इस्लाम धर्म के सिद्धांत और नियम

इस्लाम धर्म के सिद्धांत

इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद साहब को माना जाता है । इस्लाम का समस्त उल्लेख कुरान में मिलता है । इस्लाम का अर्थ होता है समर्पण अथवा उत्सर्ग जिसका अभिप्राय है अल्लाह की इच्छा के सामने झुकना । भारत में इस्लाम धर्म का आगमन इस्लाम विदेशी आक्रमणकारियों के समय से माना जाता है । 

इस्लाम के धर्म सिद्धांत

मुसलमान को इस विश्वास पर अटल होना चाहिए कि ‘ला इलाह इल्ललाह मुहम्मदुर्रसूलिल्लाह’ अर्थात् अल्लाह के सिवा और कोई पूजनीय नहीं है तथा मुहम्मद उसके रसूल हैं। अल्लाह में विश्वास रखने के साथ-साथ यह मानना भी जरूरी है कि मुहम्मद अल्लाह के नबी, रसूल और पैगम्बर हैं। पैगम्बर कहते हैं-पैगाम ;संदेशद्ध को ले जाने वाले को, मुहम्मद साहब के माध्यम से ईश्वर का संदेश पृथ्वी पर पहुँचा, इसलिए वे पैगम्बर कहे जाते हैं। नबी कहते हैं किसी उपयोगी परमज्ञान की घोषणा को। 

मुहम्मद साहब ने चूँकि ऐसी घोषणा की इसलिए ये नबी हुए। रसूल का अर्थ प्रेषित या दूत होता है। मुहम्मद साहब रसूल हैं क्योंकि परमात्मा और मनुष्यों के बीच उन्होंने धर्म का जाप किया। 

मुस्लमानों के लिए पाँच धार्मिक कृत्य

कुरान प्रत्येक मुस्लमानों के लिए पाँच कृत्यों को मानने का आदेश देता है । जैसे -
  1. कलमा पढ़ना
  2. दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ना
  3. रमज़ान के महीनों में रोज़ा रखना 
  4. ज़कात अथवा अपनी वार्षिक आय का चालिसवाँ भाग देना
  5. अपने जीवन काल में हज करना । 
इस्लाम धर्म के भी अपनी नियम, विचारधारा है जो सभी अनुयायी मानते हैं ।

1. कलमा पढ़ना (कल्म-ए-तौहीद)-अर्थात् इस मन्त्र का परायण करना कि ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके रसूल हैं (ला इलाह इल्लिलाह मुहम्मदुर्रसूलिल्लाह)।

2. नमाज-दिन में अनिवार्य रूप से पाँच बार, नियत समय पर नमाज पढ़ना। अर्थात् अल्लाह से प्रार्थना करना। नमाज से पहले और दूषित वस्तुओं के संपर्क में आने के बाद वुजू अवश्य करना (हाथ-पाँव, मुँह आदि धोना) शादी, गर्मी, यात्रा, लड़ाई, बेकारी आदि सभी परिस्थितियों में नमाज पढ़ी जा सकती है। 

3. रोजा-रमजान महीने भर केवल एक शाम खाना और वह भी सूर्यास्त के बाद। रमजान महीना इसलिए चुना गया कि इसी महीने में पहले-पहल कुरान उतरा था। 

4. जकात- जकात (दान) करने से मुसलमान का धन व माल पवित्र हो जाता है। जकात की मात्रा वार्षिक आय का चालीसवाँ भाग (ढाई प्रतिशत) है। 

5. हज- जीवन में एक बार अवश्य ही हज (मक्का की तीर्थ यात्रा) करना।

मुसलमानों की बहुत-सी प्रथाएँ और प्रतिबन्ध् बिल्कुल यहूदियों जैसे हैं जैसे लड़कों का अनिवार्यतः खतना करना अन्तर इतना है कि मुसलमान सामान्यतः लड़के के सात-दस वर्ष की अवस्था का हो जाने पर करते हैं और यहूदी जन्म के कुछ समय बाद, सूअर का माँस न खाना, ईश्वर की मूर्ति या चित्र बनाने पर कड़ा प्रतिबन्ध्, ताकि मूर्तिपूजा के लिए कोई बहाना न रहे। 

