सूरदास का जीवन परिचय, सूरदास की रचनाओं का संक्षिप्त परिचय

सूरदास के जन्म काल, मृत्यु काल आदि के विषय में विभिन्न मत प्रकट किये जाते हैं। उन सब का परीक्षण करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि उनका जन्म 1535 ई0 में हुआ था । एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म-स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। वे मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे और श्रीनाथ जी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे।

सन् 1583 में पारसौली में उनका निधन हुआ। उनके तीन ग्रंथों  सूरसागरसाहित्य लहरी और सूर सारावली में सूरसागर ही सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। खेती और पशुपालन वाले भारतीय समाज का दैनिक अंतरंग चित्रा और मनुष्य की स्वाभाविक वृत्तियों का चित्राण सूर की कविता में मिलता है।

सूर ‘वात्सल्य’ और ‘श्रृंगार’ के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। कृष्ण और गोपियों का प्रेम सहज मानवीय प्रेम की प्रतिष्ठा करता है। सूर ने मानव प्रेम की गौरवगाथा के माध्यम से सामान्य मनुष्यों को हीनता बोध से मुक्त किया, उनमें जीने की ललक पैदा की। उनकी कविता में ब्रजभाषा का निखरा हुआ रूप है। वह चली आ रही लोकगीतों की परंपरा की ही श्रेष्ठ कड़ी है। सूरदास 1 क्षितिज 4 यहाँ सूरसागर के भ्रमरगीत से चार पद लिए गए हैं।

कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उनके जरिए गोपियों के पास संदेश भेजा था। उनकेने निर्गुण ब्रह्म एवं योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया। गोपियाँ ज्ञान मार्ग की बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थीं। इस कारण उन्हें उनकेका शुष्क संदेश पसंद नहीं आया। तभी वहाँ एक भौंरा आ पहुँचा। यहीं से भ्रमणगीत का प्रारंभ होता है। गोपियों ने भ्रमण के बहाने उनके पर व्यंग्य बाण छोड़े।

पहले पद में गोपियों की यह शिकायत वाकिब लगती है कि यदि उनसे कभी स्नेह के धागे से बँधे होते तो वे विरह की वेदना को अनुभूत अवश्य कर पाते। दूसरे पद में गोपियों की यह स्वीकारोक्ति कि उनके मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गयी कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहराई को अभिव्यक्त करती है।  

सूरदास की प्रमुख रचनाएँ

सूरदास के अध्ययन की प्राप्त आधारभूत सामग्री के विवरण तथा सूर के नाम से छपे ग्रंथों के अवलोकन से सूरदासकृत कहे जाने वाले निम्नलिखित ग्रंथों के नाम ज्ञात होते हैं-
1. सूरसागर (प्रकाशित) ।
2. भागवत प्रकाश (अप्रकाशित) ।
3. दशम स्कंध भाषा (अप्रकाशित) ।
4. सूरदास के पद (अप्रकाशित) ।
5. नागलीला (अप्रकाशित) ।
6.गोवर्धन लीला (अप्रकाशित) ।
7. सूरपचीसी (प्रकाशित) ।
8. प्राणप्यारी (अप्रकाशित) ।
9. ब्याहलो (अप्रकाशित) ।
10. भँवर गीत (प्रकाशित) ।
11. सूर रामायण (प्रकाशित) ।
12. दानलीला (अप्रकाशित) ।
13. मानलीला (अप्रकाशित) ।
14. सूरसाठी (प्रकाशित) ।
15. राधा-रस- केलि - कौतूहल ( प्रकाशित) ।
16. सूरसागर सार (अप्रकाशित) ।
17. सूरसारावली ( प्रकाशित) ।
18. साहित्य लहरी (प्रकाशित) ।
19. सूरशतक (अप्रकाशित) ।
20. नलदमयंती (अप्रकाशित) ।
21. हरिवंश टीका (अप्रकाशित) ।
22. रामजन्म (अप्रकाशित) ।
23. एकादशी महात्म्य (अप्रकाशित) ।
24. सेवाफल ( अप्रकाशित) ।

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