सहसंबंध का अर्थ, परिभाषा, प्रकार

सहसंबंध क्या है? सहसंबंध के अर्थ को स्पष्ट करते हुए  कटारिया ने लिखा है कि हम प्रायः यह जानना चाहते हैं कि दो पद-श्रेणियों के बीच क्या संबंध है। यह देखा जाता है कि किसी वस्तु की माँग में वृद्धि होने पर उसके मूल्य में भी वृद्धि होती है वर्षा अधिक होने पर उत्पादन अधिक होता है मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने से मूल्यों में भी वृद्धि होती है बच्चों की आयु बढ़ने के साथ-साथ उनकी ऊँचाई भी बढ़ती है और धूप के साथ गर्मी बढ़ती है। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि वस्तु की माँग और उसके मूल्य, वर्षा और उत्पादन, मुद्रा की मात्रा और वस्तु के मूल्य, आयु और ऊँचाई तथा धूप और गर्मी में आपस में कुछ-न-कुछ संबंध अवश्य है क्योंकि एक में कोई भी परिवर्तन होने पर उसका प्रभाव दूसरे पर पड़ता है इसीलिये यह कहा जा सकता है कि कभी-कभी तथ्यों की दो श्रेणियों में परस्पर अंतःनिर्भरता रहती है। एक श्रेणी के परिवर्तन का प्रभाव दूसरे पर भी पड़ता है। 

अतः जब दो पद-श्रेणियाँ परस्पर इस प्रकार संबंधित हों कि एक पद-श्रेणी में होने वाले परिवर्तनों की सहानुभूति में दूसरी श्रेणी में भी परिवर्तन हो जाये अर्थात् एक में वृद्धि या कमी होने पर दूसरी में भी उसी दिशा में या विपरीत दिशा में परिवर्तन हो जाए और साथ ही उनमें कार्य-कारण संबंध हो तो वे सहसंबंधी कहलाएगी।

इस परिभाषा से यह स्पष्ट हो जाता है कि दो पद-श्रेणियों में संबंध होने के लिए उनमें परस्पर परिवर्तन ही पर्याप्त नहीं है बल्कि यह परिवर्तन एक-दूसरे के कारण होना आवश्यक है। यदि ऐसा न हो तो चलों अथवा श्रेणियों के परिवर्तन संबंधित प्रतीत होते हुए भी उनमें सहसंबंध नहीं होगा। 

अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि, यदि एक चल के मूल्य में परिवर्तन होने से दूसरे चल के मूल्य में भी परिवर्तन हो तो कहा जा सकेगा कि दोनों में सहसंबंध है। उदाहरण के लिए, यदि घासलेट के भावों में वृद्धि होने से पेट्रोल के भावों में भी वृद्धि हो जाये तो कार्य-कारण संबंध होने से ये दोनों सहसंबंधित कहलायेंगे। किन्तु यदि घासलेट के भावों में वृद्धि होने के साथ-साथ चावल के मूल्यों में भी वृद्धि हो जाये तो यहाँ कार्य-कारण संबंध के अभाव में ये दोनों सहसंबंधित नहीं कहलायेंगे क्योंकि दोनों के मूल्य-वृद्धि के कारण अलग-अलग हैं।

सहसंबंध की परिभाषा

प्रोफेसर किंग के अनुसार, दो पद-मालाओं अथवा समूहों के बीच पाए जाने वाले कार्य-कारण संबंध को सहसंबंध कहते हैं। इन्होंने एक अन्य स्थान पर सहसंबंध को दूसरे ढंग से परिभाषित किया है और लिखा है कि, यदि यह सच प्रमाणित हो कि अधिकांश क्षेत्रों में दो चल सदैव एक ही दिशा में या विपरीत दिशा में घटते-बढ़ते हैं तो हम यह मानते हैं कि तथ्य निर्धारित हो गया और उनमें संबंध विद्यमान है। इस संबंध को ही सहसंबंध कहते हैं।

श्री काॅनर ने लिखा है कि, जब दो या अधिक परिमाण सहानुभूति में परिवर्तित होते हैं ताकि एक के परिवर्तन के परिणामस्वरूप दूसरे में भी परिवर्तन होता है तो वे सहसंबंधित कहलाते हैं।

सहसंबंध के प्रकार

सहसंबंध के प्रकारों का उल्लेख हम इन दो तरह से कर सकते हैं

1. धनात्मक और ऋणात्मक सहसंबंध - प्रोफेसर कटारिया के अनुसार, जब दो चलों या पद-श्रेणियों का परिवर्तन एक ही दिशा में होता है तो वह प्रत्यक्ष या धनात्मक सहसंबंध होता है। उदाहरण के लिए, यदि वस्तु के मूल्य में वृद्धि के साथ-साथ उस वस्तु की पूर्ति में भी वृद्धि होती है तो उसके बीच के संबंध को धनात्मक सहसंबंध कहते हैं। 

इसी बात को दूसरे शब्दों में समझाते हुए प्रोफेसर एलहान्स ने लिखा है कि जब दो चलों के मूल्य एक ही दिशा में घटते-बढ़ते हैं, जैसे किसी चल के मूल्य में वृद्धि का संबंध दूसरे चल के मूल्य में वृद्धि से हो तो और किसी चल के मूल्य ह्रास का संबंध दूसरे चल के मूल्य में कमी से स्थापित हो तो सहसंबंध धनात्मक कहा जायेगा। इसके विपरीत यदि दो चलों के मूल्य विपरीत दिशाओं में घटते-बढ़ते हैं, जैसे किसी चल के मूल्य में वृद्धि का संबंध दूसरे चल के मूल्य में कमी से हो और उसी प्रकार किसी चल के मूल्य में कमी का संबंध दूसरे चल के मूल्य में वृद्धि से स्थापित होता है तो सहसंबंध ऋणात्मक होता है। 

दूसरे शब्दों में, यदि दो पद-श्रेणियों के परिवर्तन एक ही दिशा में न होकर दो विपरीत दिशाओं में होते हैं तो उनका सहसंबंध अप्रत्यक्ष या ऋणात्मक कहलाता है।

2. रेखीय और अरेखीय सहसंबंध - प्रोफेसर एलहान्स ने इनके अर्थ को समझाते हुए लिखा है कि, जब दो चलों के मूल्यों में विचरण स्थिर अनुपात में होता है, तो उसे रेखीय सहसंबंध कहा जाता है।

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