दबाव समूह किसे कहते हैं? हित समूह व दबाव समूह में अन्तर

समाज में विभिन्न प्रकार के हित पाये जाते हैं, जैसे-मजदूर, कृषक, उद्योगपति, शिक्षक व्यवसायी आदि। जब कोई छोटा अथवा बड़ा हित संगठित रूप धारण कर लेता है तब उसे हित-समूह कहा जाता है। इस समूह का उद्देश्य अपने सदस्यों के विविध सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक हितों की रक्षा करना होता है। जब कोई हित-समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार से सहायता चाहने लगता है या अपने सदस्यों के हितों के अनुकूल के निर्माण और संसोधन  के लिए विधायकों को प्रभावित करने लगता है तब उसे दबाव समूह कहा जाता है।

दबाव समूह किसे कहते हैं

हित-समूह समाज में पाये जाने वाले विशेष हितों के संगठन होते हैं जो अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार पर ऐसी किसी भी नीति को अपनाने के लिए दबाव डालते हैं जो उनके हितों के प्रतिकूल हों तथा अपने हितों की पूर्ति के लिए समाचार-पत्रों, पर्चा, रेडियो, व्यक्तिगत संपर्क तथा अन्य माध्यमों के द्वारा सरकार पर दबाव डालते हैं जिस कारण उन्हें दबाव-समूह कहा जाता है।

दबाव समूह की परिभाषा

मायरन बिनर ने दबाव समूह की परिभाषा देते हुए लिखा है कि दबाव-गुट अथवा हित-समूह से हमारा अभिप्राय ऐसे किसी ऐच्छिक रूप से संगठित समूह से होता है जो सरकार संगठन से बाहर रहकर सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति, सरकार की नीति, इसके प्रशासन तथा इसके निर्णय को प्रभावित करने का प्रयत्न करता है। इन समूहों को दबाव-समूह या हित-समूह इसलिए कहा जाता है कि इनका निर्माण विशेष हितों की रक्षा के लिए होता है और ये अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से विधायकों के साथ संपर्क स्थापित करते हैं तथा उन पर किसी विधायक विशेष के पक्ष अथवा विपक्ष से मतदान के लिए दबाव डालते हैं।

कार्टर एवं हर्ज ने भी हित तथा दबाव-समूह के बारे में लिखा है कि एक स्वतन्त्र समाज के हित समूहों को स्वतन्त्र रूप से संगठित होने की अनुमति होती है और जब ये समूह सरकारी यंत्रा और प्रक्रिया पर प्रभाव डालने का प्रयत्न करते हैं और इस प्रकार कानूनों, नियमों, लाइसेंस, करारोपण तथा अन्य विधायी और प्रशासकीय कार्यों को अपने अनुवूफल ढालने की चेष्टा करते हैं, तो स्पष्ट ही ये हित ;पदजमतमेजद्ध दबाव-समूह ;च्तमेेनतम ळतवनचेद्ध में बदल जाते हैं। अब हित-समूहों की गतिविधियाँ सरकार पर दबाव डालने की हो जाती है।

ओडिगार्ड ने भी लिखा है, एक दबाव-समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है जिनके एक अथवा समान उद्देश्य एवं स्वार्थ हों और जो घटनाओं के क्रम को, विशेष रूप से सार्वजनिक नीति के निर्माण और शासन को इसलिए प्रभावित करने का ध्यान करें कि उनके हितों की रक्षा और वृद्धी हो सके।

हित समूह व दबाव समूह में अन्तर

कुछ विद्वान हित समूह और दबाव समूह में कोई अन्तर नहीं मानते, लेकिन दोनों में आधारभूत समानताएं होने के बावजूद भी अन्तर है। जब कोई समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजनीति को प्रभावित करने को तैयार हो जाता है तो उसे हित समूह कहा जाता हैं जब कोई हित समूह अत्यधिक सक्रिय होकर अन्य हित समूहों को पीछे धकेलकर अपने हितों की सिद्धि के लिए सरकार पर अपने दबाव बढ़ा लेता है तो उसे दबाव समूह की संज्ञा दी जाती है। 

