जैन धर्म को मानने वाले राजा

जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। जो काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे। इन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में सन्यास जीवन को स्वीकारा था। इनके द्वारा दी गई शिक्षा थी-

  1. हिंसा न करना
  2. सदा सत्य बोलना
  3. चोरी न करना
  4. संपत्ति न रखना।
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर हुए। महावीर का जन्म 540 ईसापूर्व में कुंडग्राम(वैशाली) में हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छवि राजा चेटक की बहन थी। महावीर की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम अनोज्जाप्रियदर्शिनी था। महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था। इन्होंने 30 वर्ष की उम्र में माता पिता की मृत्यु के पश्चात अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर सन्यास जीवन को स्वीकारा था। 12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद महावीर को जृम्भीक के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए संपूर्ण ज्ञान का बोध हुआ। महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत भाषा में दिया। 

महावीर के अनुयायियों को मूलत: निग्रंथ कहा जाता है। महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद(प्रियदर्शनी के पति) जामिल बने। प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चंपा थी। महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में विभाजित किया था। आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंधर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा और जैन धर्म का प्रथम थेरा या मुख्य उपदेशक हुआ।

लगभग 300 ईसापूर्व में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा, जिसके कारण भद्रबाहु अपने शिष्यों सहित कर्नाटक चले गए। किंतु कुछ अनुयायी स्थूलभद्र के साथ मगध में ही रुक गए। भद्रबाहु के वापस लौटने पर मगध के साधुओं से उनका गहरा मतभेद हो गया जिसके परिणाम स्वरुप जैन मत श्वेतांबर एवं दिगंबर नामक दो संप्रदायों में बट गया। स्थूलभद्र के शिष्य श्वेतांबर(श्वेत वस्त्र धारण करने वाले) एवं भद्रबाहु के शिष्य दिगंबर(नग्न रहने वाले) कहलाए।

जैन धर्म के त्रिरत्न 

  1. सम्यक दर्शन
  2. सम्यक ज्ञान
  3. सम्यक आचरण
त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्न पांच महाव्रतों का पालन अनिवार्य है- अहिंसा, सत्य वचन, अस्तेय, एवं ब्रम्हचर्य जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है, जैन धर्म में आत्मा की मान्यता है। महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास रखते थे। जैन धर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम स्यातवाद और अनेकांतवाद हैं। जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्यदर्शन से ग्रहण किया।

जैन धर्म मानने वाले कुछ राजा

  1. उदायिन, 
  2. वंदराजा, 
  3. चंद्रगुप्त मौर्य, 
  4. कलिंग नरेश खारवेल, 
  5. राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष, 
  6. चंदेल शासक।
मैसूर के गंग वंश के मंत्री, चामुंड के प्रोत्साहन से कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 10 वीं शताब्दी के मध्य में विशाल बाहुबलि की मूर्ति(गोमतेश्वर की मूर्ति) का निर्माण किया गया। खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया। मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था। मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से है। जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है। 72 वर्ष की आयु में महावीर की मृत्यु(निर्वाण) 468 ईसापूर्व में बिहार राज्य के पावापुरी(राजगीर) में हो गई।

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