गुट निरपेक्ष आंदोलन का 7वां शिखर सम्मेलन कहां हुआ था ?

क्यूवा के राष्ट्रपति डॉ. फिदेल कास्त्रों द्वारा 31 अगस्त 1982 को गुट निरपेक्ष आंदोलन के 7वां शिखर सम्मेलन की अनुमति प्राप्त हो गयी । राष्टाध्यक्षों को सूचित किया गया कि ईरान तथा ईराक युद्ध के कारण ईराक में सम्मेलन स्थिगित करना पड़ा। गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलनों का सातवां शिखर सम्मेलन भारत की राजधानी नई दिल्ली में 6 से 12 मार्च 1983 में किया गया। 

इस सम्मेलन ने अन्य छ: सम्मेलनों से अलग अपने नये कीर्तिमान स्थापित किये। इस समय विश्व राजनीति का जो माहौल बना हुआ था वह 1959-60 के माहौल से कम खतरनाक नहीं था। गम्भीर चुनौतियाँ, तनाव, अविश्वास, और संघर्ष का जहर घोलने वाली इन सभी समस्याओं का सूत्रपात हवाना, अल्जीयर्म कोलम्बो, आदि सम्मेलन के समय से दिखना प्रारंभ हो गया था।

हवाना सम्मेलन 1979 में सम्पन्न हुआ तीन माह बाद सोवियत फौजें अफगानिस्तान में घुस आई इससे पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान आदि के सम्बन्ध बिगड़ गए और विश्व राजनीति में फिर एक बार विश्वयुद्ध जैसी स्थिति बन गई। दोनों महाशक्तियों के बीच चल रही शस्त्रअस्त्र परीसीमन की वार्ता असफल हो गई, पश्चिमी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर अनेक आर्थिक और राजनैतिक प्रतिबंध लगाने की कोशिश की और खाड़ी देशों, हिन्दमहासागर तथा पाकिस्तान आदि में अपनी सैनिक उपस्थिति बढ़ाना शुरू कर दिया।

गुट निरपेक्ष आंदोलन में फूट का प्रमुख कारण था अफगानिस्तान का मामला, जहाँ एक ओर वियतनाम, सीरिया, यमन, इथोपिया आदि देशों ने रूसी कार्यवाही का दमन किया वहीं दूसरी ओर सिंगापुर, जायरे, मोरक्को, पाक आदि देशों ने इसका विरोध किया। तथा भारत जैसे राष्ट्र ने सोवियत संघ की भर्त्सना करने के वजाय यह माना कि अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी तथा बाहरी हस्तक्षेप की समाप्ति एक साथ होनी चाहिए। इस प्रकार सप्तम सम्मेलन बहुत ही नाजुक परिस्थितियों में हुआ था।

7वां शिखर सम्मेलन का प्रारंभिक स्वरूप

गुट निरपेक्ष देशों का यह सातवां शिखर सम्मेलन राष्ट्राध्यक्षों तथा शासनाध्यक्षों की उपस्थ्ति में श्रीमती इन्दिरागांधी की अपील के साथ प्रारंभ हुआ। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा कि विश्व की महाशक्तियां आणविक हथियारों के इस्तेमाल की धमकी न दे वे अपने स्वार्थ की चिंता छोड़कर मानवता की भलाई के कार्य करें। सम्मेलन में 101 सदस्य देशों में से 93 देशों ने इसमें भाग लिया जिनमें 68 राष्ट्राध्यक्ष 26 प्रधानमंत्री तथा उपराष्ट्रपति शामिल थे। डॉ फिदेल कास्त्रो ने श्रीमती इन्दिरा गांधी के हाथों में अध्यक्ष पद की कमान सौपी, तथा महासचिव नटवरसिंह को चुना गया। यह सम्मेलन पांच दिन तक चलना था परन्तु ईरान-ईराक युद्ध के कारण यह दो दिन तक चला। राष्ट्राध्यक्षों ने अपने-अपने भाषण दिये परन्तु पाक राष्ट्रपति का भाषण उल्लेखनीय रहा उसमें श्रीमती इन्दिरा गांधी को मुबारकबाद दी गई और पांच सूत्रीय कार्यक्रम भी पेश किया। 

