राजकोषीय घाटा किसे कहते हैं ?

राजकोषीय घाटा, बजट घाटे की एक वृहत् संकल्पना है। यह धारणा केन्द्रीय सरकार की ऋणग्रस्तता पर राजकोषीय क्रियाओं के प्रभाव को प्रतिबिंबित करती है। वास्तव में, राजकोषीय घाटा वह समग्र घाटा है जो सरकार की समग्र वित्तीय आय (सम्रग प्राप्तियों नहीं, क्योंकि समग्र प्राप्तियों में सार्वजनिक ऋण को भी सम्मानित किया जाता है जो की आय नहीं है। सरकार के ऊपर आय को वापस करने का दायित्व नहीं रहता जबकि सरकार को ऋण वापस करना होता है) संबंधी व्यवहारों तथा समग्र व्यय-संबंधी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। 

अन्य शब्दों मे, सम्रग आय के ऊपर समग्र व्यय का आधिपत्य ही राजकोषीय घाटा होता है।

राजकोषीय घाटे का वित्तीयन

केन्द्र सरकार के बजट में जो राजकोषीय घाटा होता है, उसके लिए जरूरी वित्त की आपूर्ति सरकार निम्न स्रोतों से कर सकती है-

1. नये ऋणों की प्राप्ति - राजकोषीय घाटे की पूर्ति हेतु सरकार देशी नागरिकों एवं विदेशों से ऋण प्रदान कर सकती है, लेकिन ऐसे लिये गये ऋणों का उपयोग बहुत सोच-समझ कर सिर्फ उत्पादक कार्यों में ही किया जाना चाहिए। अन्यथा भविष्य में मूलधन के साथ-साथ जब ब्याज का भुगतान भी करना पड़ेगा तब सरकार को मुसीबत का सामना करना होगा। इसलिए सरकार द्वारा लिये गये ऋणों का उपयोग सिर्फ विकास की योजनाओं में ही किया जाना चाहिए ताकि उत्पादन में वृद्धि हो एवं भविष्य में मूलधन के साथ-साथ ब्याज का भुगतान सुगमता से किया जा सके।

2. नये-नये नोट छापना - राजकोषीय घाटे की वित्त व्यवस्था हेतु सरकार नये-नये नोट छापकर भी कर सकती है। इसे घाटे की वित्त व्यवस्था अथवा हीनार्थ प्रबंधन कहा जाता है। इसका उपयोग भी बहुत सोच-समझकर सीमित मात्रा मे ही करना चाहिए। अन्यथा अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति की स्थिति पैदा हो जायेगी। मुद्रा स्फीति एक बार अनियंत्रित हो गयी तो कीमतों में लगातार इतनी वृद्धि होगी कि वह अर्थव्यवस्था को बर्बादी के रसातल में धकेल देगी।

राजकोषीय घाटे की उपयोगिता

राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था को दिशा-निर्देश प्रदान करने के रूप में एक उपयोगी उपकरण हो सकता है। इसकी सहायता से अर्थव्यवस्था को निम्न दिशा-निर्देश हो सकते है--
  1. यह बताता है कि अर्थव्यवस्था में पूंजीगत व्यय की राशि में वृद्धि की जानी चाहिए।
  2. राजकोषीय घाटा सरकार को अपने व्ययों की आपूर्ति हेतु अधिक वित्तीय साधन जुटाने की तरफ संकेत देता है।
  3. यह बताता है कि सरकार का व्यय अपेक्षित उपयोगों की तरफ नहीं हो रहा है। अतः सरकार को अपने व्यय संबंधी योजनाओं पर पुनर्विचार कर ब्याज को उत्पादक कार्यों की तरफ मोड़ना चाहिए।

राजकोषीय घाटे के खतरे

  1. राजकोषीय घाटे की पूर्ति हेतु जब सरकार नये-नये नोट छापकर उनका उपयोग करती है तब अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति अर्थात् बढ़ती हुई कीमतों की समस्या पैदा हो सकती है। नियंत्रण के अभाव में यह मुद्रा स्फीति भयंकर रूप धारण कर सकती है।
  2. यदि राजकोषीय घाटे का प्रमुख कारण राजस्व घाटा है तो इसका परिणाम यह होगा कि सरकार की पूंजीगत प्राप्तियों का बड़ा भाग अनुत्पादक गैर-विकास कार्यों में खर्च हो जायेगा। इससे विकास वित्त की कमी महसूस होगी।
  3. यदि सरकार राजकोषीय घाटे की आपूर्ति हेतु बड़ी मात्रा में कर लगाती है तो इसका निजी विनियोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा एवं विकास की गति धीमी हो जायेगी।

Post a Comment

Previous Post Next Post