John Wycliffe (जॉन वाइक्लिफ) कौन था और धर्म सुधार में उसका क्या योगदान था ?

जाॅन वाइक्लिफ आक्सपफोर्ड विश्वविद्यालय का एक प्राध्यापक था। उसने कैथोलिक धर्म के बहुत से उपदेश तथा चर्च के क्रियाकलापों की आलोचना की। उसने घोषित किया कि पोप पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि नहीं है तथा भ्रष्ट एवं विवेकहीन पादरियों द्वारा दिये जाने वाले धार्मिक उपदेश निरर्थक हैं। उसका कहना था कि ऐश्वर्य एवं विलासिता का जीवन बिताने वाले पादरी दूसरों के पापों के क्षमा में कैसे सहायक हो सकते हैं? उसका कहना था कि प्रत्येक ईसाई को बाइबिल के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करना चाहिए और उसके लिए चर्च या पादरियों के मार्ग-निर्देशन की आवश्यकता नहीं है। उसने यह भी माँग की कि चर्च की विपुल धन सम्पत्ति पर राज्य को अधिकार कर लेना चाहिए। 

कुछ विद्वानों का मानना है कि उसने अपने साथियों के साथ मिलकर जन सामान्य के लिए बाइबिल का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया था, परन्तु अन्य विद्वान् इस बात को प्रामाणिक नहीं मानते थे। परन्तु इतना निश्चित है कि उसने अपने अनुयायियों को अंग्रेजी भाषा में अनुवादित बाइबिल का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया था। उसने तत्वान्तरण के सिद्धान्त (पादरी द्वारा दैवी शक्ति से रोटी और शराब को ईसा मसीह के शरीर और रक्त में परिवर्तित करना) की कटु आलोचना की। वस्तुतः वाइक्लिफ के विचार क्रान्तिकारी थे जिन्हें रूढि़वादी धर्माधिकारी सहन नहीं कर पाये। उन्होंने उस पर ‘धर्मद्रोह’ का आरोप लगाया, परन्तु सर्वसाधारण में वाइक्लिफ की लोकप्रियता से घबरा कर वे उसके विरुद्ध कोई सख्त कदम उठा नहीं पाये। 

वाइक्लिफ ने भी सार्वजनिक रूप से अपने विचारों का प्रचार न करने का आश्वासन दिया। उसने विश्वविद्यालय की सेवा भी त्याग दी और सम्मान सहित मृत्यु को प्राप्त हुआ। परन्तु बाद में चर्च के अधिकारियों ने उसकी लाश को कब्रिस्तान से निकलवा कर गन्दी जगह पर  फेकवा दिया। इंग्लैण्ड में उसके अनुयायी ‘लोहार्ड’ कहलाये। उन्होंने वाइक्लिफ के विचारों का प्रचार जारी रखा। 

चर्च ने उन पर घोर अत्याचार किये तथा कइयों को जीवित जला दिया गया।

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