किशोरावस्था शब्द अंग्रेजी भाषा के Adolescence शब्द का हिंदी पर्याय है। Adolescence शब्द का उद्भव लेटिन भाषा से माना गया है जिसका सामान्य अर्थ है बढ़ाना या विकसित होना। 0 वर्ष की आयु से 19 वर्ष तक की आयु के इस काल में शारीरिक तथा भावनात्मक सरूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं।
कुछ मनोवैज्ञानिक इसे 13 से 18 वर्ष के बीच की मानते हैं, जबकि कुछ की यह धारणा है कि यह अवस्था 24 वर्ष तक रहती है। लेकिन किशोरावस्था को निश्चित अवधि की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। यह अवधि तीव्र गति से होने वाले शारीरिक परिवर्तनों विशेषतया यौन विकास से प्रारंभ हो कर प्रजनन परिपक्वता तक की अवधि है।
किशोरावस्था की परिभाषा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह गौण यौन लक्षणों (यौवानारम्भ) के प्रकट होने से लेकर यौन एवं प्रजनन परिपक्वता की ओर अग्रसर होने का समय है जब व्यक्ति मानसिक रूप से प्रौढ़ता की ओर अग्रसर होता है और वह सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से उपेक्षाकृत आत्मा-निर्भर हो जाता है जिससे समाज में अपनी एक अलग पहचान बनती है।किशोरावस्था की प्रवृतियां एवं लक्षण
मानव विकास की चार अवस्थाएं मानी गयी हैं बचपन, किशोरावस्था,युवावस्था और प्रौढावस्था। यह विकास शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप में होता रहता है। किशोरावस्था सबसे अधिक परिवर्तनशील अवधी है। किशोरावस्था के निम्लिखित महत्वपूर्ण लक्षण इसकी अन्य अवस्थाओं से भिन्नता को प्रकट करते हैं-क) शारीरिक परिवर्तन - किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक विकास और मानसिक परिवर्तन होते हैं। विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन आता है, जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं। इनका सीधा सम्बन्ध यौन विकास से है।
ख) मनौवैज्ञानिक परिवर्तन - किशोरावस्था मानसिक, भौतिक और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की भी अवस्था है। एक किशोर, छोटे बच्चे की तरह किसी दूसरे पर निर्भर रहने की उपेक्षा, प्रौढ़ व्यक्ति की तरह स्वतंत्र रहने की इच्छा प्रकट करता है। इस समय किशोर पहली बार तीव्र यौन इच्छा का अनुभव करता है, इसी कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित रहता है। इस अवस्था में किशोर मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है यह अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी गयी है।
ग) सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन - किशोरों में सामाजिक-सांस्कृतिक मेलजोल के फलस्वरूप कुछ और परिवर्तन भी आते हैं। सामान्यता: समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप में परिभाषित नहीं करता। फलस्वरूप किशोर बाल्यावस्था और प्रौढावस्था के मध्य अपने को असमंजस की स्थिति में पाते हैं। उनकी मनौवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समाज द्वार महत्व नहीं दिया जाता, इसी कारण उनमें क्रोध, तनाव एवं व्यग्रता की प्रवृतिया उत्पन्न होती हैं। किशोरावस्था में अन्य अवस्थाओं की उपेक्षा उत्तेजना एवं भावनात्मक अधिक प्रबल होती है।क) पूर्व किशोरावस्था - विकास की यह अवस्था किशोरावस्था का प्रारंभिक चरण है। पूर्व किशोरावस्था के इस चरण में शारीरिक विकास अचानक एवं झलकता है। यह परिवर्तन भिन्न किशोरों में भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। इस समय टांगों और भुजाओं की लम्बी हड्डियों का विकास तीव्रता से होता है। किशोर की लम्बाई 8 से 9 इंच तक प्रतिवर्ष बढ़ सकती है। लिंग-भेद के कारण लम्बाई अधिक बढ़ती है। इस समय किशोर तीव्र सामाजिक विकास और अपने में गतिशील यौन विकास का अनुभव करते हैं। वे अपने समवय समूहों में जाने की चेष्टा करते हैं।
