समास किसे कहते हैं समास के भेद कितने होते हैं ?

समास का अर्थ है - संक्षिप्तीकरण। जब दो शब्दों को मिलाते हैं तो दोनों के बीच का सम्बन्ध सूचक शब्द लुप्त हो जाता है। इस प्रकार अनेक शब्दों के लिए एक समस्त पद बना लिया जाता है, इसे ही समास कहते है। कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ प्रकट करना समास का प्रमुख लक्ष्य है। उदाहरणतः दिन और रात व दिन-रात इसमें योजक या कारक चिह्न का लोप हो जाता है।

दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को समास कहते हैं। अधिक शब्दों के योग से शब्द निर्माण की रीति को समास रीति कहते हैं, समास द्वारा शब्द रचना होती है। परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर बनने वाले एक स्वतन्= सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसेः राजा और कुमार से मिलकर राजकुमार, राजा और पुरुष से मिलकर राजपुरूष। संज्ञा के साथ संज्ञा का, संज्ञा के साथ विशेषण का, विशेषण के साथ विशेषय का तथा अव्यय के साथ संज्ञा का परस्पर मेल होने से समास बनता है। 

समास की विशेषता यह है कि जिस शब्द समूह का संक्षिप्त रूप होता है, उसके अर्थ में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है।

समास करते समय परस्पर मेल होने वाले शब्दों के बीच की विभक्तियों या योजक शब्दों का लोप होकर जो शब्द बनते हैं, उन्हें ‘समस्त पद’ या सामाजिक शब्द कहते हैं। जैसे-

राम और लक्ष्मण = राम-लक्ष्मण
चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके = चक्रपाणि

यहाँ ‘राम-लक्ष्मण’ तथा ‘चक्रपाणि’ समस्त पद या समासिक शब्द है। समास के सम्बन्ध में इन बातें याद रखने वाली हैंः

1- हिन्दी में समास प्रायः दो शब्दों से ही बनते हैं जबकि संस्कृत में अनेक शब्दों से बनते हैं। हिन्दी मे ‘सुत-वित-नारी-भवन-परिवारा’ ही सबसे लम्बा समास है। इसके अतिरिक्त तन-मन-धन, जन-मन-गण, धूप-दीप-नैवैध आदि बहुत थोड़े शब्द हैं, जो दो से अधिक शब्दों के मेल से बने हैं।

2- सामासिक शब्द बनते समय परस्पर मिलने वाले दोनों शब्दों की विभक्तियों या योजक शब्दों का लोप हो जाता है। जैसे राम और कृष्ण का समास राम-कृष्ण होने पर ‘और’ योजक शब्द का लोप हो गया है। 

3- समास कुछ अपवादों को छोड़कर प्रायः दो सजातीय शब्दों में ही होता है। जैसे रसोई-घर का रसोईशाला नहीं बनेगा अथवा पाठशाला का पाठ घर शब्द नहीं बनेगा। रेल-गाड़ी, जिला-धीश, धन-दौलत, मनमौजी, दुःख-सुख आदि इनके अपवाद हैं। 

4- हिन्दी में मुख्यतः तीन ही प्रकार के शब्दों के सामासिक शब्द प्रयोग में आते हैं। जैसेः संस्कृत शब्द - यथा-शक्ति, मनसिज, पुरुषोत्तम, युधिष्ठिर आदि। हिन्दी शब्द - भरपेट, अनबन, नीलकमल, बैलगाड़ी। अंग्रेजी शब्द - रेलवे स्टेशन, बुकिंग आफिस, टिकट-चैकर, टाइम टेबल।

समास के भेद 

समास के भेद उसके पदों की प्रधानता-अप्रधानता के आधार पर किये जाते हैं। अर्थात समास में कभी पहला पद प्रधान होता है तो कभी दूसरा और कभीं-कभी दोनों ही पद प्रधान होते हैं अथवा कोई भी पद प्रधान नहीं होता है जैसे रमेश गांधी-भक्त है। यहां गांधी-भक्त में भक्त प्रधान है क्योंकि रमेश भक्त है गांधी नहीं।

