भारत में बेरोजगारी के क्या कारण हैं इसे दूर करने के उपाय ?

बेरोजगारी से आशय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें व्यक्ति वर्तमान मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार होता है परन्तु उसे काम नहीं मिलता।

भारत में बेरोजगारी के उत्तरदायी कारण

भारत में बेरोजगारी के लिए उत्तरदायी कुछ सामान्य कारण इस प्रकार हैं-

(i) बेरोजगारी में तीव्र गति से वृद्धि का मुख्य एवं महत्वपूर्ण कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है जो 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, जबकि रोजगार की सुविधाएँ उस दर से नहीं बढ़ रही हैं। यहाँ प्रतिवर्ष 70 लाख व्यक्ति रोजगार चाहने वालों की संख्या में जुड़ जाते हैं।

(ii) देश में 1951 से नियोजन का कार्य चल रहा है लेकिन यह नियोजन त्रुटिपूर्ण रहा है। इसमें रोजगार मूलक नीति का प्रतिपादन नहीं किया गया है, फलतः बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।

(iii) रोजगार की मात्रा में वृद्धि आर्थिक विकास की दर पर निर्भर करती है। जब आर्थिक विकास की दर तीव्र होती है तो रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न होते हैं। पिछले 47 वर्षों के योजनाबद्ध विकास के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में वार्षिक विकास दर 3.5% ही रही। इससे रोजगार के पर्याप्त अवसर उत्पन्न नहीं हो सके। परिणाम यह हुआ कि बेरोजगारी बढ़ती गयी।

आज भी अनेक राज्यों में कृषि मानसून की वर्षा पर निर्भर है। फलतः पूरे वर्ष भर कृषि रोजगार प्रदान नहीं कर पाती। केवल फसल बोने से लेकर उसको काटने तक ही पर्याप्त रोजगार के अवसर रहते हैं एवं वर्ष के शेष माहों में श्रमिक बड़े पैमाने पर बेरोजगार रहते हैं। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी का एक कारण कृषि की मौसमी प्रकृति भी है।

भारत में ग्रामीण क्षेत्र में निरक्षरता व्यापक स्तर पर विद्यमान है। इससे ग्रामीण क्षेत्र में अकुशलता में वृद्धि होती है। यही नहीं, निरक्षरता ग्रामीण को विशेष प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न करती है। 

भारत में कृषकों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय है। कृषकों की आय कम होने के कारण वे अधिक बचत नहीं कर पाते। फलतः उनके पास पर्याप्त मात्रा में पूंजी नहीं होती। पूंजी की कमी के कारण किसानों के पास कृषि से सम्बन्धित पूंजी के साधनों का अभाव बना रहता है और उन्हें वैकल्पिक कार्य भी उपलब्ध नहीं हो पाते।

भारत में बेरोजगारी दूर करने के उपाय

भारत में बेरोजगारी दूर करने के विभिन्न उपाय हैं जो निम्न प्रकार हैं- 

(1) जनसंख्या नियन्त्रण -भारत में प्रति वर्ष श्रम-शक्ति में 70 से 80 लाख की वृद्धि हो रही है। इतनी अधिक मात्रा में रोजगार के अवसर उत्पन्न करना कठिन है। अतः बेरोजगारी की समस्या का निराकरण करने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण करना आवश्यक है। 

(2) प्राकृतिक साधनों का सर्वेक्षण - सरकार को प्राकृतिक साधनों का विस्तृत सर्वेक्षण करके उन सम्भावनाओं का पता लगाना चाहिए जिनसे नये-नये उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं। 

(3) सामाजिक सुधार - भारत में सामाजिक ढाँचे में उपयुक्त परिवर्तन किया जाये, ताकि जाति प्रथा, पर्दा प्रथा, संयुक्त परिवार प्रणाली आदि के दोष दूर हो सके और श्रमिकों की गतिशीलता में वृद्धि होकर रोजगार के अवसर बढ़ सके। 

(4) उद्यमिता के गुणों का विकास - प्रारम्भ से ही छात्रा-छात्राओं में उद्यमिता के गुणों का विकास कर उन्हें स्वरोजगार के लिए तैयार किया जाये। स्वरोजगार के लिए एक बार प्रेरित होने के बाद व्यक्ति सरकारी अथवा निजी नौकरी की ओर नहीं भागता बल्कि वह उपलब्ध साधनों की ओर कदम बढ़ाता है।

भारत में ग्रामीण बेरोजगारी को दूर करने के लिए इन उपाय किये जाने की आवश्यकता है- 

(1) ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा - ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास किया जाये। इसके लिए आवश्यक है कि ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात, बैंक सेवाओं, विद्युत आपूर्ति आदि सुविधाओं का विकास किया जाये। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में फैली बेरोजगारी को दूर करने में मदद मिलेगी। 

(2) कृषि में संस्थागत परिवर्तन- कृषिगत विकास से रोजगार के अवसर अवश्य बढ़ेंगे लेकिन इस विकास के लिए संस्थागत व तकनीकी परिवर्तन एक साथ होने चाहिए। इसके लिए एक तरफ भूमि सुधर कार्यक्रम लागू किये जाने चाहिए और दूसरी ओर, सिचाई, उर्वरक, बीज आदि का तेजी से विस्तार करके कृषिगत उत्पादकता में वृद्धि की जानी चाहिए। 

