हिंदू सामाजिक जीवन में धर्म के महत्व की विवेचना

हिन्दू धर्म अगणित रूपों में हिन्दुओं के सामाजिक जीवन को अनुप्राणित करता रहा है। वह जन्म से लेकर मृत्यु तक सामान्यतः प्रत्येक हिन्दू के जीवन को अनेक धार्मिक विश्वासों, विधि- संस्कारों, आराधना विधियों और कर्तव्य पालन में दृढ़ आस्था आदि रूपों में प्रभावित करता रहा है। 

हिंदू सामाजिक जीवन में धर्म का महत्व

सामाजिक जीवन में इन रूपों में हिन्दू धर्म का प्रभाव परिलक्षित होता है। 

1. धर्म ने व्यक्तित्व के निर्माण में सदैव सहायता पहुँचायी है-बालक के समाजीकरण में परिवार का विशेष महत्व है और परिवार सदैव से ही धार्मिक क्रियाओं का मुख्य केन्द्र रहा है। परिवार में धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन, धार्मिक कथाओं से बालकों को परिचित कराना, सदस्यों में परस्पर कर्तव्य भावना तथा पारिवारिक प्रेम और त्यागपूर्ण पर्यावरण, बालक में समाज के नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करने में, उसमें सद्गुणों का विकास करने तथा उसके चरित्र निर्माण में निश्चित रूप में सहायक रहे हैं। 

2. धर्म सामाजिक नियन्त्रण का भी महत्त्वपूर्ण साधन रहा है- धर्म में पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक के विचार निहित हैं जिनसे डरकर ही व्यक्ति समाज विरोधी कार्य नहीं करता है तथा नियमित व नियन्त्रिात जीवन व्यतीत करता है। 

3. अलग-अलग परिस्थितियों में प्रस्थिति के अनुरूप व्यक्ति के निश्चित स्वधर्म रहे हैं - और अपने स्वधर्म का पालन करना उसका नैतिक कर्तव्य रहा है। पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, कर्म और पुनर्जन्म की धारणा ने व्यक्ति को अपनी प्रस्थिति से सन्तुष्ट रहने और उचित रीति से अपनी भूमिका निभाने को प्रोत्साहित किया है। 

4. हिन्दू धर्म ने व्यक्ति को अनेक मानसिक संघर्षों से बचाने में योग दिया है- व्यक्ति को यहां कर्म करने का आदेश दिया गया है, परन्तु फल के प्रति तटस्थ रहने को कहा गया है। परिणाम यह हुआ है कि हिन्दू समाज के लोग बहुत कुछ सीमा तक मानसिक संघर्षों से बचे रहे हैं। 

5. भारतीय संस्कृति की निरन्तरता को बनाये रखने में हिन्दू धर्म ने विशेष योग दिया है- इतिहास बतलाता है कि अनेक संस्कृतियाँ काल का ग्रास बन गयीं, विकसित हुईं और मिट गईं, परन्तु भारतीय संस्कृति का अस्तित्व आज भी बना हुआ है। इसका मुख्य कारण हिन्दू धर्म का व्यावहारिक स्वरूप है। 

6. व्यक्ति में सद्गुणों का विकास करने की दृष्टि से धर्म ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है- यदि व्यक्ति हिन्दू धर्म में बताये गये कर्तव्यों एवं निर्देशों का पालन करें तो वह एक सच्चरित्र व्यक्ति एवं समाजोपयोगी प्राणी बन सकता है। 

7. हिन्दू धर्म सामाजिक एकता का पोषक है- इसने सभी लोगों को अपने-अपने निर्धारित कर्तव्यों को निभाने तथा सभी प्राणियों के हित एवं कल्याण की बात कही है। हिन्दू धर्म में बन्ध्ुत्व, प्रेम, सहयोग और संगठन पर विशेष जोर दिया गया है। 

8. मनोरंजन प्रदान करने की दृष्टि से भी धर्म ने समाज की महत्त्वपूर्ण सेवा की है- धर्म के अन्तर्गत समय-समय पर सम्पन्न किये जाने वाले उत्सवों, त्यौहारों एवं कर्मकाण्डों ने मानव को यन्त्रावत व उदासीनता-युक्त जीवन से मुक्ति दिलाकर आनन्द एवं मनोरंजन के अवसर प्रदान किये हैं।

Bandey

मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता (MSW Passout 2014 MGCGVV University) चित्रकूट, भारत से ब्लॉगर हूं।

Post a Comment

Previous Post Next Post