तुलसीदास जी का जीवन परिचय, रचनाएँ

तुलसीदास की जन्मतिथि को लेकर विद्वानों मे काफी मतभेद है । सर्वप्रथम वेणीमाधव दास ने अपनी रचना 'मूल गोसाई चरित' मे तुलसीदास का जन्म सं0 1554 बतलाया।" शिव सिंह सेंगर ने तुलसीदास का जन्म सं0 1589 बताया है । जार्ज ग्रियर्सन तुलसीदास की जन्मतिथि 1532 ई0 मानते हैं, जिसका प्रसिद्ध रामायणी रामगुलाम द्विवेदी ने भी समर्थन किया है। रामचन्द्र शुक्ल 4, चन्द्रबलि पाण्डेय, राजपति दीक्षित, आदि सभी विद्वानों ने तुलसीदास की जन्मतिथि 1532 ई० माना है। माता प्रसाद गुप्त ने तुलसी साहब द्वारा रचित 'घट रामायन मे तुलसीदास की दी हुई जन्मतिथि सं0 1589 का समर्थन किया है। 

तुलसीदास के जन्म स्थान के सम्बन्ध मे भी प्रमाणिक साक्ष्य अनुपलब्ध है । इनके जन्म स्थान को लेकर विद्वानों मे काफी मतभेद है। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान बाँदा जिले के राजापुर तथा कुछ विद्वान एटा जिले के सोरो नामक स्थान को मानते है । पर वास्तव मे तुलसीदास का जन्म राजापुर में हुआ था, या सोरो में इस विषय पर मतभेद अभी तक बना हुआ है।

रामचन्द्र शुक्ल, श्यामसुन्दर दास, जार्ज ग्रियर्सन", रामबहोरी शुक्ल, माता प्रसाद गुप्त”, राजपति दीक्षित, आदि विद्वान राजापुर को तुलसीदास का जन्म स्थान मानते हैं। रामनरेश त्रिपाठी, गौरीशंकर द्विवेदी, रामदत्त भारद्वाज .26 आदि विद्वानों ने तुलसीदास का जन्म स्थान सोरो सिद्ध करने का प्रयास किया है । चन्द्रबलि पाण्डेय तुलसीदास का जन्म स्थान अवध मानते है, जिसका प्रमाण उन्होनें अवध प्रान्त में स्थित तुलसीचौरा दिया है और उसी को तुलसी का जन्म स्थान मानते है । 

गोस्वामी जी के दो नामों का उल्लेख उनके ग्रन्थों मे मिलता है- तुलसी अथवा तुलसीदास और राम बोला। अधिकांश विद्वानों का मत है कि गोस्वामी जी का बाल्यकाल का नाम राम बोला था और आगे चलकर गुरू द्वारा दीक्षित होने पर वे तुलसीदास हो गये । परन्तु यदि अंतः साक्ष्यों पर प्रकाश डाला जाए तो वस्तुस्थिति इसके विपरीत जान पड़ती है । गोस्वामी जी का प्रारम्भिक नाम तुलसी ही था । सम्प्रदाय मे दीक्षित हो जाने पर वे तुलसीदास हो गये थे और रामभक्ति मे मग्न हो जाने पर नाम के निरन्तर स्मरण, गुनन, मनन और भजन के फलस्वरूप अनायास लग जाने वाली रामरट के कारण उन्हें रामबोला की सार्थक संज्ञा प्राप्त हुई। 

तुलसीदास स्वयं अपनी रचनाओं मे अपना नाम तुलसी कहते है। 'राम के गुलाम' तुलसीदास रामबोला कैसे हुए स्वयं उनकी रचनाओं से परिलक्षित होता है। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि गोस्वामी जी का नाम रामबोला बाल्यकालीन न होकर उस समय पड़ा होगा जब वे भक्ति की परमोच्चता को प्राप्त कर अपने जीवन को मनसा-वाचा-कर्मणा राममय कर चुके थे ।

तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दूबे व माता का नाम हुलसी माना गया है। इनका विवाह यमुनापार स्थित तारपिता गाँव के एक भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण की बेटी रत्नावली से हुआ था । किवदन्ती है कि एक दिन उनकी पत्नी मायके चली गयी। तुलसी पत्नी का वियोग सहन न कर सके। उन्होंने अंधेरी रात मे साँप को रस्सी समझकर उसके सहारे नदी पार करके अपने ससुराल पहुँच गये। 

तुलसीदास की मृत्यु के सम्बन्ध मे कोई समकालीन अथवा ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नही है । घट रामायण मे उनकी मृत्यु के सम्बन्ध में एक दोहा मिलता है -

संवत् सोरह से असी, असी गंग के तीर ।
सावन सुक्ला सप्तमी, तुलसी तजेउ सरीर । ।

इसके अनुसार उनकी मृत्यु सं0 1680 में असी गंगा के संगम पर श्रावण - शुक्ला सप्तमी के दिन हुआ था । 