(3) गाँव में रोजगारोन्मुख नियोजन - गाँव में सभी प्रकार के व्यक्तियों के लिए रोजगार के अनेक अवसर उत्पन्न किये जा सकते हैं लेकिन आवश्यकता है गाँव को ठीक से बसाने की एवं उनका समुचित विकास करने की। गाँव में इन्जीनियरों, ओवरसियरों, अध्यापकों, डाक-बाबुओं व डाकियों, मोटरचालकों, डाॅक्टरों, छोटे उद्यमकर्ताओं व मिस्त्रियों तथा अन्य व्यक्तियों के लिए रोजगार की विशाल सम्भावनाएँ निहित हैं। ग्रामीण विद्युतीकरण से गाँवों में आधुनिक जीवन की सभी सुविधाएँ पहुँचायी जा सकती हैं और धीरे-धीरे वहाँ की जनशक्ति को उत्पादक कार्यों में लगाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हमारा लक्ष्य केवल ‘मजदूरी पर रोजगार’ उत्पन्न करना ही नहीं है बल्कि हम साथ में ‘स्वरोजगार’ के अनेक अवसर भी विकसित करना चाहते हैं। 

(4) भूमि सुधर कार्यक्रमों का क्रियान्वयन - भारत में भूमि सुधर कार्यक्रमों का शीघ्रता से क्रियान्वयन किया जाय, जैसे-कृषि जोतों की सीमाबन्दी करके फालतू जमीन का वितरण किया जाय, भूमि की चकबन्दी की जाय, का संयुक्त भूमि को कृषि योग्य बनाकर उसको वितरित कर दिया जाय। इसके अतिरिक्त, जिन लोगों को भूमि आवंटित की गयी है, उनको तथा छोटे किसानों को कृषि से सम्बन्धित आवश्यक साधन उपलब्ध कराये जायें। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि होगी। 

(5) बहुफसली कृषि को प्रोत्साहन - भारत में बहुफसली कृषि को प्रोत्साहन दिया जाये जिससे कि श्रमिकों को पूर्ण रोजगार उपलब्ध हो सके। बहुफसली कार्यक्रम के लिए आवश्यक है कि सिचाई, उन्नत बीज, साख आदि की व्यवस्था की जाये तथा कृषि तकनीक का विकास किया जाये।

भारत में शहरी बेरोजगारी को दूर करने में निम्न उपाय सम्मिलित किये जा सकते हैं-

(1) उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग - भारत में अधिकांश बड़े उद्योग अपनी स्थापित क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण बिजली की पूर्ति, कच्चे माल, परिवहन सुविधाओं आदि का अभाव होना है। इन आधारभूत सुविधाओं के अभाव के कारण कई उद्योगों में क्षमता-उपयोगिता बहुत कम है। अतः सरकार को इन कठिनाइयों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। क्षमता के अनुरूप उत्पादन होने से रोजगार की मात्रा में भी वृद्धि होती है।

(2) लघु उद्योगों को प्रोत्साहन - स्वरोजगार योजना को प्रोत्साहन देने के लिए वित्त, तकनीकी प्रशिक्षण, कच्चा माल तथा मशीनरी आदि की सुविधाएँ उदारतापूर्वक उपलब्ध करायी जानी चाहिए। विभिन्न अध्ययनों से यह बात स्पष्ट होती है कि लघु उद्योग की रोजगार निर्माण क्षमता बड़े उद्योगों की तुलना में बहुत अधिक होती है। अतः लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देकर रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है। जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान आदि कई देशों में लघु उद्योगों का जाल फैलाकर रोजगार के अवसरों में वृद्धि की गयी है। 

(3) शिक्षा का व्यावहारिक रूप - शिक्षित बेरोजगारी की समस्या को हल करने लिए शिक्षा प्रणाली का पुनर्गठन किया जाना चाहिए। शिक्षा प्रणाली को व्यवसाय-उन्मुख बनाया जाना चाहिए। शिक्षित बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए शिक्षा को रोजगार-उन्मुख बनाना आवश्यक है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जानी चाहिए। 

(4) सीमित स्वचालन पर नियन्त्रण - विगत वर्षों में भारत में उद्योगपतियों ने मशीनों के आधुनिकीकरण व स्वचालन पर बहुत जोर दिया है। इसका कारण जहाँ उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है, वहाँ सम्भवतः श्रमिकों पर कम निर्भर रहना है परन्तु रोजगार की दृष्टि से यह नीति उचित नहीं है। अतः सरकार को केवल पूँजीगत वस्तुओं तथा निर्यात से सम्बन्धित वस्तुओं के सम्बन्ध में स्वचालन की अनुमति देनी चाहिए। 

(5) उदारीकरण की नीति - भारत सरकार की 1991 की आर्थिक उदारीकरण की नीति के बाद से देश में विदेशी कम्पनियों की भरमार हो गयी है। इन कम्पनियों द्वारा वृहद् पैमाने के उद्योगों की स्थापना का क्रम जारी है। इन उद्योगों में आधुनिक मशीनों के माध्यम से उत्पादन किया जाता है जिससे मानवीय श्रम का उपयोग कम होता जा रहा है, जबकि देश में मानव-शक्ति की कमी नहीं है। यद्यपि उदारीकरण की यह नीति जारी रहना उचित है किन्तु इस नीति के माध्यम से ऐसे उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जो श्रम-प्रधान हों। 

अनुमान है कि उतनी ही पूँजी लगाने पर लघु उद्योग वृहद् उद्योग की तुलना में पाँच गुना अधिक व्यक्तियों को रोजगार के अवसर प्रदान कर सकते हैं।

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