कार्टर और हर्ज ने दबाव समूह और हित समूह में अन्तर बताते हुए लिखा है-”विभिन्न आर्थिक व्यावसायिक, धार्मिक, नैतिक और अन्य समूहों से परिपूर्ण आधुनिक बहुलवादी समाज के सामने अनिवार्य रूप से एक बड़ी समस्या यही है कि इन विभिन्न हितों तथा शासन और राजनीति के बीच में सम्बन्ध कैसे हों एक स्वतन्त्र समाज में हित समूहों को स्वतन्त्र रूप में संगठित होने की अनुमति होती है और जब ये समूह सरकारी तन्त्र और प्रक्रिया पर प्रभाव डालने का प्रयास करते हैं और इस प्रकार कानूनों, नियमों और प्रशासकीय कार्यों को अपने अनुकूल ढालने की चेष्टा करते हैं तो वे हित-समूह, दबाव समूहों में बदलकर सरकार पर दबाव डालने वाले हो जाते हैं।” 

दबाव समूह और हित समूह में प्रमुख अन्तर हैं :-
  1. हित समूह अपनी हित सुरक्षा के लिए अनुनयनी तरीके काम में लाते हैं। अर्थात् वे सरकार से प्रार्थना करते हैं। इसके विपरीत दबाव समूह अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकार पर दबाव के तरीके प्रयोग करते हैं।
  2. हित समूह राजनीति से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं रखते, जबकि दबाव समूह राजनीतिक गतिविधियों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध रखते हैं और सदैव राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की चेष्टा करते रहते हैं।
  3. हित समूहों का सम्बन्ध सामाजिक संरचना व प्रक्रिया से होता है। उनका लक्ष्य तो सदैव सामाजिक गतिशीलता है। इसके विपरीत दबाव समूह राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करते रहते हैं, क्योंकि यही गुण उन्हें हित समूहों से अलग करता है।
  4. समाज में हित समूह तो अनेक होते हैं, लेकिन दबाव समूह संख्या में कम होते हैं, क्योंकि सभी हित समूह राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होते।
  5. हित समूहों का सम्बन्ध सामाजिक गतिशीलता से है, जबकि दबाव समूहों का सम्बन्ध राजनीतिक व्यवस्था को गतिशील बनाने से है।
  6. हित समूह अपने लक्ष्य में कम सफल रहते हैं, क्योंकि उनके पास प्रभावशीलता का गुण नहीं होता। इसके विपरीत दबाव समूह प्रभावशीलता के गुण के कारण अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि हित समूह और दबाव समूह में कुछ अन्तर है, इसलिए दोनों को एक मानना भारी भूल है। लेकिन फिर भी राजनीतिक अध्ययन में इन दोनों का समानार्थी प्रयोग ही होता आया है। आज तक किसी ने भी हित समूह और दबाव समूह को सर्वथा अलग करके अध्ययन करने की चेष्टा नहीं की, इसी कारण इनके समानार्थी प्रयोग की विसंगति जारी है।

दबाव समूह की आलोचना

यद्यपि दबाव समूह प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था को गतिशील बनाने, सरकार की निरंकुशता को रोकने, जनता और सरकार में कड़ी का काम करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करते हैं और प्रत्येक राजनीतिक समाज इन्हें आवश्यक बुराई के रूप में स्वीकार भी करने लगा है, लेकिन फिर भी इनकी भूमिका की आलोचना की जाती है। आलोचकों का मत है कि दबाव समूह विशिष्ट हित को लेकर ही सरकार के पास जाते हैं। उनका सामान्य हित से कोई लेना देना नहीं होता। कई बार दबाव समूह अहिंसक साधनों का प्रयोग करके राष्ट्रीय सम्पत्ति को हानि पहुंचाते हैं और समाज की एकता व शांति को भंग करने से भी नहीं चूकते। विधायकों को अनैतिक साधनों से प्रभावित करके वे राजनीतिक भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं। 

अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तो वे न्यायपालिका जैसे पवित्र संगठन को भी नहीं छोड़ते। अपने स्वार्थों के लिए वे साम-दाम-दण्ड-भेद सभी नीतियों का प्रयोग निर्बाध रूप से करते हैं। अपने अनैतिक कारनामों द्वारा वे समाज में अनैतिकता का प्रसार कर देते हैं। उनकी बढ़ती भूमिका ने राजनीतिक दलों तक की भूमिका व महत्व को भी सीमित कर दिया है। इसलिए समय की यह मांग है कि दबाव समूहों की निरंकुशता की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जाए अन्यथा ये समाज और सरकार दोनों के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न कर देंगे।

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