मार्टिन लूथर कौन थे और उन्होंने क्या किया ?

मार्टिन लूथर (1483-1546)-चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा बुराइयों के विरुद्ध सबसे अधिक असन्तोष जर्मनी में फैला हुआ था और जर्मनी में ही चर्च के विरुद्ध एक व्यापक तथा सशक्त आन्दोलन भी चला। इस आन्दोलन का नेता था मार्टिन लूथर। 

मार्टिन लूथर का जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ था परन्तु वह बचपन से ही मेधावी था। 1505 ई. के उसने एरफर्ट विश्वविद्यालय से एम. ए. किया। इसके बाद उसने कानून का अध्ययन शुरू किया परन्तु न जाने किस घटना के कारण उसने अध्ययन छोड़ कर वैराग्य धारण कर लिया और ईसाई मठ में सम्मिलित हो गया। एरफर्ट में मठ में रहते हुए वह मुक्ति का उपाय सोचने लगा। वहाँ के मठाधिपति ने उसे अपने पुण्य कार्यों पर भरोसा न रख कर ईश्वर की कृपा तथा क्षमा पर भरोसा रखने के लिए कहा। यहाँ रहते हुए लूथर ने महात्मा पाल और आगस्टाइन के लेखों का गम्भीर मनन किया, जिससे उसे ज्ञात हुआ कि मनुष्य किसी भी पुण्य को करने में समर्थ नहीं है, उसकी मुक्ति केवल ईश्वर में श्रद्धा और भक्ति करने से ही हो सकती है। फिर भी इससे लूथर को विशेष सन्तोष नहीं हुआ। 

1508 में वह विटनबर्ग विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बन गया और अपनी मृत्युपर्यन्त तक विश्वविद्यालय से जुड़ा रहा। यहाँ पर वह पाल के पत्रों तथा भक्ति से मुक्ति पाने के सिद्धान्त की शिक्षा देने लगा। विश्वविद्यालय में वह अपनी संगीत की निपुणता तथा वाक्पटुता के लिए प्रसिद्ध था। 1511 ई. में बड़े धर्माधिकारी उचित-अनुचित उपायों से धन अर्जित करने में लगे हुए थे और एक-दूसरे के प्रभाव को कम करने के लिए गुटबन्दी तथा जोड़-तोड़ में लगे हुए थे। वे लोग अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करके सांसारिक जीवन बिता रहे थे। धर्माधिकारियों के भ्रष्ट आचरण से लूथर को घोर निराशा हुई। उसका यह विश्वास दृढ़ हो गया कि धर्म के प्रमुख शत्रु धर्म की प्रधान संस्था और उसके संचालक ही हैं। 1517 ई. में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटी जिसने लूथर को एक प्रकट विद्रोही बना दिया। यह घटना थी ‘पाप-विमोचन पत्रों की बिक्री।’ पोप लियो दशम इन दिनों रोम में सन्त पीटर के गिरजाघर को पुनः बनवाने के लिए धन एकत्रा कर रहा था और इसके लिए इंडलजेन्स (पाप-विमोचन पत्र) बेचने शुरू किये। पाप-विमोचन पत्र देना कोई नई बात न थी।  

कैथोलिक परम्परा के अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा किये गये पाप से उसे क्षमा मिल सकती है यदि वह व्यक्ति अपने पाप के लिये प्रायश्चित करे। इससे पापी व्यक्ति के लिए भी स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। परन्तु मृत्यु के बाद ऐसे पापी लोगों की आत्मा को कुछ समय के लिए अपने पाप की सजा भुगतने के लिए नरक में रहना पड़ता है। इंडलजेन्स के माध्यम से नरक की अवधि में अथवा सजा की कठोरता में थोड़ी-बहुत कमी की जा सकती है अथवा पूर्णतया माफ हो सकती है। इंडलजेन्स तभी सार्थक हो सकता था जबकि उसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति सच्चे मन से अपने पाप का प्रायश्चित करे। प्रायश्चित करने के अनेक साधनों में से एक था-चर्च को भेंट अथवा गरीबों को दान-पुण्य करना। इसके लिए पोप सम्बन्धित व्यक्ति को इंडलजेन्स जारी करता था।

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