John Calvin (जॉन केल्विन) कौन है और उसने क्या किया ?

जाॅन कैल्विन जाॅन कैल्विन लूथर से भी उग्र सुधरक था। वह चाहता था कि ईसाई लोग बाइबिल की शिक्षा के अनुसार ही जीवन व्यतीत करें। लूथर का तो मतभेद केवल सैद्धांतिक था तथा वह गिरजाघरों के प्रबंध में अधिक परिवर्तनों के पक्ष में नहीं था, लेकिन कैल्विन इस क्षेत्र में भी आमूल परिवर्तन करने के पक्ष में था।

जाॅन कैल्विन का आरम्भिक जीवन

जाॅन कैल्विन का जन्म फ्रांस में 1502 में हुआ था। उसके पिता ने प्रारंभ से ही उसको पादरी बनाने की ठानी थी। जब कैल्विन बड़ा हुआ तो वह चर्च के विद्रोह का पक्षपाती बन गया। सरकार ने उसको नास्तिक होने के नाते हर प्रकार का दण्ड देना चाहा, परन्तु वह फ्रांस से भाग निकला और बहुत दिनों तक विदेशों में घूमता रहा। बेसील नगर में रहते हुए उसने "The Institute of The Christian Religion" नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें उसने ईसाई धर्म के विषय में अपना मत प्रकट किया। वह मार्टिन लूथर से भी अधिक विद्वान और धर्मशास्त्र का पण्डित था। 

1536 ई. में वह स्विट्जरलैण्ड के जैनेवा नगर में पहुँचा और वहाँ धर्म का प्रचार करने लगा। धीरे-धीरे जैनेवा निवासियों और वहाँ के धार्मिक लोगों पर उसका इतना गहरा प्रभाव हो गया मानों वह उस नगर का शासक हो। नगर की सफाई, व्यवसाय, उद्योग-धंधे, शिक्षा आदि सब कार्य उसके हाथ में था। वह हर कार्य के करने में बड़ा निपुण था। उसका शासन बड़ा कठोर था जिसमें शोख कपड़े पहनना, नाचना-कूदना, शराब पीना निषिद्ध था। ऐसा करने वालों को कड़ा दण्ड दिया जाता था। दुराचार का दण्ड मृत्यु था। नास्तिकों को जीवित ही जलवा दिया जाता था।

जाॅन कैल्विन के सिद्धांत 

कैल्विन संसार के भोग-विलास के विरुद्ध था। वह कट्टर भाग्यवादी था। उसका कथन था कि जैसा मनुष्य के भाग्य में भगवान् ने लिख दिया है उसको संसार की कोई शक्ति मिटा नहीं सकती। कुछ लोग जन्म से मरण तक सुख भोगने के लिए और कुछ दुःख भोगने के लिए पैदा होते हैं। संसार में समानता कभी नहीं हो सकती। कुछ जन्म से ही बड़े तथा कुछ जन्म से ही छोटे एवं कुछ जन्म से ही भाग्यशाली होते हैं। उसका यह कथन लोगों को सदा भयभीत रखता था।

जाॅन कैल्विन का प्रभाव

यदि कैल्विन की शिक्षाएँ एवं प्रभाव केवल जैनेवा तक ही सीमित रहते तो संसार में वह इतनी कीर्ति प्राप्त न कर पाता। लेकिन जैनेवा उस समय में कई देशों के शरणार्थियों का केन्द्र था, जो अपने देश के धार्मिक अत्याचारों से जान बचाकर वहाँ आ गये थे। उन सब व्यक्तियों पर कैल्विन का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वे कैल्विन के शिष्य बन गए और जब वे वापिस अपने देश लौटै, तो वहाँ उन्होंने कैल्विन के सिद्धांतों का प्रचार किया। इंग्लैण्ड से जो लोग मेरी ट्यूडर के अत्याचारों से बचकर भाग आये थे, उन्होंने इंग्लैण्ड वापिस जाकर कैल्विन के सिद्धांतों के आधार पर एक नवीन सम्प्रदाय की स्थापना की, जो प्यूरिटन धर्म कहलाया। 

प्यूरिटन सम्प्रदाय वालों ने इंग्लैंड के इतिहास में बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य किया। स्काॅटलैण्ड, हाॅलैण्ड और फ्रांस में जिन लोगों ने इन सिद्धांतों को अपनाया, वे अपने दृढ़ विश्वास, दृढ़ संकल्प, कठिन परिश्रम तथा शुद्ध आचरण के लिए आज तक प्रसिद्ध हैं।

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