राजनीतिक दल और दबाव समूह में अन्तर

समाज में विभिन्न प्रकार के हित पाये जाते हैं, जैसे-मजदूर, कृषक, उद्योगपति, शिक्षक व्यवसायी आदि। जब कोई छोटा अथवा बड़ा हित संगठित रूप धारण कर लेता है तब उसे हित-समूह कहा जाता है। इस समूह का उद्देश्य अपने सदस्यों के विविध सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक हितों की रक्षा करना होता है। जब कोई हित-समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार से सहायता चाहने लगता है या अपने सदस्यों के हितों के अनुकूल संशोधन के लिए विधायकों को प्रभावित करने लगता है तब उसे दबाव समूह कहा जाता है। 

हित अथवा दबाव-समूह ऐच्छिक और गैर-राजनीतिक संगठन होते हैं। इनकी सदस्यता का आधार इनके सदस्यों के बीच समान हित की चेतना और समान हित की वृद्धि के लिए प्रयत्न होते हैं। इनका सम्बन्ध किसी राजनीतिक दल से प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता और न ये किसी राजनीतिक दल के अंग होते हैं। परन्तु ये अपने हितों को देखते हुए किसी-न-किसी राजनीतिक दल से अपना सम्बन्ध अवश्य स्थापित कर लेते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों के साथ सबसे घनिष्ठ सम्बन्ध दबाव समूह का होता है। दोनों एक दूसरे पर इतने निर्भर हैं कि अपने उद्देश्यों की पूर्ति में उन्हें एक-दूसरे का सहयोगी होकर काम करना पड़ता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि दोनों एक दूसरे के बिना काम नहीं कर सकते। परिस्थितिवश कभी-कभी दोनों में सहयोग और कभी-कभी विरोध भी देखा जाता है। उद्देश्य सम्बन्धी पहला अन्तर दबाव समूहों और राजनीतिक दलों में पाया जाता है। 

दबाव समूह के उद्देश्य विशिष्ट स्पष्ट और केवल निजी लाभ के लिए होते हैं। दूसरी ओर राजनीतिक दलों के उद्देश्य सामान्य होते हैं जिसका सम्बन्ध सम्पूर्ण समाज से होता है। कार्य-क्षेत्र सम्बन्धी दूसरा अन्तर भी इन दोनों में पाया जाता है। दबाव समूहों का कार्य-क्षेत्र विशिष्ट और समुचित होता है जबकि राजनीतिक दलों का सामान्य और व्यापक। दबाव समूहों का सम्बन्ध मानव जीवन के किसी खास पहलू से ही होता है जबकि दलों का मानव जीवन की सम्पूर्ण गतिविधियों से होता है। राजनीतिक प्रक्रिया के दबाव-समूह स्वयं अंग नहीं होते। लेकिन दल इसी प्रक्रिया के अनुसार अधिकार प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। वे केवल निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। दलों की तरह स्वयं निर्णायक नहीं बनते। संगठन को लेकर भी दबाव-समूह और राजनीतिक दलों में अन्तर है। 

राजनीतिक दल राष्ट्रव्यापी होते हैं। लेकिन बहुत कम दबाव-समूहों का स्वरूप राष्ट्रव्यापी होता है। दूसरी ओर कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दलों से भी अधिक व्यापक-संगठन वाले होते हैं जबकि कुछ राजनीतिक दल क्षेत्रीय अथवा स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहते हैं। आधुनिक राजनीतिक प्रक्रिया में दबाव समूहों का विशेष महत्व है। प्रायः सभी प्रजातांत्रिक देशों में दबाव-समूह पाये जाते हैं। किन्तु एक ऐसा भी समय था जब इन दबाव समूहों को अनैतिक माना जाता था और उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। किन्तु समय ने करवट ली और लोकतंत्र के विकास के साथ-साथ दबाव समूहों के महत्व को भी स्वीकार किया जाने लगा। आज इन्हें लोकतंत्र के लिये न केवल आवश्यक ही माना जाता है बल्कि व्यक्ति के हितों का रक्षक भी समझा जाता है। राज्य को विधायी कार्यों पर दबाव समूहों का प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इन्हें विधानमंडल के पीछे सभा मंडल कहा जाता है। 

दबाव समूहों को लोकतंत्र की अभिव्यक्ति का साधन माना जाता है। लोकतंत्र की सफलता के लिये स्वस्थ जनमत तैयार करना जरूरी है ताकि विशिष्ट नीतियों का समर्थन या विरोध किया जा सके। दबाव समूहों का महत्व शासन के लिए सूचनाएँ एकत्रित करने वाले संगठन के रूप में भी है। हर देश में सरकार तथा प्रशासन के पास आवश्यक सूचनाएँ पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए। दबाव समूह आजकल एक ऐसी संस्था के रूप में परिवर्तित हो चुके हैं जो शासन को एक खास सीमा तक प्रभावित करती हैं। दबाव समूह इतने शक्तिशाली और संगठित हो चुके हैं कि ये अपने स्वार्थ और हित के लिए शासन व्यवस्था पर उपयोगी प्रभाव डाल सकते हैं। 

