परीक्षणात्मक अनुसंधान क्या है परीक्षणात्मक अनुसंधान के प्रकार ?

समाजशास्त्रीय अनुसंधान की वैज्ञानिकता के विरूद्ध यह आरोप लगाया जाता है कि इसमें प्रयोगी करण का अभाव होने का कारण इसे वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है। जिस प्रकार प्राकृतिक विज्ञानों में अध्ययन विषय को नियन्त्रित करके घटनाओं का अध्ययन किया जाता है, उसी प्रकार नियन्त्रित परिस्थितियों में सामाजिक घटनाओं का निरीक्षण एवं परीक्षण परीक्षणात्मक अनुसंधान कहलाता है।

इस प्रकार के अनुसंधान द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि किसी नवीन परिस्थिति अथवा परिवर्तन का समाज के विभिन्न समूहों, संस्थाओं अथवा संरचनाओं पर क्या एवं कितना प्रभाव पड़ा है। इसके लिये सामाजिक समस्या या घटना के उत्तरदायी कुछ चरों (Attributes) को नियन्त्रित करके, शेष चरों के प्रभाव को नवीन परिस्थितियों में देखा जाता है, और कार्य कारण सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। 

परीक्षणात्मक अनुसंधान के प्रकार 

परीक्षणात्मक अनुसंधान के निम्न तीन प्रकार हैं:- (i) पश्चात परीक्षण (ii) पूर्व पश्चात परीक्षण (iii) कार्यान्तर परीक्षण

(i) पश्चात परीक्षण - पश्चात परीक्षण वह प्रविधि है जिसके अन्र्तगत पहले स्तर पर लगभग समान विशेषता वाले दो समूहो का चयन कर लिया जाता है। जिनमें से एक समूह को नियन्त्रित समूह (controlled group) कहा जाता है, क्योंकि उसमें को परिवर्तन नहीं लाया जाता है। दूसरा समूह परीक्षणात्मक समूह (experimental group) होता है, इसमें चर के प्रभाव में परिवर्तन करने का प्रयास किया जाता है। कुछ समय पश्चात दोनों समूहों का अध्ययन किया जाता है। यदि परीक्षणात्मक समूह में नियन्त्रित समूह की तुलना में अधिक परिवर्तन आता है, तो इसका अर्थ यह माना जाता है कि इस परिवर्तन का कारण वह चर है जिसे परिक्षणात्मक समूह में लागू किया गया था।

उदाहरणस्वरूप, दो समान समूहों या गॉंवों को लिया गया-जो कुपोषण की समस्या से ग्रस्त हैं। इनमें से एक समूह, में जिसे परीक्षणात्मक समूह माना गया है, कुपोषण के विरुद्ध प्रचार-प्रसार किया जाता है एवं जागरूकता पैदा की जाती है। एक निश्चित अवधि के पश्चात् परीक्षणात्मक समूह की तुलना नियन्त्रित समूह से की जाती है जिसे ज्यों का त्यों रहने दिया गया। यदि परीक्षणात्मक समूह में कुपोषण को लेकर नियन्त्रित समूह की तुलना में काफी अन्तर पाया जाता है तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रचार-प्रसार एवं जागरूकता से कुपोषण को कम किया जा सकता है।

(ii) पूर्व पश्चात् परीक्षण - इस विधि के अन्र्तगत अध्ययन के लिए केवल एक ही समूह का चयन किया जाता है। ऐसे अनुसंधान के लिए चयनित समूह का दो विभिन्न अविधेयों में अध्ययन करके पूर्व और पश्चात के अन्तर को देखा जाता है। इसी अन्तर को परीक्षण अथवा उपचार का परिणाम मान लिया जाता है।

(iii) कार्यान्तर तथ्य परीक्षण - यह वह विधि है जिसमें हम विभिन्न आधारों पर प्राचीन अभिलेखों के विभिन्न पक्षों की तुलना करके एक उपयोगी निष्कर्ष पर पहुँच सकते है। ऐसे अनुसंधान के लिए चयनित समूह का दो विभिन्न अविधेयों में अध्ययन करके पूर्व और पश्चात के अन्तर को देखा जाता है। इस विधि का प्रयोग भूतकाल में घटी अथवा ऐतिहासिक घटना का अध्ययन करने के लिये किया जाता है। भूतकाल में घटी हु घटना को दुबारा दोहराया नहीं जा सकता है। ऐसी स्थिति में उत्तरदायी कारणों को जानने के लिये इस विधि का प्रयोग किया जाता है। 

इस विधि द्वारा अध्ययन हेतु दो ऐसे समूहों को चुना जाता है जिनमें से एक समूह ऐसा है जिसमें को ऐतिहासिक घटना घटित हो चुकी है। एवं दूसरा ऐसा समूह ऐसा है जिसमें वैसी को घटना घटित नहीं हुआ है।

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