समास के परम्परागत छः भेद हैं-
  1. द्वन्द्व समास
  2. कर्मधारय समास
  3. द्विगु समास
  4. बहुब्रीहि समास
  5. अव्ययी भाव समास
  6. तत्पुरूष समास
उपरोक्त समासों का विस्तृत वर्णन है-

1. द्वन्द्व समासः इसमें समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। जोड़ते समय और, तथा, एवं, का लोप हो जाता है। जिस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों ही प्रधान हों अर्थात अर्थ की दृष्टि से दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व हो और उनके मध्य संयोजक शब्द का लोप हो तो द्वन्द्व समास कहलाता है। 

जैसेः 
माता-पिता व माता और पिता, 
राम-कृष्ण = राम और कृष्ण, 
भाई-बहन = भाई और बहन, 
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य।

2. कर्मधारय समासः जब समास में दूसरा पद प्रधान हो और दोनों में विशेषण.विशेष्य का या उपमान-उपमेय का संबंध हो, तो वह कर्मधारय समास कहलाता है। 

जैसेः 
महापुरूष = जो पुरुष महान है, 
नीलागगन = गगन, जो नीला है, 
परमानन्द = आनन्द, जो परम है, 
मुख कमल = कमल के समान मुख, 
वचनामृत = वचन रूपी अमृत।

3. द्विगु समासः जब समास में पहला पद संख्यावाचक हो और दूसरा प्रधान हो, तो यह द्विगु समास कहलाता है। 

जैसेः 
नवरात्रों = नौ रातों का समाहार (समूह), 
चौराहा = चार राहों का समाहार, 
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समूह।

4. बहुब्रीहि समासः जब समास में दोनों पद प्रधान हों परन्तु समस्त पद का अर्थ विशेष हो, तो उसे बहुब्रीहि समास कहते है। 

जैसेः 
दशानन = जिसके (रावण) आनन (मुख) दस है, 
त्रिलोकी = तीनों लोकों का स्वामी (विष्णु), 
चतुर्भुज = जिसकी (विष्णु) चार हैं भुजाएं, 
पीताम्बर = जिसका (कृष्ण) अम्बर पीला है।

5. अव्ययीभाव समासः जब समास में पहला पद प्रधान हो और समस्त पद अव्यय (अविकारी), उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। यह वाक्य में क्रिया विशेष का कार्य करता है। 

जैसेः 
प्रतिवर्ष = हरवर्ष, प्रत्येक = हर एक, 
प्रतिक्षण = हर क्षण, 
आजीवन = जीवन तक, 
आमरण = मरण तक, 
यथा शक्ति = शक्ति के अनुसार, 
रातों रात = रात ही रात में।

6. तत्पुरूष समासः जिस समास में पूर्वपद गौण तथा उत्तरपद प्रधान हो, तत्पुरुष कहलाता है। दोनों पदों के बीच परासर्ग का लोप रहता है। परासर्ग लोप के आधार पर तत्पुरुष समास के छः भेद हैंः

(क) कर्म तत्पुरूष (‘को’ का लोप)ः जैसेः मतदाता = मत को देने वाला, गिरहकट = गिरह को काटने वाला, कमलनयन = कमल के समान नयन ।

(ख) करण तत्पुरूषः जहाँ करण-कारण चिन्ह का लोप हो, जैसेः जन्मजात = जन्म से उत्पन्न, मुंहमांगा = मुंह से मांगा, गुणहीन = गुणों से हीन।

(ग) सम्प्रदान तत्पुरुषः जहाँ सम्प्रदान कारक चिन्ह का लोप हो, जैसेः हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी, सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह, युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि। 

(घ) अपादान तत्पुरुषः जहाँ अपादान कारक चिन्ह का लोप हो, जैसेः धनहीन = धन से हीन, भयभीत = भय से भीत, जन्मान्ध = जन्म से अंधा।

(ड़) सम्बन्ध तत्पुरुषः जहाँ सम्बन्ध कारक चिन्ह का लोप, जैसेः प्रेमसागर = प्रेम का सागर, दिनचर्या = दिन को चर्या, भारतरत्न = भारत का रत्न।

(च) अधिकरण तत्पुरुषः जहाँ अधिकरण कारक चिन्ह का लोप हो, जैसेः नीतिनिपुण = नीति में निपुण, आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास, घुड़सवार = घोड़े पर सवार।

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