आधुनिक शासन व्यवस्था में केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ने के कारण सारी शक्तियाँ केन्द्र के हाथों में इकट्ठी होती जा रही हैं किन्तु ये दबाव-समूह अपने प्रभाव और शक्तियों द्वारा केन्द्रीय निरंकुशता को सीमित करते हैं। इस प्रकार केन्द्र शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकता। दबाव समूह अपने प्रभाव और अस्तित्व द्वारा विभिन्न हितों में संतुलन स्थापित करते हुए किसी एक सत्ता को अत्यधिक प्रभावशाली होने से रोकते हैं। व्यापारी, किसान, मजदूर, विद्यार्थी, स्त्रियाँ, जाति और धार्मिक समुदाय सभी अपने-अपने हितों की रक्षा करना चाहते हैं और इस प्रकार इन समूहों की प्रतियोगिता और उपस्थिति से प्रशासन और समाज में संतुलन स्थापित होता है।

राजनीतिक दल और दबाव समूह में अन्तर 

राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों के साथ सबसे घनिष्ठ सम्बन्ध दबाव समूह का होता है। दोनों एक दूसरे पर इतने निर्भर हैं कि अपने उद्देश्यों की पूर्ति में उन्हें एक-दूसरे का सहयोगी होकर काम करना पड़ता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि दोनों एक दूसरे के बिना काम नहीं कर सकते। परिस्थितिवश कभी-कभी दोनों में सहयोग और कभी-कभी विरोध भी देखा जाता है। 

कुछ दबाव समूह एक से अधिक दलों के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करते हैं। अतः समानताओं के बावजूद राजनीतिक दल और दबाव समूह में अन्तर देखे जा सकते हैं। संक्षेप में इन दोनों के बीच निम्नलिखित अन्तर हैः-

1. उद्देश्य सम्बन्धी पहला अन्तर दबाव समूहों और राजनीतिक दलों में पाया जाता है। दबाव समूह के उद्देश्य विशिष्ट स्पष्ट और केवल निजी लाभ के लिए होते हैं। दूसरी ओर राजनीतिक दलों के उद्देश्य सामान्य होते हैं जिसका सम्बन्ध सम्पूर्ण समाज से होता है।

2. कार्य-क्षेत्र सम्बन्धी दूसरा अन्तर भी इन दोनों में पाया जाता है। दबाव समूहों का कार्य-क्षेत्र विशिष्ट और समुचित होता है जबकि राजनीतिक दलों का सामान्य और व्यापक। दबाव समूहों का सम्बन्ध मानव जीवन के किसी खास पहलू से ही होता है जबकि दलों का मानव जीवन की सम्पूर्ण गतिविधियों से होता है।

3. सदस्यता सम्बन्धी तीसरा अन्तर भी इन दोनों के बीच पाया जाता है। एक ही समय में एक व्यक्ति अनेक दबाव समूहों का सदस्य हो सकता है जबकि ऐसी ही स्थिति में एक व्यक्ति अनेक राजनीतिक दलों का सदस्य नहीं हो सकता।

4. राजनीतिक प्रक्रिया के दबाव-समूह स्वयं अंग नहीं होते। लेकिन दल इसी प्रक्रिया के अनुसार अधिकार प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। वे केवल निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। दलों की तरह स्वयं निर्णायक नहीं बनते।

5. चुनावों से सीधा सम्बन्ध राजनीतिक दलों का होता है दबाव-समूहों का नहीं। इस प्रकार दबाव-समूह का कोई अपना निर्वाचन-क्षेत्र नहीं होता। लेकिन राजनीतिक दलों का उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना होता है। अतः चुनावों में वे भाग लेकर अपने प्रत्याशियों को विजयी बनाना चाहते हैं।

6. संगठन को लेकर भी दबाव-समूह और राजनीतिक दलों में अन्तर है। राजनीतिक दल राष्ट्रव्यापी होते हैं। लेकिन बहुत कम दबाव-समूहों का स्वरूप राष्ट्रव्यापी होता है। दूसरी और कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दलों से भी अधिक व्यापक-संगठन वाले होते हैं जबकि कुछ राजनीतिक दल क्षेत्रीय अथवा स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहते हैं।

इन अन्तरों के बावजूद यह निष्कर्ष निकालना गलत है कि दोनों में सम्बन्ध नहीं है। ऐसा माना जाता है कि दबाव-समूहों का रूप अत्यन्त संगठित और उनकी भूमिका समाज में प्रभावकारी होती है तो राजनीतिक दल भी उनके समक्ष छोटे लगते हैं।

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