सातवें शिखर सम्मेलन के प्रमुख बिन्दुओं पर चर्चा की गई -
  1. विश्वशक्तियों से परमाणु हथियार प्रयोग न करने की अपील की गई। 
  2. अन्र्तराष्ट्रीय मुद्रा एवं वित्तीय प्रणाली के व्यापक पुनर्गठन की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। 
  3. दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत लोगों के शोषण उनके प्रति असमानता के व्यवहार व उनके अधिकारों के हनन की भत्र्सना करते हुए उनके संघर्ष में गुट निरपेक्ष आंदोलन द्वारा पूरा सहयोग दिये जाने की बात कही गई।
  4. यूरोप में बढ़ती हथियारों की होड तनाव व विभिन्न गुटों के बीच टकराव की नीति पर चिंता व्यक्त की गई।
  5. आर्थिक घोषणा-पत्र में विकसित राष्ट्रों द्वारा विकासशील राष्ट्रों पर लगाये गये व्यापारिक प्रतिबंध को समाप्त करने के लिए तथा संरक्षणावादी रवैया अपनाने को कहा गया। 
  6. सम्मेलन में खाद्य, ऊर्जा एवं परमाणु शक्ति के बारे में भी विचार किया गया और इनका हल ढ़ूढ़ना नितांत आवश्यक था। 
अन्य विवादास्पद मुद्दे -
  1. सम्मेलन में कम्पूचिया के भाग न लेने का विवाद प्रमुख था इस प्रश्न पर सदस्य देश एकमत नहीं है। कुछ देश राजकुमार सिंहनुक को आमंत्रित करने के पक्ष में थे तो कुछ हेंग सैमरिन की सरकार को आमंत्रित करने के, तो कुछ उसका स्थान खाली छोड़ने के पछ में थे। हवाना सम्मेलन की तरह भारत जैसी स्थिति बनी हुई थी अतत: उसका स्थान खाली छोड़ दिया गया।
  2. ईरान-ईराक के युद्ध के बारे में सम्मेलन की अवधि बढ़ाये जाने का कोई ठोस हल नहीं निकाला जा सका। 
  3. आठवें शिखर सम्मेलन कहां बुलाया जाए ईराक चाहता था कि बगदाद में बुलाया जाए ईरान, चाहता था कि, लीबिया में यह सम्मेलन बुलाया जाए इस आदि विरोध के कारण इसका कोई हल नहीं निकाला जा सका।

गुट निरपेक्ष आंदोलन के 7वे शिखर सम्मेलन की समीक्षा

सही मायनों में देखा जाए तो यह गुट निरपेक्ष आंदोलन केवल एक मंच हैं और उसके होने वाले सम्मेलन एक क्लब की तरह है। इसके द्वारा निकाले गये ज्यादातर घोषणा पत्र बिल्कुल अर्थहीन है। ‘‘यहां जैसा चाहे वैसा व्यवहार करों ‘‘ की कहावत सिद्ध हो जाती है। सातवें गुट निरपेक्ष सम्मेलन की आर्थिक घोषणा में गरीब देशों की खाद्य की कमी को दूर करने पर बल दिया गया, कृषि में सहायता आदि की बात कही गयी, पर सवाल इस बात का है कि क्या मात्र घोषणा करने या विकसित राष्ट्रों से अपील करने से ये समस्यायें हल हो जाती है विकसित राष्ट्र तो अपने स्वार्थ के लिए विकासशील देशों का इस्तेमाल करते आए है और करते रहेगें।

साथ ही इस सम्मेलन में कई सवालों पर चर्चा की गई, जैसे हैंग सैमरिन सरकार को प्रजातांत्रिक रूप से परिवर्तित करना, दक्षिण अफ्रीका द्वारा नामीविया का शोषण कम करने आदि महत्वपूर्ण, सवालों पर सम्मेलन में जो कुछ भी हुआ वह नया नहीं था। ऐसे मुद्दों पर बहस आदि के सिवाय कुछ भी नहीं किया जा सकता।

गुट निरपेक्ष आंदोलन के 7वे शिखर सम्मेलन की उपलब्धियां

यह बात तो मानना ही पड़ेगी कि इस शिखर सम्मेलन ने गुट निरपेक्ष आंदोलन को एक नई शक्ति और दिशा दी है। कुछ लोगों का मानना है कि यह सम्मेलन एक तरह के शिविर के रूप में सामने आया। जो एक तरह से नये सघर्ष की शुरूआत का मार्ग दिखाता है। इस सम्मेलन में नये शिरे से सदस्य राष्ट्रों की एकता का बोध कराया गया। सशस्त्र संघर्ष की निरर्थकता का अहसास और मतभेदों को शान्तिपूर्ण तरीके से हल करने की उपयुक्तता अधिक अर्थपूर्ण लगी। अन्र्तराष्ट्रीय व्यवस्था पर औद्योगिक देशों से बातचीत चलाने के प्रस्ताव का एक परिणाम यह हुआ कि सदस्य देशों ने विकास कार्यक्रमों में सहयोग की आवश्यकता का महत्व समझा। उन्हें यह भी लगा कि वे अपने संसाधनों और क्षमताओं का विकास कार्यक्रमों में उपयोग अपने प्रयत्न से कर सकते है। इस सम्मेलन का दृष्टिकोण ज्यादातर समस्याओं को हल न करके उन्हें टाल देने का था।

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