इस्लाम के अनुयायियों के लिए शराब पीना भी मना है हालाँकि इस नियम का पालन हर कहीं नहीं किया जाता।

कुरान शरीफ के अनुसार पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म पहला और आखिरी जन्म है। इस जीवन के समाप्त हो जाने पर, मनुष्य की देह जब कब्र में दफना दी जाती है, तब भी उसकी आत्मा एक भिन्न प्रकार के कब्र में भी जीवित पड़ी रहती है और इसी आत्मा को कयामत के दिन उठ कर ईश्वर के समक्ष जाना पड़ता है। 

कुरान में कयामत का वर्णन इस प्रकार से किया गया है-जब कयामत आयेगी, चाँद में रोशनी नहीं रहेगी, सूरज और चाँद सट कर एक हो जायेंगे और मनुष्य यह नहीं समझ सकेगा कि वह किधर जाये और ईश्वर को छोड़कर अन्यत्र उसकी कोई भी शरण नहीं होगी। जब तारे गुम हो जायेंगे, आकाश टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा, पहाड़ों की धूल उड़ जायेगी और तब नबी अपने निर्धारित क्षण पर पहुँचेंगे। न्याय का दिन जरूर आयेगा, जब सुर (तुरही) की आवाज उठेगी, जब तुम सब उठ कर झुंड के झुंड आगे बढ़ोगे और स्वर्ग के दरवाजे खुल जायेंगे।

कयामत के दिन सभी आत्माएँ भगवान के सामने खड़ी होंगी और मुहम्मद उनके प्रवक्ता होंगे। तब, हर एक रूह के पुण्य और पाप का लेखा-जोखा लिया जायेगा। पुण्य और पाप को तोलने का काम जिब्रिल करेंगे। जिसका पुण्य परिमाण में अधिक होगा, वह स्वर्ग में जायेगा। जिनके पाप अधिक होंगे, वे नरक में पड़ेंगे।

स्वर्ग में ‘हूर-युल-आयून’ जाति की सत्तर युवतियाँ हैं जिनकी आँखें काली-काली और बड़ी-बड़ी हैं। पुण्यात्माओं की सेवा करने के लिये ‘गिलमा’ जाति के सुन्दर-सुन्दर लड़के भी रहते हैं। संक्षेप में, स्वर्ग का बड़ा ही सुन्दर मनमोहक चित्र उपस्थित किया गया है। इसके विपरीत नरक के अत्यन्त भयानक या विकराल रूप की कल्पना की गई है।

ईमान और कुफ्र-कुरान शरीफ में दो शब्दों-ईमान और अमल का उल्लेख मिलता है। विद्वानों की मान्यता है कि ईमान का अर्थ ‘उसूल’ अथवा ‘अमल’ से लिया जाना चाहिए। उसूल वे धार्मिक सिद्धांत हैं जिन्हें नबी ने बताया है। अमल का अर्थ है उन उसूलों को अपनाना तथा उन पर अमल करना। कुरान में ईमान की 60 शाखाएँ बतलाई गई हैं जबकि हदीस 70 शाखाओं की बात कहता है। सबसे ऊँची यह कि अल्लाह को छोड़कर और किसी की पूजा मत करो और सबसे बाद यह कि जिन बातों से किसी का नुकसान होता हो, उन्हें छोड़ दो। 

नबी द्वारा उद्घोषित सत्य को नकारना अथवा उसपर विश्वास न करना ‘कुफ्र’ कहलाता है। कुफ्र का सबसे बुरा रूप ‘शिर्क’ है जिससे मनुष्य ईश्वर के अलावा और देवताओं को भी ईश्वर मान लेता है अथवा उनमें ईश्वरीय गुणों का आरोप करता है। शिर्क का सबसे बुरा रूप मूर्ति पूजा है।

मुहम्मद साहब का सबसे अधिक जोर ईश्वर को एक, केवल एक मानने पर था। उन्होंने कहा है, फ्मैं सिर्फ यह कहने आया हूँ कि ईश्वर एक है और केवल उसी की पूजा की जानी चाहिए।

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