किशोरावस्था के चरण
किशोरावस्था के तीन चरण हैं -
- पूर्व किशोरावस्था
- मूल किशोरावस्था
- किशोरावस्था का अंतिम चरण
यौन सम्बंधित सोच एवं यौन प्रदर्शन इस स्तर पर प्रारंभ हो जाता है। कुछ अभिभावक इस सामान्य वयवहार को स्वीकृत नहीं करते और किशोरों को दोषी ठहराते हैं। विकास के इस चरण में शारीरिक परिवर्तन से किशोर प्राय: घबरा जाते हैं। वे सामाजिक- सांस्कृतिक सीमाओं और यौन इच्छाओं के मध्य संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं।
ख) मूल किशोरावस्था - किशोरावस्था का यह चरण शारीरिक, भावनात्मक और बौधिक क्षमताओं के विकास को दर्शाता है। इस चरण में यौन लक्षणों का विकास जारी रहता है तथा प्रजनन अंग, शुक्राणु उत्पन्न करने में सक्षम हो जाते हैं। इस समय किशोर अपने को अभिभावकों से दूर रखने का प्रयास करते हैं। वह प्राय: आदर्शवादी बनते हैं और यौन के विषय में जाने की उनकी रुचि निरंतर बढ़ती रहती है। किशोर के विकास का यह चरण प्रयोग और साहस से भरा होता है। प्रत्येक किशोर अपने से विपरीत लिंग और समवाय समूहों से सम्बन्ध रखना चाहता है। किशोर इस चरण में समाज में अपने अस्तित्व को जानना चाहता है और समाज को अपना योगदान देना चाहता है। किशोर की मानसिकता इस स्थिति में और अधिक जटिल बन जाती है। उसकी भावना गहरी और घनिष्ट हो जाती है और उनमें निर्णय लेने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
ग) किशोरावस्था का अंतिम चरण - किशोरावस्था के इस चरण में अप्रधान यौन लक्षण भली प्रकार से विकसित हो जाते हैं और यौन अंग प्रौढ़ कार्यकलाप में भी सक्षम हो जाते हैं। किशोर समाज में अपनी अलग पहचान और स्थान की आकांशा रखता है। उनकी यह पहचान बाहरी दुनिया के वास्तविक दृश्य से अलग ही होती है। इस समय उनका समवाय समूह कम महत्व रखता है क्योंकि अब मित्रों के चयन की प्रवृति अधिक होती है
किशोर इस समय अपने जीवन के लक्ष्य को समक्ष रखता है। हालांकि आर्थिक रूप से वह कई वर्षों तक अभिभावक पर ही निर्भर करता है। इस चरण में किशोर सही व गलत मूल्यों की पहचान करता है तथा उसके अन्दर नैतिकता इत्यादि भावनाओं का विकास होता है। इस समय किशोर अपना भविष्य बनाने के अभिलाषी होते हैं। उपयुक्त कार्य के लिए वे अभिभावकों एवं समाज का समर्थन चाहते हैं ताकि उनके द्वारा उपेक्षित कार्यों का सम्पादन हो।
किशोर इस समय अपने जीवन के लक्ष्य को समक्ष रखता है। हालांकि आर्थिक रूप से वह कई वर्षों तक अभिभावक पर ही निर्भर करता है। इस चरण में किशोर सही व गलत मूल्यों की पहचान करता है तथा उसके अन्दर नैतिकता इत्यादि भावनाओं का विकास होता है। इस समय किशोर अपना भविष्य बनाने के अभिलाषी होते हैं। उपयुक्त कार्य के लिए वे अभिभावकों एवं समाज का समर्थन चाहते हैं ताकि उनके द्वारा उपेक्षित कार्यों का सम्पादन हो।
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