चीन की महान दीवार का निर्माण क्यों और किसने किया था?

चीन की महान दीवार का निर्माण क्यों और किसने किया था?

यह दीवार लगभग 22 फुट ऊँची, 20 फुट चौड़ी और 1,800 मील लम्बी है। इसमें लगभग प्रत्येक 100 फुट पर चालीस फुट चौड़े स्तम्भ या बुर्ज बने हुए हैं 

चीन की महान दीवार का निर्माण क्यों और किसने किया था?

चीन की महान दीवार का निर्माण ने किया था। शि-ह्नांग-टी के अनेक कार्य प्रसिद्ध हैं। उसने चीन पर बार-बार होने वाले बर्बर और जंगली हूणों के आक्रमणों को रोक दिया। उसने अपनी वीरता एवं सैन्य संचालन से उन्हें भयानक पराजय दी। उत्तर की ओर से जंगली जातियों के इन आक्रमणों को सदा के लिए असम्भव बनाने के लिए उसने चीन की महान दीवार का निर्माण कराया। यह दीवार लगभग 22 फुट ऊँची, 20 फुट चौड़ी और 1,800 मील लम्बी है। इसमें लगभग प्रत्येक 100 फुट पर चालीस फुट चौड़े स्तम्भ या बुर्ज बने हुए हैं जिनके बीच से होकर दीवार पर यातायात निरन्तर रूप से हो सकता है। 

दीवार पर और स्तम्भों पर किलेबन्दी है जिसके पीछे सुरक्षित खड़े होकर सिपाही तीर एवं अस्त्र छोड़ सकते हैं। इस दीवार को बनाने के लिए अधिकतर काम कैदियों से लिया गया था। हो सकता है कि काम करने वालों की संख्या बढ़ाने के लिए अनेक लोगों को दंडित कर दिया गया हो। 

चीनी लोग इस दीवार के निर्माण के विरुद्ध थे क्योंकि इसे बेगार के मजदूर पकड़ कर बनवाया गया था।

शि-ह्नांग-टी-शि-ह्नांग-टी अपने आप को चीन का प्रथम सम्राट कहता था तथा चाहता था कि चीन का इतिहास उसी के समय से आरम्भ माना जाए।

शि-ह्नांग-टी-शि-ह्नांग-टी अपने आप को चीन का प्रथम सम्राट कहता था तथा चाहता था कि चीन का इतिहास उसी के समय से आरम्भ माना जाए। इसके लिए उसने यह निश्चय किया कि सारे प्राचीन साहित्य को नष्ट कर दिया जाए। प्राचीन साहित्य के रहने पर उसकी इस आकाँक्षा का पूरा हो पाना असम्भव था। उसने कृषि, ज्योतिष और चिकित्सा शास्त्रा की पुस्तकों को छोड़कर शेष सभी पुस्तकों को नष्ट करने की ठान ली। परिणाम यह हुआ कि चीन के प्राचीन और बहुमूल्य साहित्य के असंख्य ग्रन्थ नष्ट कर दिये गये। विद्वानों एवं विद्या प्रेमियों ने ग्रन्थों की रक्षा करनी चाही, तो सम्राट ने या तो उन्हें प्राण-दण्ड दे दिया या विशाल दीवार पर मजदूरों की भाँति काम करने को भेज दिया। फिर भी ऐसे लोगों के साहस के बल पर अनेक ग्रंथों की रक्षा हो गई। इन सुरक्षित ग्रंथों में महात्मा कन्फ्रयूशियस व महात्मा लाओजी के ग्रन्थ भी हैं। 

शि-ह्नांग-टी की मृत्यु 210 ई. पू. में हो गई। उसके संसार से विदा होते ही लोगों ने पुराने साहित्य को पुनः मान्यता तथा आदर प्रदान किया।

Post a Comment

Previous Post Next Post