अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार

अलाउद्दीन खिलजी 19 जुलाई 1296 ई. में सुल्तान जलाउद्दीन खिलजी की हत्या कर स्वयं को सुल्तान घोषित किया। 22 अक्टूबर 1296 ई. में दिल्ली में बलबन के राजमहल में उसने अपना राज्याभिषेक करवाया तथा दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

अलाउद्दीन दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने धर्म को राजनीति से पृथक रखा। उसके शासनकाल में इस्लाम के सिद्धान्तों को प्रमुखता न देकर राज्यहित को सर्वोपरि रखा गया। उलेमा वर्ग को भी उसके शासनकार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं था।

अलाउद्दीन खिलजी का प्रारंभिक जीवन

अलाउद्दीन खिलजी का मूलनाम अली गुरशास्प था। वह सुल्तान जलालुद्दीन का भतीजा और दामाद था। उसके पिता शिहाबुद्दीन मसूद खिलजी बलबन के समय में एक सैनिक अधिकारी थे। जलालुद्दीन के शासनकाल में अलाउद्दीन को "अमीर-तुजुक" का पद प्राप्त हुआ। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा मानिकपुर का सूबेदार नियुक्त किया। 1292 ई. में भिलसा अभियान की सफलता के बाद अलाउद्दीन खिलजी को आरिज-ए-मुमालिक का पद दिया गया।

1292 ई. में ही धन लूटने के उद्देश्य से उसने देवगिरि का अभियान किया। देवगिरि में प्राप्त धन से अलाउद्दीन की स्थिति और सुदृढ़ हो गयी। अब उसके अन्दर दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने की लालसा जागृत हुई। उसने धोखे से अपने चाचा सुल्तान जलाउद्दीन फिरोज खिलजी कड़ा मानिकपुर बुलाकर हत्या कर दी तथा स्वयं को सुल्तान घोषित किया। अलाउद्दीन खिलजी ने अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 ई. में करवाया।

अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार

दिल्ली के सुल्तानों में अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था जिसने वित्तीय एवं राजस्व सुधारों में गहरी रुचि ली। अलाउद्दीन खिलजी को आर्थिक सुधारों की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई। क्योंकि वह साम्राज्य का विस्तार और एक शक्तिशाली शासन प्रबंध स्थापित करना चाहता था। इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति आर्थिक सुधारों के बिना सम्भव नहीं थी। साम्राज्य विस्तार के लिए उसे एक विशाल और संगठित सेना की आवश्यकता थी। सेना की विशालता को बनाये रखने के लिए आर्थिक साधनों की आवश्यकता थी। अतः अलाउद्दीन ने बाजार व्यवस्था तथा भू-राजस्व व्यवस्था में सुधार किये।

अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार दो प्रकार के थे-
  1. बाजार व्यवस्था में सुधार एवं
  2. भू-राजस्व व्यवस्था में सुधार।
1. बाजार व्यवस्था में सुधार- राजस्व वसूली के लिए मुतसर्रिफ, कारकुन तथा आमिल अधिकारी होते थे। राजस्व वसूली में इनकी सहायता के लिए चौधरी (ग्राम स्तर पर) खूत (शिक स्तर पर) नियुक्त किये जाते थे। ये मध्यस्थ का कार्य करते थे। ये सभी अधिकारी दीवान-ए-विजारत के अधीन काम करते थे।

2. भू-राजस्व व्यवस्था में सुधार- दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों में अलाउद्दीन खिलजी पहला शासक था जिसने राजस्व सुधारों की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने भूमि की पैमाइश कराकर उसकी वास्तविक उपज पर लगान निश्चित किया। उसने राजस्व कर प्रणाली को सुधारने के लिए "दीवान-ए-मुस्तखराज" विभाग की स्थापना की। इस विभाग का कार्य भू-राजस्व का संग्रह करना था। राजस्व सुधारों के अन्तर्गत अलाउद्दीन खिलजी ने उन सभी भूमि अनुदानों को वापस लेकर खालसा भूमि में बदल दिया। जो मिल्क, इनाम और वक्फ के रूप दिये गये थे। इस कारण इसके शासनकाल में खालसा भूमि के क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि हुई। उसने मुकदमों (मुखिया), खूंतो (जमींदार) व बलाहरों से राजस्व वसूली के विशेषाधिकार वापस ले लिये।

अलाउद्दीन खिलजी की कर प्रणाली

अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में भू-राजस्व की दर सर्वाधिक थी। उसने उपज का 1/2 भाग भूमिकर (खराज) के रूप में वसूला। करों की अधिकता के कारण अलाउद्दीन के काल में कृषि कार्य प्रभावित हुआ। उसने लगान को अनाज के रूप में लेने को प्रमुखता दी। उसने गढ़ी (घरी) व चरी नामक दो नवीन कर लगाये। घरी कर घरों एवं झोपड़ों पर लगाया तथा चरी अथवा चराई कर दुधारू पशुओं पर लगाया। 

