् 1898 में उन्होंने लुमिएर सिनेमा-टोग्राफ यंत्र 21 गिन्नी भेजकर मंगाया। सावेदादा के नाम से परिचित भारवडेकर ने बंबई के हैगिंग गार्डर में एक कुश्ती का आयोजन कर उस पर लघु फिल्म का निर्माण किया। उनकी दूसरी फिल्म सर्कस के बंदरों की ट्रेनिंग पर आधारित थी। इन दोनों फिल्मों को उन्होंने डबलपिंग के लिए लंदन भेजा। सन् 1899 में विदेशी फिल्मों के साथ जोड़कर उनका प्रदर्शन किया। इस प्रकार सावेदार पहले भारतीय हैं जिन्होंने अपनी बुद्धि कौशल से स्वदेशी लघु फिल्मों का निर्माण कर प्रथम निर्माता निर्देशक तथा प्रदर्शक होने का श्रेय प्राप्त किया।

वाटसन होटल में 7 से 13 जुलाई 1896 तक फिल्मों के लगातार प्रदर्शन होते रहे। बाद में इस प्रदर्शन को 14 जुलाई से बम्बई के नौवेल्टी थिएटर में शिफ्ट कर दिया गया, जहां से 15 अगस्त, 1896 तक लगातार चलते रहे।

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