तुलसीदास की रचनाएँ

1. रामलला नहछू 2. वैराग्य संदीपनी, 3. बरवै रामायण, 4. पार्वती मंगल, 5. जानकी मंगल, 6. रामाज्ञा प्रश्न, 7. दोहावली, 8. कवितावली, 9. गीतावली, 10. श्रीकृष्ण गीतावली, 11. विनय पत्रिका, 12. रामचरित मानस वहीं वहीं जार्ज ग्रियर्सन ने इण्डियन ऐण्टीक्वेरी मे प्रकाशित अपने लेख 'नोट्स आन तुलसीदास' मे कुल 21 ग्रन्थों का उल्लेख किया है।" 

हिन्दी साहित्य के अनेक विद्वानों ने तुलसीदास की हनुमानबाहुक सहित 13 रचनाओं को प्रमाणिक माना है जो इस प्रकार है : कवितावली, दोहावली, गीतावली, श्रीकृष्ण गीतावली, विनयपत्रिका और रामचरितमानस, रामलला नहछु, वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, हनुमानबाहुक। 

1. रामलला नहछु : रामलला नहछु मे पैर के नखों के काटे जाने के संस्कार का उल्लेख है । यह सोहर मे बीस तुकों की एक छोटी सी रचना है । यह छन्द पुत्र जन्म, विवाह आदि सभी शुभोत्सवों पर गाया जाता है। इसमे वर्णित लोकाचार, विवाह सम्बन्धी तैयारी और राम के लिए प्रयुक्त शब्दों के प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि यह नहछु राम के विवाह के समय हुआ होगा। लेकिन रामचरित मानस से विदित होता है कि सीता स्वयंवर से पहले राम का नहछु संस्कार नहीं हुआ था क्योंकि राम के सीता स्वयंवर एवं विवाह से पहले अयोध्या लौटने का कोई प्रसंग प्राप्त नही होता है अतएव यह नहछु राम के उपनयन संस्कार के समय हुआ होगा।

2. रामाज्ञा प्रश्न : इसमे दिन (वार) के दृष्टिकोण से प्रमुख - प्रमुख देवताओं की स्तुति पूजा की बात कही गयी है । शकुन विचार को संकेतात्मक रूप मे किया गया है। इसी बहाने रामचरित्र का वर्णन किया है। इसमे सात सर्ग है और प्रत्येक सर्ग मे सात-सात दोहे के सात सप्तक है। इसके बहुत से दोहे गोस्वामी जी के अन्य ग्रन्थों से लिए गए है। सातवें सर्ग के अंतिम सप्तम मे शकुन विचारने की विधि दी गयी है। किवदंती है कि तुलसीदास ने यह रचना अपने परिचित गंगाराम ज्योतिषी के लिए की थी।

3. जानकी मंगल : इसमे सोहर के 192 तुक तथा 24 छंद है और प्रति आठ सोहर पर एक छंद है। इसमे सीता - राम विवाह का वर्णन है । यह पार्वती मंगल के समय का ही लिखित ग्रन्थ है और भाषा, छंद आदि सभी में उससे मिलता-जुलता है । मानस की कथा से इसमे कुछ भेद किया गया है। इस खण्ड काव्य मे सीता जी के स्वयंवर से लेकर अयोध्या गमन तक की कथा का वर्णन है। जानकी मंगल में विशेष रूप से तुलसी की लेखनी ने राम और सीता की रूप माधुर्य का वर्णन किया है। 

4. पार्वती मंगल : इस रचना मे शिव-पार्वती का विवाह वर्णित है। इसमे सोहर के 148 तुक तथा 16 छंद दिए गए है। इस रचना का मुख्य विषय विवाह है, किन्तु पार्वती के जन्म, तप आदि का भी संक्षिप्त चित्रण है ।" यह कथा तीव्र गति से आगे बढ़ती है। रामचरित मानस के शिव चरित्र और पार्वती मंगल के अनेक पदों मे शब्दार्थ साम्य है। रामचरित मानस के अतिरिक्त पार्वती मंगल ही कवि की ऐसी कृति है जिसमे निर्विवाद रूप से रचना काल दिया है । 
5. रामचरितमानस : मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के विश्रुत चरित्र को प्रभावित करने वाला यह महान ग्रन्थ सं0 1631 में लिखा गया ।" इस ग्रन्थ मे 7 काण्ड है। प्रथम बालकाण्ड मे मुख्य कथानक के प्रारम्भ होने के पूर्व एक वृहत् उपक्रम के रूप में मानस की प्रस्तावना है जिसमे गोस्वामी जी के शील-स्वभाव के अतिरिक्त उनके सिद्धान्तों तथा विचार पद्धति का पर्याप्त परिचय प्राप्त होता है। राम जन्म से लेकर धनुभंग और विवाह के कथा प्रसंग भी बालकाण्ड में विस्तार से वर्णित है। अयोध्या काण्ड मे युवराज पद की घोषणा के अनन्तर वनवास की आज्ञा लेकर चित्रकूट प्रसंग तक की कथा है। अरण्यकाण्ड मे सीता हरण और गिद्ध उद्धार की कथा है । किष्किंधा काण्ड मे सुग्रीव मैत्री और सीता - खोज प्रयास का वर्णन है । सुन्दरकाण्ड मे हनुमान द्वारा सीता का पता लगाना और लंका दहन का प्रसंग है। लंका काण्ड मे प्रमुख रूप से राम-रावण युद्ध और रावण वध की कथा है। उत्तरकाण्ड मे राम के प्रत्यावर्तन और राज्यारोहण के अनन्तर गोस्वामी जी एक ऐसे विशुद्ध अनुष्ठान में प्रवृत्त हो जाते है जिसे मानस का परिसमाप्ति सूचन उपसंहार कह सकते है । 

