पूर्व में पाठ्यचर्या का अर्थ संकुचित था परन्तु आज के संदर्भ में अधिक व्यापक अर्थ है। अतीत में कुछ विषयों में शिक्षा के प्रारुप को ही पाठ्यचर्या कहते थे लेकिन वर्तमान संदर्भ में बालक को भावी जीवन के लिए तैयार कर सके ऐसा पाठ्यचर्या होना चाहिए केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं होना चाहिए। पाठ्यचर्या बनाते समय बच्चों की आवश्यकता और विकास के प्रत्येक पक्ष का ध्यान रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमलोग एक विकासशील देश में रह रहे हैं जिसकी अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी विकास की अपेक्षाएं हैं।
पाठ्यचर्या का एक महत्वपूर्ण पहलू विषय वस्तु भी है जिसके
माध्यम से बालक और समाज की आवश्यकताएँ पूरी होती है।
पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धांत
पाठ्यचर्या निर्माण के बहुत सारे सिद्धान्त हैं जिनमें कुछ प्रमुख सिद्धान्त हैंः- उपयोगिता का सिद्धान्त, क्रियाशीलता का सिद्धान्त, प्रजातांत्रिक मूल्यों का समाहित करने का सिद्धान्त, अग्रदर्शिता का सिद्धान्त,अवकाश के क्षणों के सदुपयोग का सिद्धान्त, छात्र केन्द्रित सिद्धान्त, खेल और कार्य की क्रियाओं के अन्तर का सिद्धान्त, सामाजिक आदर्शों का सिद्धान्त, स्थानीय परिस्थितियों से सम्बन्धित करने का सिद्धान्त, विविधता एवं लचीलेपन का सिद्धान्त, अनुभवों की पूर्णता का सिद्धान्त, स्वस्थ आचरण के आदर्शों की प्राप्ति का सिद्धान्त, जीवन सम्बन्धी समस्त क्रियाओं के समावेश का सिद्धान्त आदि।
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