शैक्षिक अनुसंधान किसे कहते हैं इसका वर्गीकरण ?

शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक अनुसंधान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा की प्रमुख समस्या है कि उसकी प्रक्रिया को सुदृढ़ प्रभावशाली एवं सशक्त कैसे बनाया जाए। इस समस्या के समाधान हेतु अनुसंधान की आवश्यकता है। मौलिक अनुसंधानों से ज्ञान क्षेत्र में वृद्धि की जाती है। प्रयोगात्मक शोधकार्यों से नवीन सिद्धांतों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। 

शैक्षिक अनुसंधान का वर्गीकरण

शैक्षिक अनुसंधान के उद्देश्यों से यह स्पष्ट है कि शैक्षिक अनुसंधानों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है। प्रमुख वर्गीकरण के मानदण्ड अधोलिखित हैं-

शोध-कार्यों के योगदान की दृष्टि से शैक्षिक-अनुसंधानों को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-

1. मौलिक अनुसंधान - इन शोध-कार्यों द्वारा नवीन ज्ञान की वृद्धि की जाती है-नवीन सिद्धांतों का प्रतिपादन, नवीन तथ्यों की खोज, नवीन सत्यों का प्रतिस्थापन होता है। 

मौलिक अनुसंधानों से ज्ञान-क्षेत्र में वृद्धि की जाती है। इन्हें उद्देश्यों की दृष्टि से तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है- 
  1. प्रयोगात्मक शोध कार्यों से नवीन सिद्धांतों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। सर्वेक्षण-शोध भी इसी प्रकार का योगदान करते हैं। 
  2. ऐतिहासिक शोध कार्यों से नवीन तथ्यों की खोज की जाती है, जिनमें अतीत का अध्ययन किया जाता है और उनके आधार पर वर्तमान को समझने का प्रयास किया जाता है। 
  3. दार्शनिक शोध कार्यों से नवीन सत्यों एवं मूल्यों का प्रतिस्थापन किया जाता है। शिक्षा का सैद्धान्तिक दार्शनिक-अनुसंधानों से विकसित किया जा सकता है। 
2. क्रियात्मक अनुसंधान - इस प्रकार के शोध-कार्यों से स्थानीय समस्याओं का अध्ययन किया जाता है, जिससे शिक्षण की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है, इनसे ज्ञान-वृद्धि नहीं की जाती है। इन्हें प्रयोगात्मक आयाम अनुसंधान भी कहते हैं।

क्रियात्मक अनुसंधान की संकल्पना का जन्म स्टीफन एम. कोरे के विचारों में हुआ। विद्यालयों के समक्ष उस समय अनेक समस्याएँ थीं जिनके समाधान उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। उस समय स्टीफन एम. कोरे की पुस्तक ‘एक्शन रिसर्च टू इम्प्रूव स्कूल प्रैक्टिस’ ने इन समस्याओं के समाधान की दिशाएँ सुझाई थीं। यही सुझाव क्रियात्मक अनुसंधान कहलाया। 

क्रियात्मक अनुसंधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी क्षेत्र के कार्यकर्ता अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करके, उसका मूल्यांकन करते हैं।

शोध-आयाम की दृष्टि से शोध-कार्यों में तथ्यों का अध्ययन करने के लिए दो आयामों का प्रयोग किया जाता है-अनुदैघ्र्य-आयाम तथा कटाव-आयाम। 

1. अनुदैर्घ्य आयाम - यह शब्द वनस्पति विज्ञान से लिया गया है। जब किसी पौधे का अध्ययन बीज बोने से लेकर फल आने तक किया जाता है तब उसे अनुदैघ्र्य-आयाम कहा जाता है। इसे आयाम भी कहा जाता है क्योंकि अध्ययन में समय प्रमुख घटक होता है ऐतिहासिक, इकाई तथा उत्पत्ति संबंधी अनुसंधान विधियों में इसी आयाम का प्रयोग किया जाता है। 

2. अनुप्रस्थ-आयाम - यह शब्द भी वनस्पति विज्ञान का है। जब किसी पौधे के तने, पत्ती या जड़ तथा अन्य किसी अंग के स्वरूप का अध्ययन करना होता है तब उस पौधे के उस अंग का कटाव करके अध्ययन कर लिये जाते हैं, तब उसे अनुप्रस्थ-आयाम की संज्ञा दी जाती है। इसमें समय का महत्व नहीं होता है। प्रयोगात्मक तथा सर्वेक्षण विधियों में इस आयाम का प्रयोग किया जाता है। 

उदाहरण ‘अध्यापक-शिक्षा के आविर्भाव के कारणों’ का अध्ययन अनुदैर्घ्य-आयाम से किया जायेगा। अध्यापक-शिक्षा के नवीन प्रवत्र्तनों का अध्ययन अनुप्रस्थ-आयाम से किया जायेगा।

शोध-निष्कर्षों की शुद्धता की दृष्टि से अनुसंधान के निष्कर्षों को शुद्धता की दृष्टि से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
  1. प्रयोगात्मक-अनुसंधान के निष्कर्षों की शुद्धता अधिक होती है क्योंकि इसमें नियंत्रण, शुद्ध मापन तथा निरीक्षण विशेषताओं को ध्यान में रखा जाता है। 
  2. अप्रयोगात्मक अनुसंधान के निष्कर्षों की शुद्धता कम होती है, क्योंकि मापन अधिकांश शुद्ध नहीं होता, निरीक्षण तथा नियंत्रण भी संभव नहीं होता है।

शिक्षा अनुसंधान के कार्य

शैक्षिक अनुसंधान के अधोलिखित प्रमुख कार्य होते हैं- 
  1. शैक्षिक अनुसंधान का प्रमुख कार्य शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास करना है। यह कार्य ज्ञान के प्रसार से किया जाता है। 
  2. शिक्षा की प्रक्रिया के विकास के लिए आन्तरिक प्रयास नवीन ज्ञान में वृद्धि करना तथा वर्तमान ज्ञान में सुधार करना है।
अनुसंधान किस उद्देश्य को लेकर किया जाता है तथा किस प्रकार किया जाता है, इस दृष्टिकोण से उनमें परस्पर अन्तर पाए जाते हैं। सभी अनुसंधानों के उद्देश्य समान नहीं होते और न उनकी प्रक्रिया ही एक सी होती है।

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