जजिया कर गैर मुस्लिमों से लिया जाता था। जकात केवल अमीर मुसलमानों से लिया जाने वाला धार्मिक कर था। जो सम्पत्ति का 40वां भाग था। खुम्स का 4/5 भाग अलाउद्दीन स्वयं रखता था एवं 1/5 भाग सैनिकों को देता था।

अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में विद्रोह

अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में कई विद्रोह हुए, जिनमें चार विद्रोह प्रमुख हैं।

  1. नव मुस्लिम विद्रोह- 1299 ई. में गुजरात अभियान में प्राप्त धन के बंटवारे को लेकर नव मुस्लिमों (मंगोल जो इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गए थे) ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को नुसरत खां ने दबा दिया।
  2. अकत खां का विद्रोह- अकत खां को अलाउद्दीन ने वकीलदार नियुक्त किया था। जब अलाउद्दीन रणथम्भौर अभियान पर जा रहा था। अकत खां ने नव मुसलमानों के सहयोग से अलाउद्दीन पर प्राणघाती हमला किया। किन्तु अलाउद्दीन बच गया। उसने अकत खां पकड़कर मारवा दिया।
  3. मंगू खां का विद्रोह- अलाउद्दीन के समय का तीसरा विद्रोह मलिक उमर (बदायूं का सूबेदार) तथा मंगू खां (अवध का सूबेदार) ने किया। अलाउद्दीन खिलजी ने इन दोनों को पराजित कर मरवा दिया।
  4. हाजी मौला का विद्रोह- जब सुल्तान रणथंभौर के अभियान में व्यस्त था। तब बरतोल कस्बे के शहना हाजी मौला ने विद्रोह कर इल्तुतमिश के वंशज "शाही-शाह" को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। किन्तु सुल्तान के एक वफादार हमीमुद्दीन ने इस विद्रोह को दबा दिया।

मंगोल आक्रमण

1298 ई. में मंगोल सेना ने कादर खां के नेतृत्व में पंजाब एवं लाहौर पर आक्रमण किया। जालन्धर के निकट सुल्तान की सेना ने मंगोलों को परास्त कर दिया। सुल्तान की सेना का नेतृत्व जफर खां एवं उलुग खां कर रहे थे।

मंगोलों द्वारा दूसरा आक्रमण 1298 ई. में सलदी के नेतृत्व में सेहबान पर हुआ। जफर खां ने इस आक्रमण को असफल कर दिया। 1299 ई. में मंगोलों का तीसरा आक्रमण हुआ। जफर खां ने पुनः इस आक्रमण को असफल कर दिया। किन्तु वह वीरगति को प्राप्त हो गया। इसके बाद 1303 ई. में मंगोल सेना का चौथा आक्रमण तार्गी के नेतृत्व में हुआ। किन्तु वह सीरी किले में प्रेवश नहीं कर सका।

मंगोल सेना का पांचवा आक्रमण 1305 ई. में अलीबेग और तारताक के नेतृत्व में अमरोह पर हुआ। मलिक काफूर ने उन्हें बुरी तरह पराजित किया। 1306 ई. में मंगोलों के छठे आक्रमण को गाजी मलिक ने असफल कर दिया। अलाउद्दीन ने मंगोलों के प्रति "रक्त और तलवार" की नीति अपनाई।

साम्राज्य विस्तार

अलाउद्दीन खिलजी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का था। वह सिकन्दर के समान अपनी विजय पताका दूर-दूर तक फहराना चाहता था। उसने सिकन्दर द्वितीय की उपाधि धारण की थी। उसने अपनी विजयों से एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। उसने उत्तर भारत के राज्यों को जीतकर उन पर प्रत्यक्ष शासन किया। दक्षिण भारत के राज्यों को अपने अधीन कर उनसे वार्षिक कर वसूला।

उत्तर भारत में अलाउद्दीन खिलजी के विजय अभियान

1. गुजरात अभियान- सुल्तान अलाउद्दीन का पहला सैन्य अभियान 1297 ई. में गुजरात के शासक रायकर्ण द्वितीय के विरुद्ध हुआ। गुजरात अभियान का नेतृत्व उलुग खां तथा नुसरत खां ने किया था। अहमदाबाद के निकट दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ जिसमें रायकर्ण द्वितीय पराजित हुआ। उसने अपनी पुत्री 'देवल देवी' के साथ भागकर देवगिरि के शासक रामचन्द्र देव के यहां शरण ली। गुजरात को जीतने के बाद इसे दिल्ली सल्तनत का प्रान्त बना दिया गया। अलप खां को सूबेदार नियुक्त किया गया। 

गुजरात अभियान के दौरान ही मलिक काफूर को एक हजार स्वर्ण दीनारों में खरीदा गया। इसलिए मलिक काफूर हजार दीनारी भी कहते हैं।

