पश्चिमीकरण क्या हैं इसकी विशेषताओं का उल्लेख ?

पश्चिमीकरण का तात्पर्य विविध प्रकार के परिवर्तनों से है, जैसे वस्त्र, भोजन खाने के तरीके, रहन-सहन के ढंग आदि के परिवर्तनों से है। पश्चिमीकरण ने भारत में मानवतावादी दृष्टिकोण को अपनाने तथा तार्किक ढंग से विचार करने के लिए लोगों को प्रेरित किया। पश्चिमीकरण का तात्पर्य केवल पाश्चात्य रीति-रिवाजों व ढंगों को अपनाना मात्रा ही नहीं है। यह एक जटिल एवं सर्वव्यापक अवधारणा है। इसके अन्तर्गत विज्ञान, तकनीकी, प्रयोग-सिद्ध पद्धति इत्यादि आते हैं। पश्चिमीकरण ने समतावादी और लौकिक दृष्टिकोण के विकास में सहायता प्रदान की। लोग विभिन्न समस्याओं के प्रति अब तार्किक दृष्टिकोण अपनाने लगे हैं।

डाॅ. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है, मैंने ‘पश्चिमीकरण’ शब्द का प्रयोग भारतीय समाज व संस्कृति में उन परिवर्तनों के लिए किया है जो एक सौ पचास वर्षों से अधिक समय के अंग्रेजी राज के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए हैं और यह शब्द प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, वैचारिक मूल्यों आदि विभिन्न स्तरों पर होने वाले परिवर्तनों का समावेश करता है।

लिंच ने श्रीनिवास को उद्धृत करते हुए लिखा है, पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक, खान-पान, तौर-तरीके, शिक्षा, विधियाँ और खेल, मूल्यों आदि को सम्मिलित किया जाता है।

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पश्चिमीकरण की अवधारणा के अन्तर्गत भारत में होने वाले वे सभी सांस्कृतिक परिवर्तन और संस्थात्मक नवीनताएँ आ जाती हैं जो इस देश में पश्चिमी देशों प्रमुखतः इंग्लैण्ड के साथ राजनीतिक एवं सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण आयी हैं। 

पश्चिमीकरण की विशेषताएँ (लक्षण)

श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की इन विशेषताओं का उल्लेख किया है:

1. नैतिक रूप से तटस्थ-पश्चिमीकरण नैतिक रूप से तटस्थ अवधारणा है, अर्थात् यह धारणा यह नहीं बताती कि पश्चिम के प्रभाव के कारण भारत में होने वाले परिवर्तन अच्छे हैं या बुरे। यह तो केवल परिवर्तनों को बतलाती है, अच्छाई व बुराई के मूल्यों से यह अवधारणा स्वतन्त्र है।

2. एक व्यापक अवधारणा - पश्चिमीकरण एक व्यापक अवधारणा है जिसमें भौतिक और अभौतिक संस्कृति से सम्बन्धित सभी परिवर्तन आ जाते हैं। इसके अन्तर्गत पश्चिम के प्रभाव के कारण उत्पन्न होने वाले वे सभी परिवर्तन आ जाते हैं जो प्रौद्योगिकी, धर्म, परिवार व जाति, राजनीति, प्रथाओं, आदर्शों, विश्वासों, मूल्यों, फैशन, खान-पान, रहन-सहन, यातायात एवं संचार, कला, साहित्य, शिक्षा, न्याय, प्रशासन एवं अन्य संस्थाओं में घटित हुए हैं। 

बी.कुप्पूस्वामी कहते हैं कि श्रीनिवास द्वारा काम में ली गयी पश्चिमीकरण की अवधारणा में ये बातें सम्मिलित हैं: 
  1. व्यवहार सम्बन्धी पक्ष, जैसे खाना-पीना, वेश-भूषा, नृत्य आदि 
  2. ज्ञान सम्बन्धी पक्ष, जैसे साहित्य, विज्ञान आदि। 
  3. मूल्य सम्बन्धी पक्ष, जैसे मानवतावाद, समतावाद, लौकिकीकरण।
3. एक वैज्ञानिकी अवधारणा-पश्चिमीकरण की अवधारणा चूंकि मूल्य की दृष्टि से एक तटस्थ अवधारणा है, अतः यह वैज्ञानिक अवधारणा है। इसके द्वारा हम किसी भी समाज में घटित होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण कर सकते हैं।

4. अनेक प्रारूप-पश्चिमीकरण के हमें अंग्रेजी, अमरीकी, रूसी और विभिन्न यूरोपीय देशों के प्रारूप या आदर्श देखने को मिलेंगे। सभी प्रारूपों में कुछ तत्व तो समान रूप से पाये जाते हैं। चूंकि अंग्रेजों ने ही भारतीयों को पश्चिमी संस्कृति के विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं भौतिक पक्षों से परिचित कराया, अतः भारत में अंग्रेजी आदर्श ही विद्यमान हैं, यद्यपि वर्तमान में अमरीकी और रूसी प्रारूप भी प्रभावशाली होते जा रहे हैं।

5. जटिल तथा बहुस्तरीय प्रक्रिया-श्रीनिवास कहते हैं कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है जिसका प्रभाव सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, प्रौद्योगिकी एवं अन्य स्तरों पर देखा जा सकता है। एक समाज के विभिन्न पक्षों पर पश्चिमीकरण का प्रभाव भिन्न-भिन्न रहा है। कोई पक्ष अधिक प्रभावित व परिवर्तित हुआ है तो कोई कम। कुछ लोगों ने पश्चिमी खान-पान तथा वस्त्रों को अपनाया है तो कुछ ने पश्चिमी आदर्शों, मूल्यों और विश्वासों को, तो कुछ ने पश्चिमी प्रौद्योगिकी को। समाज के सभी पक्षों पर पश्चिमीकरण का प्रभाव समान रूप से नहीं पड़ा है। भारत में पश्चिमीकरण की गति सर्वत्र ही समान नहीं है। मैसूर में पश्चिमीकरण की दौड़ में ब्राह्मण सबसे आगे रहे हैं।

6. चेतन और अचेतन प्रक्रिया-पश्चिमीकरण का प्रभाव भारतीय समाज पर चेतन और अचेतन दोनों ही प्रकार से पड़ा है। कई पश्चिमी तत्वों को तो हम जान-बूझकर प्रयत्नपूर्वक ग्रहण करते हैं और कई हमें अप्रत्यक्ष तथा अचेतन रूप से प्रभावित करते हैं और वे हमारे व्यवहार तथा दैनिक जीवन के अंग बन जाते हैं।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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