आनुवंशिकता का अर्थ, परिभाषा, प्रभाव

आनुवंशिक या वंशानुगत गुणों का एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में स्थानान्तरण को आनुवंशिकता या वंशानुक्रम कहा जाता हैं। आनुवंशिकता के माध्यम से शारीरिक, मानसिक, सामाजिक गुणों का स्थानान्तरण बालकों में होता है

एक मनुष्य का बच्चा मनुष्य की ही तरह क्यों दिखाई देता है और माता-पिता, दादा दादी या चचेरे भाई या चाचा-चाची के सदृश मिलता जुलता ही दिखाई देता है? एक बिल्ली का बच्चा छोटी बिल्ली की तरह क्यों दिखाई देता है? क्यों एक अंकुर अपने जन्मदाता पौधे की समान, पत्तियां, तना या फूल अधिग्रहण करता है? इसी प्रकार सभी जीवों की संरचना माता-पिता के समान क्यों होती है? समान लक्षणों का पीढ़ी दर पीढ़ी संतानों में पहुंचना, वंशागति कहलाता है। 

वंशागति जीन द्वारा नियंत्रित होती है। जीन संयोजन में अंतर विभिन्नतायें, अथवा एक ही परिवार के बीच विविधतायें आती हैं। वंशागति और विभिन्नता का विज्ञान आनुवंशिकी कहा जाता है।

आनुवंशिकता की परिभाषा

1. जेम्स ड्रेवर के अनुसार – “शारीरिक, मानसिक विशेषताओं का माता-पिता से संतानों में हस्तांतरण होना आनुवंशिकता कहलाता हैं”।

2. एच ए पेटरसन एवं वुडवर्थ – “व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से पूर्वजों की, जो विशेषताओं को प्राप्त करता हैं, उसे वंशानुक्रम कहते हैं”।

आनुवंशिकता का प्रभाव 

आनुवंशिकता का प्रभाव विभिन्न लक्षणों जैसे- शारीरिक बुद्धि तथा चरित्र पर अलग-अलग पड़ता हैं

1. आनुवंशिकता का शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव –

बालक के रंग-रूप, आकार, शारीरिक गठन, ऊँचाई इत्यादि के निर्धारण में उसके आनुवंशिक गुणों का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं

शारीरिक लक्षणों के वाहक जीन प्रखर अथवा प्रतिगामी दोनों प्रकार के हो सकते हैं. यह एक ज्ञात सत्य हैं की किन्हीं विशेष रंगों के लिए पुरुष और महिला में रंगों को पहचानने की अन्धता (Colour Blindness) अथवा किन्हीं विशिष्ट रंगों के संवेदना नारी में नर से अधिक हो सकती हैं. एक दादी और माँ, स्वयं रंग-अन्धता से ग्रस्त हुए बिना किसी नर शिशु को यह स्थिति हस्तांतरित कर सकती हैं ऐसा स्थिति इसलिए हैं, क्योकि यह विकृति प्रखर होती हैं, परन्तु महिलाओं में यही प्रतिगामी (Recessive) होती हैं

जीन्स जोड़ों (Pairs) में होते हैं. यदि किसी जोड़ें में दोनों जीन प्रखर होंगें तो, उस व्यक्ति में वह विशिष्ट लक्षण दिखाई देगा, यदि एक जीन प्रखर हो और दूसरा प्रतिगामी, तो जो प्रखर होगा वही अस्तित्व में रहेगा

प्रतिगामी जीन आगे सम्प्रेषित हो जाएगा और यह अगली किसी पीढ़ी में अपने लक्षण प्रदर्शित कर सकता हैं. अत: किसी व्यक्ति में किसी विशिष्ट लक्षण की दिखाई देने के लिए प्रखर जीन ही जिम्मेदार होता हैं

2. आनुवंशिकता का बुद्धि पर प्रभाव –

बुद्धि को अधिगम की योग्यता, समायोजन योग्यता, निर्णय लेने की क्षमता इत्यादि के रूप में परिभाषित किया जाता हैं. जिस बालक के सीखने की गति अधिक होती हैं, उसका मानसिक विकास तीव्र गति से होता होगा. बालक अपने परिवार, समाज एवं विधालय में अपने आपको किस तरह समायोजित करता है यह उसके बुद्धि पर निर्भर करता हैं

गोडार्ड का मत है की “मन्दबुद्धि माता-पिता की सन्तान मन्दबुद्धि और तीव्रबुद्धि माता-पिता की सन्तान तीव्रबुद्धि वाली होती हैं”. मानसिक क्षमता के विकास अनुकूल ही बालक में संवेगात्मक क्षमता का विकास होता हैं

संवेगात्मक रूप से असंतुलित बालक पढ़ाई में या किसी अन्य गम्भीर कार्यों में ध्यान नहीं दे पाते, फलस्वरूप उनका मानसिक विकास भी प्रभावित होता है

3. आनुवंशिकता का चरित्र पर प्रभाव –

डगडेल नामक मनोविज्ञानिक ने अपने अनुसन्धान के आधार पर यह बताया की माता-पिता के चरित्र का प्रभाव भी उसके बच्चे पर पड़ता हैं

व्यक्ति के चरित्र पर उसके वंशानुगत कारकों का प्रभाव भी स्पष्ट तौर पर देखा जाता हैं, इसलिए बच्चे पर उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही हैं. डगडेल ने 1877 ई. में ज्यूक नामक व्यक्ति के वंशजों का अध्ययन करके यह बात सिद्ध की

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