2. जैसलमेर अभियान- सुल्तान की सेना के कुछ घोड़े चुराने के कारण नुसरत खां ने जैसलमेर के शासक दूदा और उसके सहयोगी तिलक सिंह को पराजित किया।

3. रणथम्भौर अभियान- जुलाई 1301 ई. में अलाउद्दीन ने रणथंभौर के किले का घेरा डाला। वहाँ का चौहानवंशी शासक हम्मीर देव वीरगति को प्राप्त हो गया। तारीख-ए-अलाई तथा हम्मीरदेव काव्य में वहां की राजपूत स्त्रियों द्वारा जौहर का करने का वर्णन मिलता है।

4. चित्तौड़ अभियान- चित्तौड़ का किला सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। इसलिए अलाउद्दीन इसे प्राप्त करना चाहता था। अतः सुल्तान ने 1303 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। चित्तौड़ का राजा रतन सिंह युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया। राजपूत स्त्रियों ने रानी पद्यमिनी सहित जौहर कर लिया। विजय के बाद सुल्तान ने अपने पुत्र खिज्र खां के नाम पर चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रखा और वहां की शासन व्यवस्था खिज्र खां को सौंपकर दिल्ली वापस चला गया।

5. मालवा विजय- 1305 ई. में अलाउद्दीन ने मुल्तान के सूबेदार आईन उल मुल्क को मालवा पर अधिकार करने के लिए भेजा। मालवा का शासक महालक देव व सेनापति हरनन्द वीरगति को प्राप्त हुआ। सुल्तान की सेना ने मालवा सहित उज्जैन, धारानगरी, चंदेरी आदि को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।

6. सेवान विजय- 1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने सेवान पर आक्रमण किया। उस समय वहां का शासक परमार राजपूत शीतलदेव था। शीतलदेव ने कड़ा संघर्ष किया किन्तु अन्ततः मारा गया। उसके राज्य को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया और कमालुद्दीन गुर्ग को वहां का इक्तादार नियुक्त किया गया।

7. जालौर विजय- जालौर में चौहानवंशी शासक कान्हादेव (कृष्णदेव तृतीय) था। 1304 ई. में उसने दिल्ली की अधीनता स्वीकार कर ली। किन्तु धीरे धीरे उसने अपने को पुनः स्वतन्त्र कर लिया। अतः 1311 ई. में सुल्तान ने कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में एक विशाल सेना कान्हादेव के विरुद्ध भेजी। कमालुद्दीन गुर्ग ने जालौर जीत लिया और कान्हादेव व उसके सगे सम्बन्धियों को मार दिया।

दक्षिण अभियान की अलाउद्दीन खिलजी के विजय अभियान

अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय का श्रेय मलिक काफूर को दिया जाता है। दक्षिण भारत के राज्यों को जीतने में धन की चाह थी। दक्षिणी राज्यों को जीतने के बाद उन्हें दिल्ली साम्राज्य में शामिल नहीं किया गया। बल्कि उनकी प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण कर वार्षिक कर वसूला गया।

1. देवगिरि अभियान- मलिक काफूर का पहला दक्षिण अभियान 1307 ई. में देवगिरि के विरुद्ध था। वह देवगिरि के शासक रामचन्द्र देव को बन्दी बनाकर दिल्ली लाया। अलाउद्दीन ने रामचन्द्र देव के प्रति सम्मान पूर्ण व्यवहार किया तथा उसे रायरायन की उपाधि प्रदान की।

2. तेलंगाना अभियान- तेलंगाना की राजधानी वारंगल थी। यहां का शासक प्रतापरुद्र देव था। जनवरी 1310 ई. में मलिक काफूर ने वारंगल दुर्ग का घेरा डाला। प्रतापरुद्र देव ने आत्मसर्मपण कर दिया।

3. द्वारसमुद्र अभियान- यहां होयसल वंश के शासक वीर बल्लाल तृतीय का शासन था। 1310 ई. में मलिक काफूर ने द्वारसमुद्र पर आक्रमण किया। वीर बल्लाल तृतीय ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली।

अलाउद्दीन खिलजी साम्राज्यवादी होने के साथ शिक्षा और कला में भी अभिरुचि रखता था। उसके दरबार में अमीर हसन व अमीर खुसरो जैसे विद्वानों को संरक्षण प्राप्त था। उसने 46 साहित्यकारों को संरक्षण दिया था। अमीर हसन को भारत का सादी भी कहा जाता है। निर्माण कार्य के क्षेत्र में भी अलाउद्दीन का महत्वपूर्ण योगदान है। उसने अलाई-दरवाजा, जमैयत खाना मस्जिद, हजार सितून, आदि इमारतों का निर्माण करवाया। 

4 जनवरी 1316 ई. में इस्तिष्का रोग से पीड़ित होने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।

Post a Comment

Previous Post Next Post