नवपाषाण काल का समय, नवपाषाण काल ​​में मानव जीवन कैसा था?

नव-पाषाण काल को मानव सभ्यता के विकास क्रम में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ बिन्दु माना जाता है। विद्वानों ने नवपाषाण काल का समय 10,000 ई. पू. से 3000 ई. पू. तक माना है। 

नवपाषाण काल ​​में मानव जीवन

1. कृषि का आविष्कार- इन्हीं परिस्थितियों में कृषि और पशुपालन के आदिम रूपों का आविर्भाव हुआ। किसी ने यह खोज की कि सूखे बीजों को गीली मिट्टी में दबा दिया जाए तो कुछ महीनों के बाद उन बीजों से कई गुना अधिक बीज उपलब्ध हो सकते हैं। इस रहस्य ने कृषि की आधारशिला रख दी। इस खोज ने मनुष्य की भ्रमणशीलता का अन्त कर दिया। अब वह घर बनाकर रहने लगा और इसी के साथ मनुष्य में व्यक्तिगत सम्पत्ति तथा अपने स्थान के प्रति निष्ठा की भावना का उदय हुआ। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकता अनुभव हुई और कई सामाजिक संस्थाओं का उद्भव हुआ। 

इस प्रकार, कृषि का आविष्कार मानव-जीवन में प्रथम औद्योगिक क्रान्ति थी, जिसने आजीविका का एक नियमित एवं स्थायी साधन प्रदान किया तथा सामाजिक संस्थाओं की आधारशिला रखी।

कृषि में पहले-पहल काम में लाये जाने वाले औजार-खंतियाँ और कुदालें बेहद अपरिष्कृत थे। पैदा की जाने वाली फसलें थीं-जौ, गेहूँ, बाजरा और मटर जैसे अनाज तथा कुछ साग-सब्जियाँ।

‘कुम्हार के चाक’ का आविष्कार इसी युग में हुआ, जिससे मिट्टी के बर्तन बनने शुरू हो गए। 

2. पशुपालन-नवपाषाण काल की दूसरी मुख्य विशेषता है-पशुपालन। शायद आखेट के अनुभव ने पशुपालन की प्रवृत्ति को जन्म दिया हो। उस समय तक लोग हाॅका करके अथवा शिकार को चारों ओर से घेर करके शिकार करना सीख चुके थे और इस काम में कुत्तों का सहयोग भी लिया जाने लगा। मनुष्य ने सर्वप्रथम कुत्तों को पालतू बनाया होगा। इसके बाद गधा, बकरी, भेड़, गाय, भैंस और अन्त में घोड़े को पालतू बनाया होगा। अब वह पशुओं की सहायता से कृषि करने लगा। इससे पशुपालन का महत्व और भी अधिक बढ़ गया।

3. मिट्टी के बर्तन बनाने की कला-कृषि कर्म और पशुपालन से मनुष्य को खाने-पीने की समस्या से मुक्ति मिल गई परन्तु खाद्य सामग्री को सुरक्षित रखने की समस्या उत्पन्न हो गई। इसका समाधान उसने मिट्टी के बड़े-बड़े बर्तन बनाने की कला का आविष्कार करके किया। इसी समय ‘कुम्हार के चाक’ का भी आविष्कार हुआ जिससे दैनिक जीवन में काम आने वाले मिट्टी के बर्तन बनने शुरू हो गये।

4. पहिये का आविष्कार-इसी युग में व्यक्ति ने पहिये का आविष्कार किया और यह आविष्कार मानव सभ्यता की समृद्धी का सबसे बड़ा कारण बन गया। इससे यातायात के साधनों का विकास हुआ। लोगों ने घोड़ों या बैलों से खींची जानेवाली गाडि़याँ बनाईं। पहियेदार गाडि़यों ने विभिन्न दूरी पर बसी मानव-बस्तियों को एक-दूसरे के समीप ला दिया। 

5. कातने और बुनने की कला-इस युग में मनुष्य ने एक और उपलब्धि प्राप्त की। वह थी-कातने और बुनने की कला का विकास। इसके लिए करघा और चरखा बनाया गया। बुनने की कला ने मानव जीवन को सभ्यता के ढाँचे में ढालना शुरू कर दिया। अब वह सूत, पटसन और ऊन से वस्त्र बनाना सीख गया और इन वस्त्रों से अपने शरीर को ढकने लगा।

प्रगति के नये कदम-एक स्थान पर बस जाने से जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होने लगी और धीरे-धीरे मनुष्य नये-नये क्षेत्रों को आबाद करने लगा। वनों को काटने और लकड़ी को चीरने-फाड़ने वाले औजार बनाये गये जिससे काष्ठ कला का विकास हुआ। मिट्टी से ईंटें बनाना और ईंटों से रहने के आवास बनाने की कला का विकास हुआ। व्यापक पैमाने पर कृषि कर्म के लिए खुर्पी, कुदाल, हल, हँसिया और चक्की का प्रयोग शुरू हुआ। झीलों और नदियों को पार करने के लिये नावों का निर्माण किया गया। 

उपर्युक्त सभी आविष्कारों के फलस्वरूप नव पाषाण के मानव इतिहास को ‘प्रगति का प्रथम महान् युग’ कहा जाता है, जिसने मानव जीवन में एक क्रान्ति ला दी।

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