इल्बर्ट बिल विवाद क्या है, इल्बर्ट बिल विवाद किससे संबंधित था ?

सन 1880 में लॉर्ड रिपन , लॉर्ड लिटन के स्थान पर भारत के गवर्नर जनरल बने। उन्होंने भारत में अनेक सुधार के कार्य किए। वह न्याय क्षेत्र में भी सुधार चाहते था, क्योंकि भारत में न्यायिक क्षेत्र में जाति विभेद विद्यमान था।

इल्बर्ट विधेयक पहले नगरीय क्षेत्रों में तो भारतीय मजिस्ट्रेट तथा सैशन न्यायाधीश भारतीय और यूरोपीय दोनों के मुकदमे की सुनवाई कर सकते थे परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपियन अपराधियों के मुकदमे सुनने का अधिकार नहीं था।

ग्रामीण क्षेत्रों में केवल यूरोपीय न्यायाधीश ही यूरोपीय अभियुक्तों की सुनवाई कर सकता था। दीवानी मामलों में कोई भेदभाव नहीं था।

लॉर्ड रिपन की परिषद के विधि सदस्य इल्बर्ट ने इस अन्याय को दूर करने के आशय का एक विधेयक 2 फरवरी 1883 को प्रस्तुत किया कि भारतीय न्यायाधीशों को भी यूरोपियन अपराधियों के मुकदमे सुनने का अधिकार हो। इसे ही इल्बर्ट बिल कहा जाता है।

इल्बर्ट बिल का उद्देश्य 

इल्बर्ट विधेयक का उद्देश्य, "जाति भेद पर आधारित सभी न्यायिक अयोग्यताएं तुरंत प्रभाव से समाप्त कर दी जाएं और भारतीय तथा यूरोपीय न्यायाधीशों की शक्तियां समान कर दी जाएं।"

इस प्रकार इल्बर्ट बिल का उद्देश्य भारतीय न्यायाधीशों को यूरोपियन अपराधियों के मुकदमे सुनने का अधिकार देना था।

इल्बर्ट बिल के विवादास्पद होने का कारण

इल्बर्ट विधेयक से यूरोपीयन लोग नाराज हो गए उन्होंने इसे अपना जातीय अपमान समझा और इसके विरुद्ध संगठित होकर यूरोपीय रक्षा संघ बनाया तथा इसके विरूद्ध आंदोलन चलाया।

लंदन के प्रसिद्ध पत्र The Times ने रिपन की नीतियों की आलोचना की। महारानी विक्टोरिया ने भी लार्ड रिपन  के प्रस्ताव की बुद्धिमत्ता पर संदेह प्रकट किया।

इल्बर्ट बिल विवाद का समापन 

इल्बर्ट बिल के विरुद्ध बढ़ते दबाव के कारण रिपन को झुकना पड़ा और इसमें संशोधन किया गया। संशोधन 26 जनवरी 1884 को किया गया जिसके अनुसार यदि यूरोपीय लोगों के मुकदमे भारतीय मजिस्ट्रेट अथवा सैशन न्यायाधीश के समक्ष आएं तो वे लोग 12 व्यक्तियों की ज्यूरी के द्वारा मुकदमे की सुनवाई की मांग कर सकते हैं और 12 व्यक्तियों में कम से कम 7 यूरोपीय या अमेरिकी होना आवश्यक था। ग्रामीण क्षेत्रों में मुकदमा न्यायधीशों को उच्च न्यायालय की आज्ञा पर कहीं और हस्तान्तरित करना होता था।

इल्बर्ट बिल विवाद का भारत के लोगों पर प्रभाव

अंग्रेजों के इस संगठित विरोध ने भारतीयों की आंखें खोल दी और इस घटना ने उन्हें भी संगठित होने के लिए प्रेरित किया तथा भारतीयों ने भी राष्ट्रीय संस्था के निर्माण का निश्चय किया। परिणाम स्वरूप कांग्रेस की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ और राष्ट्रीय आंदोलन की गति तीव्र हुई।

फिरोजशाह मेहता ने इल्बर्ट विधेयक को समर्थन दिया। 28 अप्रैल 1883 को बम्बई सार्वजनिक सभा में इल्बर्ट विधेयक के समर्थन में अपने विचार व्यक्त किए। 

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