गुट निरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन प्रत्येक 3 वर्ष बाद किये जाते है इसकी लोकप्रियता को बढ़ाना इसका प्रमुख उद्देश्य है। इन सम्मेलनों में राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष तथा शासनाध्यक्ष भाग लेते है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन के प्रथम शिखर सम्मेलन
गुट निरपेक्ष आंदोलन के प्रथम शिखर सम्मेलन 1961 ई. में चेकोस्लाविया की राजधानी वेलग्रेड में प्रथम शिखर सम्मेलन राष्ट्रपति मार्शल टीटो के सुझावों से आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन में किन देशों को आमंत्रित किया जाए तथा किन देशों को नहीं यह एक बड़ी विडम्बना थी। देशों को आमंत्रित करने के लिए पांच सूत्रीय शर्ते थी -- जो देश शांतिपूर्ण-सह अस्तित्व के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करता हो।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चल रहे आंदोलनों का सर्मथन करने वाले देश
- ऐसे देश जो सैनिक गुटों के सदस्य न हो
- ऐसे देश जिन्होंने किसी महाशक्ति के साथ संधि न की हो
- ऐसे देश जिनकी भूमि पर सैनिक अड्डे न हो।
- इस सम्मेलन में दुनिया का ध्यान ऐसी समस्याओं की ओर खींचा गया जिनसे विश्वयुद्ध संभव था वे जिनमें बर्लिन की समस्या, संयुक्त राष्ट्र में साम्यवादी चीन की सदस्यता का प्रश्न तथा कांगों की समस्या।
- प्रत्येक देश को अपनी इच्छानुसार शासन का स्वरूप निर्धारण करने और संचार करने की स्वतंत्रता हो।
- विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए साम्राज्यवाद को हानिकारक सिद्ध किया जाए।
- बिना किसी भेदभाव के किसी भी देश की प्रभुसत्ता का सम्मान किया जाना चाहिए साथ ही किसी भी देश के आंतरिक मामलों के संबंध में हस्तक्षेप की नीति का समर्थन करना चाहिए।
- सम्मेलन में यह भी कहा गया कि शान्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए विकासशील देश आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पिछड़ेपन से मुक्ति दिलाकर उनकी सामाजिक व्यवस्था को उन्नत बनाया जाना चाहिए।
- इस सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति की आलोचना की गई।
- शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व के सिद्धान्त में आस्था व्यक्त की गई। इस सम्मेलन से शीत-युद्ध को कम किया जा सका और अन्र्तराष्ट्रीय राजनीति पर इसका बड़ा ही हितकारी प्रभाव पड़ा। इसके कारण 1963 में अणु परीक्षण निषेध संधि सफलता पूर्वक की गई।