सिख धर्म सुधार आंदोलन के प्रणेता कौन थे?

सिख धर्म

सिख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव को माना जाता है । सिख धर्म पाखण्ड, अंधविश्वासों और रूढि़यों को तोड़कर समरसता और सौहार्द को अपनाया । गुरु ग्रंथ साहिब नामक प्रसिद्ध ग्रंथ से सिख धर्म की शिक्षा मिलती है । सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह महाराज हुए । उन्होंने 1705 में गुरु ग्रंथ साहिब को नया रूप दिया । इस धर्म में यह बतलाया गया है कि व्यक्ति को मुक्ति के लिए गुरु की शरण में जाना आवश्यक है ।

सिख धर्म सुधार आंदोलन के प्रणेता 

सिक्ख धर्म सुधार आंदोलन पंजाब और उत्तर पाकिस्तान सीमा प्रान्त में प्रसारित हुआ सिक्ख धर्म सुधार आन्दोलन के प्रवर्तक ’’दयाल दास‘‘ थे। इनका प्रमुख उद्देश्य सिक्ख धर्म में प्रचलित हिन्दू परम्पराओं तथा रीति रिवाजों के विरोध में उपदेश दिया तथा मूर्ति पूजा पर विरोध प्रकट किया दयाल दास के अनुयायी ’’निरंकारी‘‘कहलाए दयालदास तथा उनके उत्तराधिकारी को गुरु की पदवी दी गई थी।

1815 ई में सिक्ख धर्म में एक और सुधार आन्दोलन नामधारियों के द्वारा चलाया गया था। जिसका नेतृत्व रामसिंह ने किया था। वास्तविक रूप से आन्दोलन द्वारा धर्म में नैतिकता, स्वच्छता, सादगी के समावेश पर बल दिया गया। भक्ति संगीत को ईश्वर की आराधना को उचित माध्यम बनाया गया। इनके अनुयायियों को साफ और श्वेत वस्त्र पहनने होते थे तथा मांस मदिरा को त्यागना होता था। रामसिंह अंग्रेजों से युद्ध में पकड़े गये उन्हे रंगून भेज दिया गया और 1885 में उनकी मृत्यु हो गई।

19वीं सदी में जब पाश्चात्य शिक्षा ने सिक्ख सम्प्रदाय को भी प्रभावित किया तो सिक्ख धर्म सुधारकों द्वारा अमृतसर में सिंह सभा आन्दोलन की स्थापना की गई। इस संस्था के साथ खालसा दीवान ने भी सम्मिलित कार्य किया था। इन संस्थाओं ने बहुत से गुरूद्वारे और कालेजों को स्थापित किए थे। इस आन्दोलन द्वारा पाश्चात्य शिक्षा का लाभ शिक्षा द्वारा सिक्ख समाज तक पहुंचाने का प्रयत्न किया गया। इसके अतिरिक्त पिछडे़ एवं अशिक्षित सिक्खों में ईसाई धर्म के प्रचारक और हिन्दूआंे की बढ़ती गतिविधियाँ रोकी गई।

1920 में सिंह सभा का ही एक छोटा रूप ‘अकाली लहर‘ आन्दोलन प्रारंभ हुआ। यह आन्दोलन वास्तविक रूप से गुरूद्वारों के भ्रष्ट महंतो के विरूद्ध था। ये महंत गुरूद्वारे को पैतश्क सम्पत्ति मानते थे तथा अंगे्रजों द्वारा इन्हे समर्थन भी प्राप्त था।

गुरूद्वारे के उद्धार तथा महंतो के विरोध में 1921 में अकालियों ने अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। यद्यपि सरकार ने इस आन्दोलन का तीव्र दमन किया परंतु अंततः सरकार को अकाली दल के समर्थन में 1922 में गुरूद्वारा एक्ट पारित करना पड़ा जिसे 1925 में संशोधित किया गया।

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