6. गीतावली : यह रचना राग, रागिनियों में है और इसमे 7 काण्ड है जिसमे रामचरित वर्णित है। यह शुद्ध ब्रजभाषा मे है । यह कृष्ण भक्त कवियों की शैली पर वैसा ही लिखा गया है। इसमे राम के आर्विभाव से लेकर सीता - निर्वासन और लवकुश के बाल चरित तक के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन है। इसमे कुल 7 काण्ड व कुल 328 पद है ।" 

7. श्रीकृष्ण गीतावली : यह श्रीकृष्ण लीला पर लिखे गये 61 पदों का संग्रह है। इसमे कृष्ण की बाल लीला और उनके मथुरा चले जाने पर  गोपियों की विरह दशा का वर्णन है ।" श्रीकृष्ण गीतावली के कई पद सूरदास रचित सूरसागर मे भी पाये जाते है लेकिन इसके छाप अलग है। यह किसी क्रम से नहीं बना है, प्रत्युत समय पर बने पदों का संग्रह है।

8. विनयपत्रिका : विनयपत्रिका का अर्थ है- प्रार्थना पत्र, अरजी। यह प्रार्थना पत्र तुलसीदास ने भगवान राम की सेवा में भेजी है। इसमें विनय के 279 पद है।" यह गोस्वामी जी की अन्तिम रचनाओं में से एक है। उन्होंने कलियुग के वर्णन में एक प्रकार से मुगल शासन का ही चित्रण किया है। इसमें गोस्वामी जी की झुंझलाहट स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ता है ।

इस रचना से मुगलकालीन समाज, शासन वर्ग, उस काल में फैली दैवीय आपदाओं, प्रमुख नगरों का सजीव चित्रण स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ता है । इसमे भक्ति की दैन्य भावना का विकास खूब खुलकर हुआ है। 

9. बरवै रामायण : बरवों का यह छोटा सा ग्रन्थ है, जो सात अध्यायों में बंटा है। इसमें राम विशेष रूप से मानवीय रूप में चित्रित है। इसमें सीता और राम के प्रगाढ़ प्रेम का वर्णन है। कविता अलंकारमयी है । इसमें राम को कामदेव से भी ज्यादा सुन्दर दिखलाया गया है लेकिन राम में सौन्दर्य के साथ-साथ शील और शक्ति भी है। 

10. कवितावली : कवितावली कथा काव्य नहीं है। इसमें कवित्त धनाक्षरी, सवैए तथा छप्पय छंद है और भाषा शुद्ध ब्रज है। इसमे रामचरित काण्ड क्रम से 7 काण्डों मे विभक्त है। इसमें मन्दोदरी रावण को राम के ईश्वरत का स्मरण भी कराती है । राम की दीन दयालुता और शूर वीरता ही कवितावली मे अधिक वर्णित है। तुलसी का अपना जीवन भी कवितावली के उत्तरकाण्ड के छन्दों मे अभिव्यक्त है । तुलसीदास की इस रचना में तत्कालीन समाज का चित्रण स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। इसकी रचना ब्रज भाषा में की गयी थी।

11. दोहावली : इसमें 573 दोहे है, जिसमे 23 सोरठे है। यह भगवन्नाम, महात्म्य, धर्मोपदेश, नीति आदि पर लिखी गयी है। इनमे से प्रायः आधे दोहे रामचरित मानस, रामाज्ञा प्रश्न तथा वैराग्य संदीपनी मे भी मिलते है। मुगल कालीन कृषि व्यवस्था, कृषि के संसाधन, राजस्व व्यवस्था, मुगल कालीन व्यापार और वाणिज्य का सुन्दर उदाहरण इस ग्रन्थ मे दिखलाई पड़ता है। 

12. हनुमानबाहुक : यह भी कवितावली की तरह कथा - काव्य नहीं है। हनुमानबाहुक मे हनुमान जी के प्रति तुलसी की प्रार्थना है, जो बाहु पीड़ा दूर करने के लिए की गयी है। इसमे 44 पद्य है। 

13. वैराग्य संदीपनी : यह दोहे, चौपाइयों में छोटी सी रचना है। इसमें कुल 62 छन्द (दोहे, चौपाई, सोरठे) है। तीन प्रकाशों मे संत स्वभाव, संत महिमा तथा शान्ति का वर्णन है ।

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